संक्षेपण का अर्थ एवं परिभाषा

संक्षेपण का अर्थ एवं परिभाषा

किसी विस्तृत विवरण, विस्तृत आख्या, वक्तव्य, प्रतिवेदन पत्र व्यवहार तथा लेख आदि के तथ्यों एवं निर्देशों का सुनियोजित सुरूचिपूर्ण संयोजन और समस्त अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रभावपूर्ण संक्षिप्त संकलन संक्षेपण कहलाता है। इसे संक्षिप्त- लेखन, सारांश । सार-लेखन, संक्षिप्तीकरण भी कहा जाता है। संक्षेपण में अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्ति आदि अनावश्यक बातों । सामग्री का बहिष्कार किया जाता है।
संक्षेपण / संक्षिप्त लेखन ‘सारांश, सार-लेखन तथा निष्कर्ष से कुछ भिन्न है। ‘सारांश’ में केवल मुख्य बात या कथ्य को अत्यधि क संक्षेप में लिख दिया जाता है, जबकि संक्षेपण में सामान्यतः सभी आवश्यक बातें क्रमबद्ध रूप से उपस्थिति की जाती हैं। इसी प्रकार ‘आशय’ में या तो संपूर्ण कथन का अथवा किन्हीं गूढ वाक्यादि का स्पष्टीकरण किया जाता है, जबकि संक्षेपण में इस प्रकार के स्पष्टीकरण की किसी प्रक्रिया का सहारा नहीं लिया जाता। निष्कर्ष तो आशय से भी संक्षिप्त होता हैं बहुत बड़े कथन का निष्कर्ष कभी-कभी केवल हैं एक दो वाक्यों में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, जबकि संक्षेपण में लंगभग सभी अनुच्छेदों में कही गई मुख्य-मुख्य बातों का क्रमबद्ध संक्षिप्त रूप में संकलन होता है। ।
संक्षेपण या संक्षिप्त लेखन में मूल संदर्भ (लेख, भाषण, वक्तव्य, पत्रादि) को संक्षिप्त किंतु सुगठित भाषा में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, ताकि पाठक को उसे पढ़ने के पश्चात् मूल संदर्भ में वर्णित विषय-वस्तु का समग्रेण स्पष्ट ज्ञान हो जाय।
संक्षेपण में निम्नलिखित विशेषताओं का ध्यान रखना परमावश्यक है :
1. संक्षिप्त लेख की भाषा सरल तथा परिष्कृत रहनी चाहिए। क्लिष्ट, कूट, अस्पष्ट तथा लंबे-लंबे समासज शब्दों प्रयोग से सदैव बचा जाय। संक्षिप्त प्रस्तुति में भाषा की व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ न रह पाए, इस बात की भी विशेष ध्यान रखा जाय।
2. संक्षिप्त लेख इस रूप में लिखा जाय कि उसे पढ़ने मात्र से ही मूल संदर्भ का अर्थ पूर्णतः स्पष्ट हो जाए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाय कि संक्षिप्त लेख का अर्थ स्पष्ट करने के लिये मूल संदर्भ को पढ़ने की नौबत न आ पाए।
3. यथातथ्यता संक्षेपण की प्रमुख विशेषता है। यहाँ यथातथ्यता का अभिप्राय है कि संक्षेपण में उन सभी मुख्य तथ्यों तथा विषयों का समाहार होना चाहिए जो मूल संदर्भ में हों। संक्षेपण में प्रस्तुत तथ्यों तथा विषयों का रूप ऐसा हो कि उन के सही-सभी वे ही अर्थ लगाए जाएँ जो मूल में अभिप्रेत हों। कोई भी तथ्य या विषय अशुद्ध या इस रूप में न हो कि उस के वैकल्पिक रूप से विभिन्न अर्थ लगाए जा सकें अथवा जिनका मिथ्याभास हो। संक्षेपण के समय यथातथ्यता रखने से मूल संदर्भ में कोई परिवर्तन नहीं होता।
4.संक्षेपण अपने आप में स्वतः पूर्ण होना चाहिए, अतः संक्षेपण के समय इस बात का ध्यान रखा जाय कि संक्षिप्त लेख में मूल की कोई महत्वपूर्ण बात छूट न जाय। संक्षेपण के समय लेखन से पूर्व आवश्यक । महत्वपूर्ण तथा आवश्यक ! प्रासंगिक अंशों का चयन विवेकपूर्ण ढंग से होना चाहिए। ऐसा कर पाना सजगता तथा अभ्यास बनाए रखने से ही संभव है।
5. संक्षेपण मूल का लगभग तृतीयांश रखा जाता है, किंतु यह गणित की संख्या का अंधानुकरण नहीं है। शुद्धता, सुस्पष्टता तथा पूर्णता के साथ-साथ संक्षेपण में संक्षिप्तता का गुण भी रहना परमावश्यक है। संक्षेपण के समय अनावश्यक विशेषण, व्याख्यात्मक तथा वर्णनात्मक अंश एवं उदाहरण आदि उसी दृष्टि से हटाए जा सकते हैं, जिससे संक्षेपण की विशेषताओं की कोई हानि न हो।
