लेखन अभिव्यक्ति का महत्त्व बताइए ।
लेखन अभिव्यक्ति का महत्त्व बताइए ।
उत्तर— लेखन कार्य में अभिव्यक्ति का विशेष स्थान है । यदि किसी छात्र से रुचिपूर्ण तथा स्वतन्त्र रूप से लेखन कार्य करने के लिये कहा जाय तो वह उस कार्य को अपने तर्क तथा चिन्तन के आधार पर सम्पन्न करता है। उसके इस कार्य में उसके मनोभाव सम्मिलित होते हैं। नियन्त्रित लेखन की तुलना में लेखन कार्य में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है।
लेखन अभिव्यक्ति का महत्त्व निम्न प्रकार से है—
(1) रुचिपूर्ण लेखन—रुचिपूर्ण लेखन के लिये स्वतन्त्रता आवश्यक है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में छात्र द्वारा जो भी लिखा जाता है उसमें छात्र को पूर्ण रुचि होती है क्योंकि वह अपने विचारों को किसी आधार या नियन्त्रण में प्रस्तुत नहीं करता बल्कि अपनी इच्छा के अनुसार प्रस्तुत करता है।
(2) एकाग्रता का विकास—स्वतन्त्र अभिव्यक्ति में छात्र एकाग्रता का विकास करता है अर्थात् छात्र जिस विषय पर भी लिखना चाहता है वह उसकी इच्छा के अनुरूप होता है तथा लेखन कार्य में भी उस पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता है । इसलिये वह पूर्ण मनोयोग के साथ लिखना प्रारम्भ करता है जिसके परिणामस्वरूप लेखन कार्य में एकाग्रता एवं क्रमबद्धता का विकास होता है ।
(3) प्रभावी लेखन—स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के द्वारा लेखन में प्रभावशीलता उत्पन्न होती है। सामान्य रूप से देखा जाता है कि जब लेखन कार्य नियन्त्रित रूप में होता है तो छात्र शिक्षक या पुस्तक का अनुकरण करता है। जब उसे स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है तो इसकी सम्भावना बढ़ जाती है कि उसके लिखित विचार पुस्तक एवं शिक्षक दोनों से ही श्रेष्ठ होंगे क्योंकि छात्रों में भी अनेक छात्र प्रतिभाशाली एवं योग्य होते हैं ।
(4) तर्क एवं चिन्तन—स्वतन्त्र लेखन में प्रभावशीलता के साथसाथ छात्रों में तर्क एवं चिन्तन का विकास होता है। जब छात्र किसी निश्चित विषय पर लिखता है तो वह उस विषय पर पूर्ण विचार प्रारम्भ कर देता है क्योंकि वह विषय उसकी रुचि के अनुसार होता है । लेखन कार्य में वह उस विषय पर तर्क तथा चिन्तन का सहारा लेते हुए उसे श्रेष्ठ रूप में विकसित करने का प्रयास करता है।
(5) भाषा शैली का विकास—छात्रों में प्रभावी भाषा शैली के विकास के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान की जाय क्योंकि स्वतन्त्र अभिव्यक्ति में छात्र अपने लेखन को सर्वोत्तम बनाने के लिये मानक भाषा का प्रयोग करते हुए सरल एवं साहित्यिक बनाने का प्रयास करता है।
(6) भावपूर्ण लेखन—छात्रों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान करने पर उन्हें अपने विचार स्वतन्त्र रूप से लिखने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस प्रेरणा के कारण छात्रों का लेखन प्रभावशाली बन जाता है तथा छात्र के विचारों में स्वाभाविकता उत्पन्न होती है। इसलिये श्रेष्ठ लेखन क्षमता के विकास के लिये स्वतन्त्र अभिव्यक्ति आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है।
(7) कल्पना शक्ति का विकास—नियन्त्रित लेखन प्रणाली में छात्र द्वारा एक नियन्त्रित मार्ग पर लेखन कार्य किया जाता है लेकिन स्वतन्त्र अभिव्यक्ति में छात्रों द्वारा लेखन कार्य में अपनी विभिन्न प्रकार की कल्पनाओं को सम्मिलित किया जाता है। कल्पनाओं के समावेश के आधार पर लेखन कार्य पूर्णतः श्रेष्ठ एवं प्रभावी रूप में सम्पन्न होता है तथा छात्रों में कल्पना शक्ति का विकास होता है। “
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि रुचि तथा स्वतन्त्रता के साथ लेखन करने से सम्पूर्ण लेखन व्यवस्था भाषा-शैली एवं व्याकरण की दृष्टि से परिपूर्ण होती है ।
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