एक सुशिक्षित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समितियाँ, मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और शासन का प्रभावशाली उपकरण नहीं बन पाती हैं। आलोचनात्मक सीमक्षा कीजिए।

एक सुशिक्षित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समितियाँ, मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और शासन का प्रभावशाली उपकरण नहीं बन पाती हैं। आलोचनात्मक सीमक्षा कीजिए।

अथवा

‘पंचायतों के बेहतर प्रदर्शन हेतु शिक्षा एक आवश्यक कड़ी है।’ इसकी चर्चा कीजिए । “शिक्षा के बिना लोकतांत्रिक समस्याएं, राजनीतिक क्रियाकलापों का गढ़ बन जाती हैं। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर- कोई भी शासन प्रणाली तब तक सफल नहीं हो सकती है जब तक उसके सदस्य शिक्षित न हों। शिक्षा वह कारगर हथियार है जिसके माध्यम से नीति का नियमन एवं उसका भली-भांति क्रियान्वयन होता है। हालांकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विधानमण्डलों के सदस्य भली-भांति शिक्षित नहीं होते, बावजूद इसके कार्यपालिका सदस्यों के द्वारा क्रियान्वयन होता रहा है। इससे शासन प्रणाली में गतिरोध जारी है। इन अशिक्षित सदस्यों के कारण ये समितियां मात्र राजनीतिक संस्थाएं बनती जा रही हैं जो लोकतांत्रिक शासन में एक अभिशाप हैं।
पंचायतें एवं अन्य संस्थाओं हेतु कुशल सदस्यों के चयन में आमजन की जागरूकता एवं उनका भली-भांति शिक्षित होना अनिवार्य है। एक शिक्षित आम जनता ही एक कुशल प्रशासक का चयन कर सकती है। शिक्षित होने से आम जनता में जागरूकता का संचार होता है। जागरूक जनता ही अपने हक व अधिकार को समझ सकती है। सरकार की विभिन्न योजनाओं को सफल बनाने में आमजन की जागरूकता शासन के लिए उत्प्रेरक तत्व एवं योजनाओं को सफलीभूत होने में मददगार सिद्ध होती है। ये आमजन ही स्वयं में से शिक्षित प्रशासक का चयन करते हैं। अतः सर्वप्रथम आमजन का भी शिक्षित होना अनिवार्य है।
सरकार की कई सारी योजनाएं होती हैं, ऐसे में एक शिक्षित पंचायत उन योजनाओं को सही लोगों तक पहुंचा सकती है। शिक्षा के अभाव में बिहार के कई सारी पंचायतें में जहां सरकारी पैसे खर्च ना हो पाने के कारण फण्ड वापसी तथा
योजनाओं के निष्पादन में भाई-भतीजावाद, जाति – भेद एवं लिंग-भेद जैसी समस्या देखने को मिलती है। शिक्षा के अभाव में ये पंचायतें एक राजनीतिक संस्था बनती जा रही हैं, यही नहीं नौकरशाहों का वर्चस्व भी इन पंचायत समितियों पर जबर्दस्त है। ये नौकरशाह मनमाने ढंग से योजना का क्रियान्वयन करवा लेते हैं, जिनमें आमजन की कोई रूचि भी नहीं होती, फिर भी वैसी योजनाएं चलाई जाती रही हैं जिनसे भ्रष्टाचार भी बढ़ा है।
> पंचायत का गठन का उद्देश्य
शासन का विकेन्द्रीकरण कर आम जन की सहभागिता का है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों का विकास हो। इन उद्देश्यों को पूरा करने में शिक्षित सदस्यों का होना आवश्यक घटकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में तमाम समस्याएं हैं, वहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव फिर भी सरकारी योजनाओं को ना समझ पाने के कारण ये समितियां राजनीतिक संस्थाओं की भांति कार्य करने लगी हैं। सदस्यगण समस्याओं पर विचार न करके वोट बैंक एवं अन्य राजनीतिक हथकंडे पर चर्चा करते हैं जिनसे अगले चुनाव में या संबंधित राजनीतिक दल को दूसरे चुनाव लाभ हो । इन तरह के चर्चाओं से ग्रामीण विकास अवरुद्ध हो गया है।
उसी तरह सुगठित स्थानीय स्तर के शासन प्रणाली के अभाव में पंचायती प्रणाली को सफल बनाना दुष्कर कार्य है। अगर कोई पंचायत संगठित हो और प्रत्येक सदस्य को तत्संबंधी कार्य दिए गए हों तो वहां विकास भी देखा गया है। परन्तु एक कमजोर पंचायत जिसका गठन मनमाने ढंग से किया गया हो – दृढ़ इच्छा का अभाव पाया गया है जिनसे प्रत्येक स्तर का विकास अवरुद्ध हो गया है ।
हालांकि शिक्षा एकमात्र उपाय नहीं हैं पूर्व के शासकों में अकबर/ खिलजी को इस बिना पर नहीं माप सकते की वे असफल शासक थे। हां देखा यह गया है कि उनमें दृढ़ इच्छा का समावेश कितना है? शासन का अनुभव कितना है? फिर भी शिक्षित सदस्यों से इस बात की तसल्ली तो अवश्य हो जाती है कि वह तत्संबंधी क्षेत्र के समस्याओं को समझेगा एवं उनका हल निकालेगा।
इस प्रकार, एक सफल पंचायत या समितियों के लिए आवश्यक है कि उसके सदस्यगण पर्याप्त शिक्षित हों तथा प्रणाली सुगठित हो। इसके अभाव में किसी भी योजना का सफल होना संदिग्ध है।
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