6. संक्षेपण में प्रवाहपूर्णता का रहना भी आवश्यक है। संक्षेपण को प्रवाहपूर्ण बनाए रखने के लिए उसकी वाक्य संघटना सुगठित तथा सुसंबद्ध रहनी चाहिए।, संक्षेपण-सामग्री न तो पृथक् भागों में विभक्त की जाती है और न तो उसके खंड किए जाते हैं। संक्षेपण सामग्री में प्रवाह बनाए रखने के लिए ‘अतः, इसलिए, तथापि, जबकि, इस पर’ आदि संयोजकों का प्रयोग किया जा सकता है।
संक्षेपण-प्रक्रिया के समय ध्यान देने वाली बातें 
1. संक्षेपण-प्रक्रिया का पहला कदम है मूल अंश । विषय-वस्तु को कम-से-कम दो बार ध्यानपूर्वक पढ़ कर उसके प्रमुख भाव-विचार को स्पष्टतः समझ लेना। प्रमुख भाव-विचार को स्पष्टतः समझने के बाद ही अगला कदम उठाया जाय।
2. मूल अंश । विषय-वस्तु के महत्वपूर्ण तथ्यों तथा विचारों को क्रमबद्ध रूप से लिख लिया जाय, ताकि
संक्षिप्त लेख में कोई आवश्यक बिंदु छूट न जाय।
3. संक्षिप्त लेख को प्रथम वाक्य या संक्षेपण की प्रस्तावना ऐसी हो जिसे पढ़ते ही अधिकारी को मूल संदर्भ के विषयादि का ज्ञान हो सके।
4. संक्षिप्त लेख में मूल संदर्भ की भांति ही क्रमबद्धता बनाए रखी जाती है। मूलांश के तथ्यों को उलट-पुलट कर आगे-पीछे रखने से भाव या अर्थ में परिवर्तन आ सकता है।
5. संक्षेपण के समय यथासंभव स्व-शब्दों का प्रयोग किया जाय। मूल सामग्री के शब्दों की यथातथ्य आवृत्ति सामान्यतः अच्छी प्रवृत्ति नहीं समझी जाती। भाव या अर्थ की प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार कभी-कभी कुछ मात्रा में मूल संदर्भ या पत्रादि के शब्दादि का यथावत प्रयोग भी किया जा सकता है।
6. संक्षेपण की भाषा में अन्य पुरूष का प्रयोग किया जाता है, अतः जहाँ आवश्यक होता है, वहाँ उसी के अनुरूप क्रिया-रूप भी बदल दिया जाता है।
7. सामान्यतः  संक्षेपण में वार्तालाप, संवाद कथन आदि को सामान्य वर्णन में परिवर्तित कर दिया जाता है, किंतु यदि किसी वार्तालाप या संवाद का विशेष उद्देश्य या महत्व दिखाई पड़े, तो उस वार्तालाप या संवाद को यथावत् उद्धृत भी किया जा सकता है।
8. संक्षेपण में न तो अपनी ओर से कुछ जोड़ा जाता है और न किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी की जाती है। सामान्यत: संक्षिप्त लेख की क्रियाएं भूतकालिक हुआ करती है।
9. यदि संक्षिप्त लेख लिखने के बाद उसका एक छोटा-सा उपयुक्त शीर्षक दे दया जाय तो, संक्षेपण के आशय को समझने में प्रत्यक्ष सहायता मिलती है, जिस से उसे विषय वस्तु के बारे में एक संकेत मिल जाता है।
10. कभी-कभी मूल संदर्भ में एक ही बात पृथक्-पृथक् भागों में लिखी जाती हैं। जगह-जगह बिखरी सामग्री या तथ्यों को संक्षेपण में एक ही स्थान पर संयोजित कर देना चाहिए। ऐसा करने से संक्षेपण में पुनरावृत्ति नहीं हो पाती है क्योंकि संक्षेपण में पुनरावृत्ति को एक दोष के रूप में देखी जाती है। 10.
11. संक्षेपण तैयार करने के बाद अंत में संक्षेपण को एक बार पुनः मूल अंश तथा संक्षिप्त लेख को अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि सभी महत्वपूर्ण अंशों का पुनरावलोकन हो सके जिससे इस बात की संतुष्टि रहेगी कि कोई महत्वपूर्ण तथ्य छूटा नहीं है। पूर्णत: आश्वस्त होने के बाद ही संक्षेपण को अंतिम रूप दिया जाता है।
संक्षेपण के प्रकार
संक्षेपण मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं
1. निरंतरता-बद्ध अनुकथन संक्षेपण विधि :- इस विधि से किसी लेख, भाषण, आख्यान या पत्र-व्यवहार का संक्षेपण किया जाता है। इस संक्षेपण-विधि में यह ध्यान रखा जाता है कि संक्षेपण मूल अंश का एक तिहाई रहे। उसमें लेख, भाषण आदि उद्धृत सभी आवश्यक बातों का समाहार हो।
2. सारणीबद्ध संक्षेपण :- इसे ‘तालिका संक्षेपण’ भी कहा जाता है। इस संक्षेपण विधि का प्रयोग सामान्यतः एक ही विषय से सम्बद्ध अनेक पत्रादि की प्राप्ति के कारण किया जाता है, वैसे आवश्यकता पड़ने पर एक पत्र का भी सारणीबद्ध संक्षेपण किया जाता है। इस विधि से किए जानेवाले एक या अनेक पत्रों का संक्षेपण कॉलमों की तालिका । सारणी के रूप में किया जाता है। तालिका । सारणी का यह रूप हो सकता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *