लक्ष्य व उद्देश्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए। उभरते हुए भारतीय समाज के सन्दर्भ में शिक्षा के क्या लक्ष्य होने चाहिए ?

 लक्ष्य व उद्देश्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए। उभरते हुए भारतीय समाज के सन्दर्भ में शिक्षा के क्या लक्ष्य होने चाहिए ? 

उत्तर— लक्ष्य व उद्देश्य में अन्तर—निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—

(1) लक्ष्य का क्षेत्र विस्तृत होता है जबकि उद्देश्य का क्षेत्र सीमित होता है।

(2) लक्ष्य सामान्य होते हैं जबकि उद्देश्य विशिष्ट होते हैं।
(3) लक्ष्य दूरगामी होते हैं जबकि उद्देश्य तात्कालिक होते हैं।
(4) लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण विद्यालय कार्यक्रम, समाज व राष्ट्र उत्तरदायी होता है जबकि उद्देश्य की छोटी-छोटी शाखाएँ होती है इसलिए इनकी प्राप्ति का उत्तरदायित्व शिक्षक तथा पाठ विषय की विषयवस्तु पर होता है।
(5) लक्ष्य की प्राप्ति में अधिक समय लगता है जबकि उद्देश्य की प्राप्ति में कम समय लगता है।
(6) लक्ष्य में आदर्शवादिता होती है जबकि उद्देश्य में व्यावहारिकता होती है।
उभरते हुए भारतीय समाज के सन्दर्भ में शिक्षा के लक्ष्य  निम्नलिखित होने चाहिए—
(1) नेतृत्व की शिक्षा – प्रत्येक राज्य की सफलता उसके कुशल नेताओं पर निर्भर करती है। यह शिक्षा का कार्य है कि वह व्यक्तियों को इस प्रकार प्रशिक्षित करें कि वे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कुशलता से नेतृत्व या मार्गदर्शन कर सके। डॉ. आर. एस. मणि के अनुसार “विशेष रूप से इस समय जब कि देश में लोकतंत्र जीवन का अंग हो गया है और मतदान की पेटी राजनीतिक लोकतंत्र की प्रतीक हो गयी है, अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता है । लोगों की उन स्वार्थी और बेईमान नेताओं से रक्षा करनी है जो अपने हितों को पूरा करने के लिये सब कुछ कर सकते हैं। अतः सच्चे नेतृत्व के लिये सेवा की भावना के साथ-साथ अच्छे प्रशिक्षण की आवश्यकता है। “
(2) व्यक्तिगत हितों की अपेक्षा सार्वजनिक हितों को महत्त्व – शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की हो कि व्यक्ति सामाजिक तथा राष्ट्रीय हितों के आगे अपने स्थानीय स्वार्थों का त्याग कर सके। राष्ट्रीय संकट के प्रादेशिक हित की बात सोचना एक अन्तर्राष्ट्रीय कार्य है। डॉ. राधाकृष्णन के शब्दों में, “यदि भारत संयुक्त एवं लोकतंत्रीय रहना चाहता है, तो शिक्षा को लोगों को एकता के लिये, न कि प्रादेशिकता के लिये प्रजातंत्र के लिये न कि तानाशाही के लिये प्रशिक्षित करना चाहिये ।” “
(3) सामाजिक हित में प्रगति – शिक्षा की सफलता तभी मानी जायेगी जबकि वह व्यक्ति को समाज का क्रियाशील कुशल सदस्य बना सके। शिक्षा द्वारा उनमें इस प्रकार की कुशलता का विकास किया जाना चाहिये कि वे उन व्यवसायों और उद्योगों में कुशल हो जो न केवल उनके लिये ही लाभदायक हो, वरन् समाज और राष्ट्र के लिये भी उपयोगी सिद्ध हो ।
(4) कुशल व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि – कुशल श्रमिकों द्वारा ही राष्ट्रीय सम्पत्ति का विकास होता है। अतः शिक्षा का अन्य कार्यकुशल श्रमिकों की पूर्ति करना है, कुशल श्रमिक अधिक उत्पादन पर बल देते हैं तथा वे राष्ट्रीय हित की बात सबसे आगे रखते हैं।
(5) राष्ट्रीय एकता का विकास – शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता की दिशा में कदम उठाने चाहिये। विद्यालय में शिक्षा की व्यवस्था ऐसी हो कि जातीयता, प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता की भावना का ह्रास हो और उसके स्थान पर राष्ट्रीयता की भावना उग्र रूप से हिलोरे मारे । शिक्षा का प्रमुख कार्य प्रत्येक व्यक्ति को संकीर्ण विचारधारा से मुक्ति दिलाना है।
(6) राष्ट्रीय बिरासत का ज्ञान – राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा का प्रमुख कार्य बाल को राष्ट्र की संस्कृति के सम्पर्क में लाना है। शिक्षा बालकों को उनके राष्ट्र की संस्कृति का ज्ञान कराती है और बताती है कि उसके देश की संस्कृति किस प्रकार से विकसित हुई।
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