राज्यपाल की शक्ति और कार्यों तथा इनकी बिहार में भूमिका का वर्णन कीजिए ।
राज्यपाल की शक्ति और कार्यों तथा इनकी बिहार में भूमिका का वर्णन कीजिए ।
अथवा
राज्यपाल की मूल शक्ति तथा उसकी संवैधानिक एवं व्यावहारिक स्थिति के आलोक में परीक्षण करें। प्रश्न का दूसरा भाग सामयिक घटना पर आधारित है।
उत्तर – राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रधान होता है। राज्य की संपूर्ण कार्यकारिणी शक्तियां उसमें निहित हैं जिनका प्रयोग वह साधारणतया मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सहायता से करता है। राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है (अनुच्छेद 155 ) । राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है लेकिन वह परम्परा अनुसार राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है (अनुच्छेद 156 ) ।
राज्यपाल के किसी राज्य के कार्यपालिका का प्रधान होने के बावजूद उसकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो वह केन्द्र का प्रतिनिधि होता है जिसकी स्थिति कभी-कभी महत्वपूर्ण एवं शक्तियां अति प्रभावकारी हो जाती हैं।
राज्यपाल की शक्तियां (Powers of the Governor)
1. विवेकाधीन शक्तियां – कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां राज्यपाल को अपनी बुद्धि तथा विवेक का प्रयोग करना पड़ता है, जैसे
(i) बहुमत के अभाव में राज्यपाल अपने स्व – विवेक से मुख्यमंत्री का चुनाव करता है ।
(ii) सरकार के अल्पमत अथवा अविश्वास प्रस्ताव में हार जाने की स्थिति में वह मंत्रिमंडल की बर्खास्तगी कर सकता है।
(iii) राज्य की संवैधानिक मशीनरी के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकता है।
(iv) अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाने की स्थिति में मुख्यमंत्री के परामर्श पर विधान सभा का विघटन ।
(v) साधारण विधेयक को पुनः विचार के लिए वापस लौटा सकता है अथवा हस्ताक्षर करने से इंकार भी कर सकता है आदि।
2. कार्यपालक शक्तियां- राज्य की संपूर्ण कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। इसका प्रयोग साधारणतया वह मंत्रिमंडल के सहयोग से करता है। वह मुख्यमंत्री, मंत्रियों, महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों आदि की नियुक्त करता है। मंत्रियों के कार्य आबंटन से संबंधित नियम बना सकता है। मंत्रिपरिषद् का निर्णय सरकारी आदेश के रूप में लागू नहीं होता, जब तक उसे राज्यपाल के नाम से अभिव्यक्त न किया जाए।
3. विधायी शक्तियां –
(i) वह विधानसभा अथवा विधान परिषद् अथवा दोनों सदनों की बैठक बुला सकता है, उसके सदस्यों को संबोधित कर सकता है। संदेश भेज सकता है, सत्रावसान कर सकता है एवं विघटन कर सकता है।
(ii) जहां विधान परिषद है, वहां विधान परिषद के 1/6 सदस्यों की नियुक्ति करता है।
(iii) राज्यपाल की अनुमति से ही कोई कानून बन सकता है।
(iv) वह विधानसभा में एक एंग्लो-इण्डियन सदस्य नियुक्त कर सकता है।
(v) विधानसभा के अधिवेशन न होने की स्थिति में वह अध्यादेशों के माध्यम से कानून बना सकता है।
4. वित्तीय शक्तियां –
(i) राज्यपाल विधानसभा में वार्षिक बजट प्रस्तुत करवाता है।
(ii) धन विधेयक विधानसभा में राज्यपाल की सिफारिश पर ही लाए जाते हैं।
(iii) राज्य की आकस्मिक निधि राज्यपाल के हाथों में ही होती है।
5. क्षमादान की शक्ति- राज्यपाल किसी अपराधी को क्षमादान प्रदान कर सकता है। राज्यपाल कुछ मामलों में दंडादेश का निलंबन, परिहार या लघुकरण करने का भी अधिकार रखता है। यद्यपि इन शक्तियों में कुछ सीमाएं भी हैं।
इस तरह स्पष्ट है कि राज्यपाल काफी शक्ति धारण किए रहता है। लेकिन शक्तियों के साथ कुछ सीमाएं भी हैं। यद्यपि विशेष परिस्थिति में वह शक्ति का वास्तविक केन्द्र बन जाता है।
राज्यपाल की शक्तियां
1. विवेकाधीन शक्तियां
> बहुमत के अभाव में मुख्यमंत्री का चुनाव
> सरकार के अल्पमत की स्थिति में मंत्रिमंडल की बर्खास्तगी
> राष्ट्रपति शासन की सिफारिश
> साधारण विधेयक को पुनः विचार के लिए वापस लौटाना आदि ।
2. कार्यपालक शक्तियां
> राज्य की संपूर्ण कार्यपालिका की शक्ति उसमें निहित होती है।
> मुख्यमंत्री, मंत्रियों एवं महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है आदि।
3. विधायी शक्तियां
> दोनों सदनों की बैठक बुला सकता है।
> विधान परिषद के 1/6 सदस्यों की नियुक्ति करता है ।
> विधानसभा में एक एंग्लो-इंडियन सदस्य की नियुक्ति कर सकता है आदि।
4. वित्तीय शक्तियां
> राज्य की आकस्मिक निधि राज्यपाल के हाथों होती है।
> धन विधेयक राज्यपाल की सिफारिश पर ही विधानसभा में लाया जाता है, आदि।
5. क्षमादान की शक्ति
> वह किसी अपराधी को क्षमा प्रदान कर सकता है।
> वह कुछ मामलों में सीमाओं के तहत दण्ड के आदेश को कम कर सकता है।
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