सविनय अवज्ञा आंदोलन में बिहार के विभिन्न सामाजिक वर्गों की भूमिका का मूल्यांकन
सविनय अवज्ञा आंदोलन में बिहार के विभिन्न सामाजिक वर्गों की भूमिका का मूल्यांकन
( 45वीं BPSC/2002) करें।
अथवा
आंदोलन का वर्णन करते हुए उसमें महिलाओं, कृषक वर्गों, मजदूर वर्गों, शिक्षित मध्यम वर्गों के योगदान को रेखांकित करें।
> प्रस्ताव 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित हुआ।
> 12 मार्च, 1930, दांडी यात्रा, 6 अप्रैल, 1930 को आंदोलन प्रारंभ।
> 15 अप्रैल, 1930 को बिहार के चंपारण एवं सारण जिलों से आंदोलन प्रारंभ।
> 4 मई, 1930 को गांधी जी की गिरफ्तारी ।
> 9 मई, 1930 को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने विदेशी वस्त्रों और शराब की दुकानों के आगे धरना देने का प्रस्ताव रखा।
> छपरा जेल के कैदियों ने ‘नंगी हड़ताल’ की ।
> चौकीदारी कर बंद आंदोलन हुए।
> 5 मई, 1931- गांधी-इरविन समझौता एवं द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की विफलता पर आंदोलन पुनः सक्रिय।
> आंदोलन में महिलाओं, कृषकों, शिक्षित मध्यम वर्गों का मुख्य योगदान रहा। मुसलमानों एवं श्रमिकों की अपेक्षाकृत कम भागीदारी ।
उत्तर – सविनय अवज्ञा आंदोलन गांधीवादी आंदोलन का अगला पड़ाव था जिसका देशभर में व्यापक प्रभाव पड़ा। इसका प्रस्ताव 1929 में लाहौर में कांग्रेस के अधिवेशन में लाया गया एवं गांधी जी के नेतृत्व में इस आंदोलन को चलाने का निर्णय लिया गया। इसी अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ का प्रस्ताव भी पास हुआ और 26 जनवरी को ‘स्वाधीनता दिवस’ मनाने का फैसला लिया गया। 26 जनवरी, 1930 को बिहार में भी स्वाधीनता दिवस उत्साहपूर्वक मनाया गया, जिसमें छात्रों ने सक्रिय योगदान दिया।
गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा आरंभ की एवं 6 अप्रैल, 1930 को हजारों लोगों के साथ दांडी पहुंचकर नमक कानून तोड़ा। उसके बाद पूरे देश में नमक कानून तोड़े गए। साथ ही सरकार विरोधी व्यापक सक्रियता भी इस दौरान देखी गई। 15 अप्रैल, 1930 को बिहार में नमक सत्याग्रह आरंभ हुआ। चंपारण एवं सारण जिलों में नमकीन मिट्टी से नमक बनाया गया। इसका प्रसार मुजफ्फरपुर, पटना, शाहाबाद आदि क्षेत्रों में भी हुआ। सरकार ने आंदोलन का कठोरता से दमन किया एवं हजारों लोगों को कैद कर लिया गया। 4 मई, 1930 को गांधी जी की गिरफ्तारी के साथ ही आंदोलन और तीव्र हो गया। 9 मई, 1930 को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने विदेशी वस्त्रों और शराब की दुकानों के आगे धरना देने का प्रस्ताव रखा। 16 मई से प्रस्ताव का कार्यान्वयन आरंभ हुआ एवं इस कार्य में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार से प्रेरित होकर छपरा जेल के कैदियों ने विदेशी वस्त्र पहनने से इनकार कर दिया और स्वदेशी वस्त्र न मिलने तक नंगे रहने का निश्चय किया। जब कैदियों को स्वदेशी वस्त्र दिए गए, तब यह ‘नंगी हड़ताल’ खत्म हुई। मई 1930 में सर अली इमाम की अध्यक्षता में ‘पटना स्वदेशी लीग’ की स्थापना हुई।
सविनय अवज्ञा के दौरान बिहार में चौकीदारी कर बन्द करने के लिए भी आंदोलन हुए। इसका विस्तार सारण, चंपारण, शाहाबाद, पूर्णिया, मुंगेर, पटना तथा अन्य जिलों में हुआ। सरकारी दमन चक्र भी जोरों से चला, कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया एवं 30 जून, 1930 को कांग्रेस को अवैध संस्था घोषित कर दिया गया। 5 मई, 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसके तहत अंग्रेजों ने कांग्रेस नेताओं की रिहाई की एवं गांधी जी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की ओर से भाग लेना स्वीकार किया। परंतु इस गोलमेज सम्मेलन के विफल रहने पर आंदोलन पुनः आरंभ हुआ। 4 जनवरी, 1932 को राजेन्द्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद, कृष्ण बल्लभ सहाय आदि गिरफ्तार किए गए। मोतीहारी में गोलीकांड में कई लोग मारे गए। लगभग इसी समय रैम्जे मैक्डोनाल्ड के द्वारा घोषित “साम्प्रदायिक निर्णय (Communal Award) ” के विरुद्ध गांधी जी ने हरिजनों के उद्धार का आह्वान किया। बिहार में हरिजन सेवक संघ की शाखाएं खोली गईं। 12 जुलाई, 1933 को गांधी जी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का प्रस्ताव रखा। बिहार में इसका काफी अच्छा प्रभाव रहा। लगभग 880 सत्याग्रही जेल भेजे गए। आंदोलन की समाप्ति पर इसके प्रभाव निर्णायक रहे और इसके प्रभाव भविष्य के आंदोलनों पर देखे गए।
इस प्रकार बिहार में सविनय अवज्ञा आंदोलन में समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी रही। इस आंदोलन में कृषक वर्गों एवं महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। महिलाओं में विंध्यवासिनी देवी एवं कमल कामिनी देवी आदि ने भाग लिया। असहयोग-खिलाफत आंदोलन की तुलना में इसमें मुसलमानों की भागीदारी कम रही। फिर भी अनेक मुस्लिमों ने अपना योगदान दिया। श्रमिक वर्ग ने इस आंदोलन में पूर्व की तरह उत्साह नहीं दिखाया परंतु मध्यम शिक्षित वर्ग जैसे वकीलों, अध्यापकों, पत्रकारों ने इस आंदोलन में उत्साहपूर्वक भाग लिया एवं आंदोलन को सफल बनाया।
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