विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम की सीमायें–इस पाठ्यक्रम की प्रमुख कमियाँ अथवा दोष निम्नलिखित हैं—
(1) यह अपेक्षित व्यवहारगत उद्देश्यों को सीमित कर देता है।
(2) इसमें ज्ञान के छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाने से उसका समुचित उपयोग कर पाना कठिन होता है।
(3) इसमें अधिगम अनुभवों का विस्तार क्षेत्र सीमित हो जाता है।
(4) यह छात्रों को, विशेष रूप से अपरिपक्व तथा मन्द गति से सीखने वालों को सार्थक एवं महत्त्वपूर्ण अधिगम अनुभव उपलब्ध नहीं करा पाता है।
(5) इसमें विद्यार्थियों से अध्ययन विषयों के प्रति बहुत अधिक निष्ठावान होने की अपेक्षा की जाती है।
(6) इससे अधिगम का स्थानान्तरण सरलता से तथा प्रभावी रूप से सम्भव नहीं हो पाता है।
(7) इसमें प्रत्येक विषय के लिए समय-सीमा का निर्धारित होना अधिगम में बाधक होता है।
(8) इसमें किसी नवीन अन्तर्वस्तु को समाविष्ट करना कठिन होता है।
(9) इस प्रकार के पाठ्यक्रम में अमूर्तीकरण एवं तार्किक विवेचन पर अधिक बल दिया जाता है जो अनुकूलन में बाधक भी सिद्ध होते हैं ।
(10) इसमें लचीला एवं कल्पनापूर्ण शिक्षण असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता है ।
(11) चूँकि प्राथमिक शिक्षक सामान्य शिक्षकों के रूप में तैयार किये जाते हैं, विषय-विशेषज्ञों के रूप में नहीं। अतः प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में इस उपागम में विशेष कठिनाई होती है।
(12) मानव ज्ञान के बढ़ते हुए विशाल भण्डार के परिणामस्वरूप विषय आधारित पाठ्यक्रमों का संगठन बहुत जटिल होता जा रहा है।
इन उपर्युक्त कारणों से विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम का कार्यात्मक (Functional) न होना पाना अर्थात् दैनिक जीवन में उपयोगी न हो पाना इसकी एक अन्तर्निहित कमी है। अनेक अध्ययनों से अब यह तथ्य स्पष्ट हो गया है। सारांश में जेम्स एम. ली का कथन बहुत ही उपर्युक्त है‘‘विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम निश्चित बौद्धिक विशिष्टताओं की एक सूची है जिसका योग यथार्थता का समग्र चित्र प्रस्तुत करने का दावा करता है। इसमें छात्रों के लिए क्या अर्थपूर्ण है तथा वे क्या सीखना चाहते हैं, की अपेक्षा निर्धारित विषयवस्तु पर अधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है।”
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