समाज के विशेष संदर्भ में ज्ञान प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों की व्याख्या कीजिए ।

समाज के विशेष संदर्भ में ज्ञान प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों की व्याख्या कीजिए । 

उत्तर—ज्ञान के रूप में समाज के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं—
(1) रीतियाँ–रीतियाँ अथवा प्रथाएँ कार्य करने के वे तरीके हैं जिनका किसी समूह अथवा समुदाय में एक लम्बे समय से प्रचलन रहा है। यह रीतियाँ व्यवहार के लगभग सभी क्षेत्रों में पायी जाती हैं, जैसे खान-पान, विवाह, वृद्ध व्यक्तियों से मिलने, शिक्षा प्राप्त करने, संस्कारों को पूरा करने, बातचीत करने और इसी प्रकार लगभग प्रत्येक कार्य को करने के लिये कुछ विशेष रीतियाँ होती हैं । हिन्दू समाज में वैवाहिक रीतियाँ पति-पत्नी के सम्बन्धों में एक विशेष प्रकार का स्थायित्व उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार हिन्दू समाज के संस्कार बच्चे में जिन उच्च सांस्कृतिक सम्बन्धों को जन्म देते हैं, वे भी अन्य समाजों में नहीं पाये जाते । इस प्रकार सम्बन्धों का रूप निर्धारित करने में रीतियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
(2) समूह तथा विभाग–हमारे सम्बन्ध किसी एक संस्था अथवा एक व्यक्ति द्वारा ही प्रभावित नहीं होते बल्कि उनकी स्थापना में इस प्रकार की सैकड़ों इकाइयों का योगदान होता है। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, गाँव, कस्बा, नगर, प्रान्त, समितियाँ तथा तरह-तरह के संगठन आदि विभिन्न सामाजिक विभाग हैं। इनमें से प्रत्येक विभाग का रूप हमारे सम्बन्धों को प्रभावित करता है । यह सभी इकाइयाँ जितनी अधिक संगठित और उपयोगी होती हैं, समाज का रूप भी उतना ही व्यवस्थित हो जाता है ।
(3) मानव व्यवहार के नियंत्रण–सामाजिक सम्बन्धों को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए व्यक्तियों तथा समूहों के व्यवहारों पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। नियंत्रण दो प्रकार के हो सकते हैं— औपचारिक तथा अनौपचारिक । उदाहरण के लिए कानून, प्रचार और प्रशासन औपचारिक नियंत्रण को स्पष्ट करता है जबकि धर्म, प्रथा, नैथ्तकता व जनरीतियाँ आदि नियंत्रण की औपचारिक विधियाँ हैं। नियंत्रण के यह दोनों स्वरूप अनेक आदेशों और निषेधों के द्वारा सामाजिक सम्बन्धों को व्यवस्थित रखने का प्रयत्न करते हैं ।
(4) कार्य प्रणालियाँ–कार्य प्रणालियों से मैकाइवर का अभिप्राय व्यवहार के नियमों अथवा विभिन्न संस्थाओं से है । हम प्रत्येक सम्बन्ध को स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारे नियम अथवा संस्थाएँ इस प्रकार के सम्बन्ध की अनुमति प्रदान करती हैं अथवा नहीं। अधिकतर सदस्यों से यह आशा की जाती है कि वे इन्हीं प्रणालियों के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करेंगे। इन कार्य प्रणालियों की प्रकृति इस प्रकार की होती है जिनकी सहायता से उस समाज के सदस्य अपनी आवश्यकताओं को नियमबद्ध रूप से पूरा कर सकें।
(5) अधिकार–प्रत्येक समाज में कुछ व्यक्तियों के सम्बन्ध अधिकार के होते हैं और कुछ व्यक्तियों के सम्बन्ध अनुसरण करने वालों के, इसके फलस्वरूप कोई भी व्यक्ति अनियंत्रित रूप से सम्बन्धों की स्थापना नहीं कर पाता। अधिकार की धारणा प्रत्येक छोटे-बड़े समूह में पायी जाती है, जैसे राज्य में राजा अथवा प्रभुसत्ता, परिवार में मुखिया आदि। आरम्भिक समय में अधिकार की धारणा थोड़े से व्यक्तियों, जैसे गाँव के मुखिया अथवा कबीलों के सरदारों के हाथों में केन्द्रित थी, फलस्वरूप समाज का रूप बहुत सरल था। आधुनिक समाजों में अधिकार की व्यवस्था बहुत जटिल और विस्तृत हो गयी है। इसका रूप हमें कानूनों पर आधारित कार्यपालिका और न्यायपालिका के संगठन में देखने को मिलता है । इसके फलस्वरूप समाज का रूप भी काफी जटिल हो गया है। इससे स्पष्ट होता कि अधिकार की धारणा के कारण विभिन्न समाजों की प्रकृति ही भिन्न-भिन्न नहीं हो जाती बल्कि इसी के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में व्यवस्था भी बनी रहती है ।
(6) पारस्परिक सहयोग–पारस्परिक प्रणालियों में वृद्धि होने से समाज का विकास होता है और सहयोग के अभाव में समाज छिन्नभिन्न होने लगता है। सभ्यता के मध्य स्तर तक पारस्परिक सहयोग की भावना एक छोटे-से समूह तक ही सीमित थी तथा इसी कारण समाज का आकार भी सीमित था । वर्तमान समय में पारस्परिक सहयोग का क्षेत्र बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण समाज का आकार भी बहुत विस्तृत हो गया है। अतः सहयोग के अभाव में व्यवस्थित सामाजिक सम्बन्धों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
(7) स्वतंत्रता–कोई भी सामाजिक व्यवस्था अपने सदस्यों पर अधिक नियंत्रण लगाकर अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकती। स्वस्थ सम्बन्धों का विकास होने के लिए यह आवश्यक है कि समूह के सदस्य स्वतंत्रता का भी अनुभव करें। प्रत्येक समाज में सदस्यों के व्यवहारों पर अनेक प्रकार से नियंत्रण लगाया जाता है, लेकिन साथ ही उन्हें अनेक क्षेत्रों में स्वतंत्रता भी दी जाती है जिससे वे विचार-विमर्श के द्वारा अपने सम्बन्धों को अधिक व्यवस्थित बना सकें। इसी के फलस्वरूप सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होने पर सुधार कार्य सम्भव हो पाता है।
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