राम की शक्तिपूजा : शिल्प विधान
राम की शक्तिपूजा : शिल्प विधान
राम की शक्तिपूजा : शिल्प विधान
‘राम की शक्तिपूजा’ में जहाँ विधागत विविधता है वहीं इसका संरचनात्मक सौंदर्य भी अनूठा है। एक नाटकीय रचना होने के कारण इसमें वर्णन-कौशल, नाद-सौंदर्य, भावानुकूल भाषानुकूल भाषा-प्रयोग और पात्रों का जीवन-कर्म कौशल या गतिमान चाक्षुस बिंबों का समावेश देखने को मिलता है। इस कविता के रचनात्मक सौंदर्य में भी निराला ने परंपरागत उपादानों के साथ-साथ बहुत सारे उपादानों के साथ-साथ बहुत सारे नये उपादान प्रयुक्त किए हैं। उदाहरण के तौर पर ‘फ्लैश बैक’ तकनीक के इस्तेमाल को देखा जा सकता है। इस रचना की कथावस्तु सीधी सपाट नहीं है अपितु वर्तमान से विगत की ओर और विगत से वर्तमान की ओर आवाजाही करती रहती है और अंत में आगत की ध्वनि या घोष का प्रयोग है। जिस तरह काल के इन तीनों आयामों से यह रचना क्रीड़ा करती है, उसी तरह स्थान के आयाम भी बदलते हैं।
राम अपने वर्तमान में रणभूमि में हैं, मगर स्मृति में वे जनक वाटिका में लौटते हैं, ‘याद आया उपवन विदेह का’। हनुमान भी कई बार स्थान परिवर्तन करते हैं। वे आकाश से लेकर ‘देवी दह’ तक विचरण करते हैं। इस तरह यह रचना आधुनिक चित्रपट शैली की तरह देशकाल के विविध आयामों का इस्तेमाल करती है।
इस कविता के संरचनात्मक सौंदर्य में नादयुक्त भाषिक प्रयोगों का विशेष योगदान है। कविता के प्रारंभिक अंश में जहाँ ‘राम रावण का अपराजेय समर’ वर्णित है वहाँ गौर से देखें तो वर्ण से युक्त शब्दों की भरमार है, जैसे – तीक्ष्ण, सम्यरण, बाण, रावण, कारण, कोदण्ड, भीषण, अगणित आदि। इन वर्णों से युद्ध के होन का नाद चमत्कार पैदा हुआ है। इसके ठीक विपरीत जानकी स्मृति प्रकरण आदि में इस तरह की भाषा-शैली का अभाव है ‘बोली माता’ – “तुमने रवि को जब लिया निगल”, इस तरह हम कह सकते हैं कि कलात्मक सौंदर्य और सामाजिकता के कारण ‘शक्तिपूजा’ श्रेष्ठतम रचनाओं में एक है।
‘राम की शक्तिपूजा’ को श्रेष्ठता का एक बहुत बड़ा कारण उसमें पाई जाने वाली नाटकीयता है। यह नाटकीयता उसकी घटनाओं में भी है, उसके चरित्रों में भी, उसके भाव में भी और उसमें प्रयुक्त संवादों को भाष में भी। पूरी कविता एक नाटक की तरह है जिसमें एक क्रम से सारे दृश्य रंगमंच पर प्रत्यक्ष होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह नाटकीयता बहुत स्वाभाविक है जो इस बात की सूचना देती है कि निराला क्रिया-व्यापार और भाव-व्यापार दोनों को एक दूसरे से पृथक मानते थे, जिससे उनके भाव-व्यापार को क्रिया व्यापार मूर्त कर देता था और उनके क्रिया-व्यापार को भाव-व्यापार गतिशील बना देता था। चूँकि यह कविता कथात्मक कविता है, इसलिए स्वभावतः इसमें बहुत ज्यादा गति और वेग है। कविता का पूरा ढाँचा ऊपर से सरल लेकिन भीतर से जटिल है। यह जटिलता उसकी कथात्मकता में नहीं उसके
विन्यास में है।
राम की शक्तिपूजा का महत्व प्रतिपादित करते हुए अज्ञेय ने लिखा है, “राम की शक्तिपूजा जैसी रचनाएं हिंदी में नहीं है। निष्कंप संतुलन के साथ आवेगों की ऐसी तीव्रता और भाषा का तदनुकूल प्रवाह दुर्लभ है।”