सम्प्रेषण क्या है ? सम्प्रेषण के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए ? कक्षा-कक्ष में प्रभावी सम्प्रेषण हेतु आप किन किन सिद्धान्तों का प्रयोग करेंगे ?
सम्प्रेषण क्या है ? सम्प्रेषण के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए ? कक्षा-कक्ष में प्रभावी सम्प्रेषण हेतु आप किन किन सिद्धान्तों का प्रयोग करेंगे ?
उत्तर— सम्प्रेषण शब्द के अन्तर्गत ‘प्रेरण’ क्रिया प्रभावी होती है, जिसका अर्थ होता है किसी संदेश, वस्तु, विचारकी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना । सम्प्रेषण की प्रक्रिया प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता के मध्य समान रूप से संचालित होती है तथा दोनों ही प्रक्रिया की सफलता के लिए समान रूप से उत्तरदायी होते हैं ।
अतः हम कह सकते हैं कि सम्प्रेषण प्रेषण करने की, अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की, दूसरों की बातें सुनने की, विचार विनिमय करने की, अम्वृित्तियों, संवेदनाओं, विचारों तथा सूचनाओं एवं ज्ञान के विनिमय करने की प्रक्रिया है। ।
न्यूमन तथा समर के अनुसार, “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा विचारों तथ्यों, मतों अथवा भावनाओं का आदान-प्रदान की कला है । “
कीथ डेविस के अनुसार, “सम्प्रेषण सूचनाओं एवं समझ की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की प्रक्रिया है । “
लूगीस एवं वीगल के अनुसार, “सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत सूचनाओं, निर्देशों तथा निर्णयों द्वारा लोगों के विचारों, मतों तथा अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाया जाता है।”
सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्त्व – सम्प्रेषण प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्त्वों का होना आवश्यक होता है—
(1) सम्प्रेषण सन्दर्भ-सम्प्रेषण सन्दर्भ के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं का समावेश होता है—
(a) समय सन्दर्भ में (जैसे- दिन का समय तथा समयावधि)
(b) सामाजिक सन्दर्भ में विद्यालय या कक्षा का वातावरण
(c) भौतिक सन्दर्भ में (स्कूल, शिक्षण कक्ष आदि)
(d)मनोवैज्ञानिक सन्दर्भ में (औपचारिकता अनौपचारिकता)
(2) सन्देश ग्रहणकर्त्ता – सन्देश ग्रहणकर्ता वह व्यक्ति होते हैं जो सम्प्रेषण प्रक्रिया का मुख्य भाग होते हैं जैसे—छात्र, श्रोता, दर्शक, पाठक आदि। अतः ये सभी तत्त्व सम्प्रेषण प्रक्रिया के लिए आवश्यक
(3) संकेत या प्रतीक – इन प्रतीकों के माध्यम से किसी अन्य चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा ये शाब्दिक एवं अशाब्दिक भी हो सकते हैं। शब्द, स्वयं में एक संकेत या प्रतीक के रूप में होते हैं।
(4) सन्देश का स्रोत – व्यक्ति, शिक्षक आदि के माध्यम से शाब्दिक या अशाब्दिक रूप से जो संकेत दिए जाते हैं वह सन्देह स्रोत कहलाते हैं। सम्प्रेषण स्रोत से ही सम्प्रेषण प्रक्रिया प्रारम्भ होती है जिसका निर्धारण विषय-वस्तु के आधार पर होता है। सन्देश के उचित प्रभाव के लिए सन्देश भेजने वाला सन्देशों का उचित माध्यम से सम्प्रेषण करता है।
(5) पृष्ठ पोषण – सम्प्रेषण प्रक्रिय में पृष्ठ- पोषण वह प्रत्युत्तर होता है जो सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रदान किया जाता है। जैसे— सन्देश के विषय में अपने मत प्रस्तुत करना आदि है।
(6) सन्देश – सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश एक उद्दीपक ( Stimulus) होता है जिसका प्रेषण सन्देश भेजने वाले के माध्यम से किया जाता है। सन्देश, मौखिक, लिखित, सांकेतिक आदि रूपों में भी हो सकता है इसके अतिरिक्त यह पोस्टर या चार्ट अथवा पैम्पलेट के रूप में प्रेषित किया जा सकता है।
(7) एनकोडिंग – एनकोडिंग की प्रक्रिया में किसी विचार या भावना की अभिव्यक्ति हेतु विशेष संकेतों या प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।
(8) डीकोडिंग – इस प्रक्रिया में सन्देश स्रोत से प्राप्त संकेतों या प्रतीकों का मूल अनुवाद में परिवर्तन कर सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश ग्रहण करता है ।
(9) सम्प्रेषण का माध्यम – जिन साधनों की सहायता से सन्देश, सन्देश स्रोत आदि को सन्देश प्राप्त करने वाले तक पहुंचाया जाता है, सम्प्रेषण के माध्यम कहलाता है। सम्प्रेषण के माध्यम द्वारा सन्देशों को भौतिम रूप से प्रेषित किया जाता है। सम्प्रेषण के कुछ प्रमुख उदाहरणरेडियो, तार, स्टूडियो, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, पत्र आदि हैं।
