वर्तमान परिप्रेक्ष्य के सन्दर्भ में शिक्षा की प्रकृति व अवधारणा का वर्णन कीजिए ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य के सन्दर्भ में शिक्षा की प्रकृति व अवधारणा का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— वर्तमान समय में शिक्षा की अवधारणा– सामाजिक सम्बन्धों का जाल समाज है। ये सम्बन्ध सामाजिक क्रियाओं और प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। ये सामाजिक क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ संघटित और विघटित, दोनों रूपों में होती हैं। जब विभिन्न संस्थाएँ, संघ, समूह और व्यक्ति अपने निर्धारित पद और कार्य के अनुसार काम करते तथा परिवर्तित दशाओं से युक्तिपूर्वक अनुकूलन करने में सफल होते हैं तो उस स्थिति को हम सामाजिक संघटन की संज्ञा देते हैं। इसके ठीक विपरीत जब व्यक्तियों, समूहों, संस्थाओं और समितियों के सम्बन्धों में संतुलन बिगड़ जाता है तो उस स्थिति को सामाजिक विघटन कहा जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक संघटन और विघटन एक-दूसरे के विलोम हैं। व्यक्ति अथवा समूह सामाजिक नियन्त्रण के विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने क्रियाकलापों को सन्तुलित कर सामाजिक संघटन की स्थिति पैदा करता है। समाज के विभिन्न अंगों के बीच अर्थपूर्ण अन्त:क्रिया तथा प्रकार्यात्मक एकता को भी सामाजिक संघटन कहा जाता है। सामाजिक संघटन एक सापेक्ष शब्द है। कोई ऐसा समाज नहीं पाया जाता है जो पूर्णत: संघटित अथवा विघटित हो। प्रत्येक समाज को दोनों ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। कोई समाज संघटित है अथवा नहीं, यह जानने के लिए हमें अन्य समाजों से उसकी तुलना अवश्य करनी चाहिए। कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस सापेक्ष प्रकृति के कारण प्रत्येक समाज में संघटन और विघटन, दोनों ही होते हैं।
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