संथाल विद्रोह भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरूद्ध सशस्त्र जन प्रतिरोध का आदर्श प्रस्तुत करता है। स्पष्ट करें।

संथाल विद्रोह भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरूद्ध सशस्त्र जन प्रतिरोध का आदर्श प्रस्तुत करता है। स्पष्ट करें।

( 45वीं BPSC / 2002 )
अथवा
संथालों के इतने बड़े पैमाने पर सशस्त्र विद्रोह करने के मूल कारणों एवं परिणामों की चर्चा करते हुए प्रश्न में प्रयुक्त वाक्य के आधार पर निष्कर्ष लिखें
संथाल विद्रोह ( 1855-56)
>  नेता- सिद्धू एवं कान्हू
> क्षेत्र – भागलपुर, मानभूम एवं राजमहल की पहाड़ियों के आदिवासी
> कारण – जमींदारों एवं साहूकारों द्वारा शोषण, अत्याचार साथ ही पुलिस का दमन इनके परंपरागत जमीन से इन्हें बेदखल किया जाना । प्रारंभ में ये आधुनिक छोटानागपुर के आसपास बसे थे। लेकिन 1793 की भूमि के स्थायी बंदोबस्त से ये राजमहल की पहाड़ियों में चले गए। लेकिन वहां भी जमींदारों ने अपना दावा किया
> परिणाम – अंग्रेजों ने इस आंदोलन को निर्ममता पूर्वक कुचल दिया। कैप्टन फगान के नेतृत्व में पैलापुर के मुठभेड़ में कान्हू मारा गया एवं सिद्धू पकड़ा गया
> क्षेत्र का शासन गर्वनर जनरल के अधीन कर इसे ‘बहिर्गत क्षेत्र’ (Excluded Area) घोषित किया गया। यह क्षेत्र ‘संथाल परगना’ कहलाया
उत्तर – प्लासी की लड़ाई (1757) के पश्चात अंग्रेजों
के अनेक सशस्त्र संघर्ष वनवासियों अथवा जनजातियों के साथ हुए। इन संघर्षों में संथालों का संघर्ष अद्वितीय है। पहली बार इतने व्यापक एवं संगठित विद्रोह का सामना अंग्रेजों को करना पड़ा।
 स्वतंत्रताप्रिय एवं जागरूक संथाल जनजाति मूलतः आधुनिक छोटानागपुर के दक्षिण में बसे हुए थे। वे इस क्षेत्र में खेती-बाड़ी किया करते थे एवं अपने परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन करते थे। लेकिन 1793 की भूमि के स्थायी बंदोबस्त से अब यह भूमि जमींदारों की हो गई थी। इस कारण से ये राजमहल की पहाड़ियों में रहने लगे एवं बड़े परिश्रम से यहां की भूमि को उपजाऊ बनाया। परंतु, इस पर भी जमींदारों ने अपना दावा किया। इसके साथ ही वे साहूकारों के अत्याचार एवं पुलिस दमन के भी शिकार हुए।
इन्हीं अत्याचारों ने भयंकर असंतोष का रूप ले लिया, जो 1855-56 में एक सशस्त्र विद्रोह के रूप में प्रकट हुआ, जिसमें भागलपुर, मानभूम, राजमहल की जनजातियों ने भाग लिया। लगभग 400 गांवों के दस हजार संथाल धनुष, बाण, भाले, तलवार लेकर भगनीडीह गांव में एकत्रित हुए और उन्होंने सिद्धू एवं कान्हू दो भाइयों के नेतृत्व में स्वतंत्रता की घोषणा की- “अब हमारे ऊपर कोई सरकार, थानेदार, हाकिम नहीं है, संथाल राज्य स्थापित हो गया है । “
इनके आक्रमण के मुख्य केन्द्र महाजन, जमींदार व भूमिकर अधिकारी के घर, रेलवे स्टेशन, डाकघर, पुलिस और अंग्रेजों की फैक्ट्रियां थीं।
 इस विद्रोह की सबसे बड़ी विशेषता इनका संगठित होकर लड़ना था। इन्होंने सिद्धू, कान्हू के नेतृत्व में 60,000 संथालों की सेना बनाई एवं स्थान-स्थान पर अंग्रेजों की बस्तियों पर आक्रमण किए। उनका नारा था- ‘जमींदार, महाजन, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का नाश हो।’ कुछ ही समय में आंदोलन ने भयंकर रूप धारण कर लिया। जमींदारों, महाजनों एवं अफसरों की क्रूर हत्याएं की गईं, यहां तक की महिलाओं एवं बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। विद्रोहियों ने भागलपुर एवं राजमहल के बीच रेल एवं डाक सेवाओं को खत्म कर दिया।
सरकार ने भी संथालों के सशस्त्र विद्रोह को कठोरता से दमन करने का निश्चय किया। कैप्टन फगान के नेतृत्व में पैलापुर नामक स्थान पर हुए मुठभेड़ में ‘कान्हू’ सहित संथालों के कई प्रमुख नेता मारे गए। ‘सिद्धू’ को भी बाद में पकड़ लिया गया। सरकार के ‘मार्शल लॉ’ लागू करने एवं अनेक संघर्षों के बाद धीरे-धीरे विद्रोह शिथिल होता गया। इस सशस्त्र क्रांति में लगभग 10,000 संथाल मारे गए। यह सशस्त्र क्रांति भारत में ब्रिटिश राज्य के लिए लावे की तरह साबित हुई।
क्रांति के बाद इस क्षेत्र का शासन सीधे भारत के गवर्नरर जनरल के अधीन कर दिया गया। इसे ‘संथालपरगना’ नाम दिया गया और संथालों को विशेष सुविधाओं के बहाने इसे एक ‘बहिर्गत क्षेत्र’ (Excluded Area) घोषित किया गया।
अतः संथाल विद्रोह सिर्फ एक जनजातीय विद्रोह नहीं था, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ संपूर्ण संघर्ष में एक प्रेरणा स्रोत था। इसके बाद के अनेक जनजातीय विद्रोह इससे प्रेरित रहे एवं क्रांतिकारी आतंकवाद में विश्वास रखने वाले क्रांतिकारी संथालों एवं उनके नेता सिद्धू-कान्हू के प्रशंसक रहे ।
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