“शान्ति शिक्षा” पर संक्षिप्त पर टिप्पणी लिखिए ।

“शान्ति शिक्षा” पर संक्षिप्त पर टिप्पणी लिखिए ।

                                   अथवा

शान्ति शिक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिए । वर्तमान समय में शान्ति में शिक्षा की आवश्यकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— शान्ति की अवधारणा–वर्तमान सन्दर्भ में शान्ति का अर्थ युद्धों की समाप्ति से लगाया जाता है किन्तु युद्ध की अनुपस्थिति ही शान्ति नहीं है अपितु यह एक सुदृढ़ बंधुत्व की भावना का विकास है, अन्य लोगों के विचारों तथा मूल्यों को ईमानदारी से समझने का प्रयास है। अतः मानव अपने क्रोध को कम करे, दूसरों की बुराई न करे तथा दूसरों पर विश्वास करे । मानव अपने भीतर सहज ज्ञान, करूणा एवं प्रेम जैसे गुणों का विकास करे क्योंकि ये सभी गुण शान्ति तथा सन्तोष के मानदण्ड हैं । अतः शान्ति की अवधारणा के विभिन्न अर्थ हैं—
(1) युद्ध की अनुपस्थिति ।
(2) मन की शान्ति ।
(3) शोषण एवं अन्याय से मुक्ति ।
के. एस. बासवराज के अनुसार, “शान्ति शिक्षा एक कार्यक्रम तथा प्रक्रिया है जिससे लोगों (नवयुवकों तथा प्रौढ़ों) में शान्ति के मूल्य की सराहना तथा समझदारी की भावना का विकास किया जाता है । यह वह तैयारी है जिससे सामुदायिक जीवन को न्यायप्रिय, व्यवस्थित तथा सामंजस्यपूर्ण बनाया जाता है।”
डॉ. मर्सी अब्राहम के अनुसार, “शान्ति शिक्षा शान्तिप्रिय लोगों के लिए शिक्षा है जो कि इस पृथ्वी पर शान्ति कायम करने के योग्य होंगे ….। यह विशेषतः भावात्मक शिक्षा है । यह धार्मिक शिक्षा है। साथ ही यह स्वयं में शिक्षा है।”
शान्ति शिक्षा की आवश्यकता— वैसे तो शान्ति की आवश्यकता सभी क्षेत्रों (पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक) के लिए है जिसकी प्राप्ति के लिए प्रारम्भ से ही व्यक्ति को शान्ति से रहने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और इसकी आवश्यकता भी है। शान्ति शिक्षा की संकल्पना को सर्वप्रथम सन् 1980 में वेल्स के अन्तर्राष्ट्रीय कॉलेज में प्रस्तावित किया गया तत्पश्चात् यूनेस्को ने इसे आगे बढ़ाया एवं सन् 2000 को शान्ति-संस्कृति का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया। परिणामत: संसार के कई देशों में भी अहिंसा द्वारा शान्ति की स्थापना पर बल दिया गया और कुछ देशों में शान्ति शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ दिया गया।
शान्ति शिक्षा के उद्देश्य—डॉ. पी.वी. नायर ने शान्ति शिक्षा के
निम्न उद्देश्य बताए हैं—
(1) बालकों में उदार मस्तिष्क, विवेकपूर्ण चिन्तन तथा विश्वव्यापी ज्ञान की खोज हेतु रुचि का विकास करना ।
(2) बालकों को धार्मिक सहिष्णुता, अन्य प्रजातियों का आदर तथा धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों को आदर भाव से देखने के योग्य बनाना ।
(3) बालकों में सह-अस्तित्त्व की भावना को विकसित करना।
प्रो. के. एस. बासवराज ने भी शान्ति शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं—
(1) बालकों में उपयुक्त एवं अनुपयुक्त न्याय एवं अन्याय के विषय में जागरूकता विकसित करना ।
(2) बालकों में शान्तिप्रिय मानव के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करना ।
(3) मानव जीवन में शान्ति के मूल्यों को समझने तथा उसकी सराहना करने के लिए छात्रों को तत्पर करना ।
(4) बालकों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा भ्रातृत्व को विकसित करना ।
(5) बालकों को परिवार, देश तथा विश्व में शान्ति स्थापित रखने में उनकी भूमिका के प्रति जागरूक बनाना ।
(6) नवयुवकों में शान्ति के आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित करना ।
अतः हम कह सकते हैं कि शान्ति शिक्षा के माध्यम से व्यक्तियों को यह अनुभूति कराई जाए कि सभ्यता के विकास में किसी जाति का या समूह का एकाधिकार नहीं होता है वरन् सभी राष्ट्रों का योगदान होता है। इस प्रकार विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास करने एवं शान्ति बनाए रखने के लिए मानव को धार्मिक मामलों में दूसरे देशों तथा युगों के मनीषियों के योगदान के बारे में अवश्य समझाया जाए।
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