सम्प्रेषण की प्रक्रिया – सम्प्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से दो मनुष्यों में मानवीय सम्बन्ध पित एवं दृढ़ होते हैं । सम्प्रेषण के बिना मनुष्य अपने सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया को हम निम्न चित्र द्वारा भली-भाँति समझ सकते हैं—
इस चित्र के अनुसार स्रोत से संदेश लिखित या मौखिक रूप से किसी न किसी माध्यम द्वारा प्रेषित किया जाता है। सम्प्रेषित सन्देश जहाँ पहुँचता है वहाँ उसे पढ़कर जिसका सन्देश है उसे पहुँचा दिया जाता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया के घटकों को समझने के बाद ही उसकी प्रक्रिया को समझा जा सकता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया के घटक निम्न हैं—
(a) सम्प्रेषण स्रोत – यह सम्प्रेषण प्रक्रिया का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है इसके बिना सम्प्रेषण की प्रक्रिया शुरू प्रारम्भ करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह सम्प्रेषण प्रक्रिया का वह प्रारम्भिक बिन्दु है जिसके विचारों तथा भावों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है।
(b) सम्प्रेषण सामग्री – स्रोत अपने भावों विचारों को जिस रूप में माध्यम तक पहुँचाता है उसे सम्प्रेषण सामग्री कहते हैं। सम्प्रेषण की प्रक्रिया पर सामग्री की गुणवत्ता का बहुत असर होता है क्योंकि सामग्री जितनी प्रभावशाली होगी सम्प्रेषण उतना ही दृढ़ होगा ।
(c) सम्प्रेषण माध्यम – सम्प्रेषण माध्यम वे होते हैं जिनके प्रयोग से अपने भावों को दूसरों तक पहुँचाया जाता है। माध्यमों द्वारा प्राप्त भावों को समझकर प्राप्तकर्त्ता अपनी अनुक्रिया प्रकट करता है। ये लिखित, मौखिक, शाब्दिक व अशाब्दिक माध्यम किसी भी रूप में हो सकते हैं ।
(d) प्राप्तकर्त्ता – सम्प्रेषण की प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक उसमें प्राप्तकर्त्ता न हो । स्रोत द्वारा प्रेषित भावों को जिस व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया जाता है उसे प्राप्तकर्ता कहते हैं। प्राप्तकर्त्ता की रुचि, योग्यता एवं दक्षता आदि का प्रभाव सम्प्रेषण प्रक्रिया पर भी पड़ता है । अतः सम्प्रेषण करने हेतु प्राप्तकर्ता का पूर्ण सक्षम, क्रियाशीलता एवं अभिप्रेरित रहना आवश्यक है।
सम्प्रेषण के सिद्धान्त—
(1) सक्षमता एवं योग्यता का सिद्धान्त – उत्तम सम्प्रेषण हेतु सम्प्रेषणकर्त्ता में उचित योग्यता एवं क्षमता का होना आवश्यक होता है।
(2) सम्प्रेषण सामग्री की उपयुक्तता का सिद्धान्त— सम्प्रेषण प्रक्रिया के दौरान सम्प्रेषणकर्त्ता द्वारा सम्प्रेषित की जोन वाली सामग्री की उपयुक्तता अत्यधिक आवश्यक होती है। पर्याप्त योग्यता के होते हुए भी शिक्षक में यदि उपयुक्त सम्प्रेषण कौशल एवं अधिगम अनुभवों का आवश्यक ज्ञात नहीं होगा तो सम्प्रेषण का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
(3) भागीदारी एवं अन्तः क्रिया का सिद्धान्त – सम्प्रेषण एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है इसलिए सम्प्रेषण प्रक्रिया में दोनों पक्षों के मध्य भागीदारी एवं सहयोग होना आवश्यक होता है। सम्प्रेषण में जिसकी जितनी अधिक भागीदारी रहेगी सम्प्रेषण उतना ही अधिक प्रभावपूर्ण होगा।
(4) सम्प्रेषण में सहायक और बाधक तत्त्वों का सिद्धान्त – सम्प्रेषण की प्रक्रिया में बाधक एवं सहायक तत्त्वों एवं परिस्थितियों का सम्बन्ध सम्प्रेषण के स्रोत एवं ग्राहक के मध्य होता है। एक ओर जहाँ ये तत्त्व अध्यापक एवं विद्यार्थियों को अपने तरीकों से सम्प्रेषण संचार में जैसे प्रकाश सहायता प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर विभिन्न कमियों, की कमी, शोरगुल आदि के रूप में बाधक तत्त्व सम्प्रेषण में बाधा डालते है।
(5) अभिप्रेरणा एवं तत्परता का सिद्धान्त – सम्प्रेषण प्रक्रिया के समय सम्प्रेषणकर्त्ता (Communicator) और सम्प्रेषण ग्रहण करने वाले व्यक्ति दोनों को सजग, तत्पर एवं अभिप्रेरित रहना चाहिए ।
(6) उचित पृष्ठपोषण का सिद्धान्त – सम्प्रेषण कितना प्रभावी हुआ है या नहीं? इस बात की जानकारी सम्प्रेषणकर्त्ता को तभी प्राप्त हो सकती है जब सम्प्रेषण प्राप्त करने वाले व्यक्ति से उचित पृष्ठ-पोषण प्राप्त होता रहे।
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