सत्याग्रह पर गांधीजी के विचार

सत्याग्रह पर गांधीजी के विचार

(66वीं BPSC/2021 )
उत्तर– “यदि मैं बिल्कुल अकेला भी होउं तो भी सत्य और अहिंसा पर दृढ़ रहूंगा, क्योंकि यही मेरा सबसे आला दर्जे का साहस है जिसके सामने ‘एटम बम’ भी निष्क्रिय हो जाता है।’ –  महात्मा गांधी
एक आंदोलन के दौरान गांधीजी ने लार्ड हंटर के सामने सत्याग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की थी – ” यह ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा के उपायों के एवज में चलाया जा रहा है। अहिंसा सत्याग्रह दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि सत्य तक पहुँचने और उन पर टिके रहने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है । ” गांधीजी के लिए सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधीजी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएं होती हैं। गांधी का मानना था कि ‘सत्याग्रह’ में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है । धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वही दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया – विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण करना। गांधीजी के सत्याग्रह के तीन महत्वपूर्ण तत्व ( हथियार ) रहे हैं, वे हैं- 1. सत्य 2. अहिंसा और 3. साधन-3 -शुद्धि ।
गांधीजी ‘हिंदस्वराज’ में लिखते हैं- “निष्क्रिय प्रतिरोध’ एक चौमुंहा खड़ग है, इसे किसी भी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है, यह उसका भी भला करता है जो इसका इस्तेमाल करता है और उसका भी जिसके विरुद्ध इसका इस्तेमाल किया जाता है। । एक बूंद भी रक्त बहाए बिना, यह दूरगामी परिणाम देता है। न इसे जंग लगती है, न इसे कोई चुरा सकता है।”
सत्याग्रह के संदर्भ में ही ‘यंग इंडिया’ में गांधीजी लिखते हैं- “मेरा निश्चित मत है कि निष्क्रिय प्रतिरोध कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला सकता है…। यह एक उत्तम और बड़ा ही कारगर उपचार है…. यह परम शुद्ध शस्त्र है। यह दुर्बल मनुष्य का शस्त्र नहीं है। शारीरिक प्रतिरोध करने वाले की अपेक्षा निष्क्रिय प्रतिरोध करने वाले में कहीं ज्यादा साहस होना चाहिए। ऐसा साहस यीशु, डेनियल, क्रेंमर, लेटिमर और रिडली में था जिन्होंने चुपचाप पीड़ा और मृत्यु का वरण किया। ऐसा ही साहस टाल्सटॉय में था जिसने रूस के जारों की अवज्ञा करने का साहस किया, जो इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। वस्तुतः एक ही पूर्ण प्रतिरोधकर्ता बुराई के विरूद्ध अच्छाई की विजय के लिए काफी है।” गांधीजी सत्याग्रह को एक तकनीक (अहिंसक हथियार) के तौर पर इस्तेमाल करते थे जो हमेशा चमत्कारिक परिवर्तन के रूप में काम किया है। सत्यघटनाक्रम की सैद्धांतिकी की रोशनी में यदि गांधीजी के सभी सत्याग्रही आंदोलनों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि वे जब भी किसी मुद्दे को उठाते हैं तो सतह पर स्थानीय लगता है, छोटी सी परेशानी का कारक लगता है, लेकिन वास्तविक रूप में वह राष्ट्रीय घटना बन जाता है। गांधी-बोध को राष्ट्रीय-बोध में रूपांतरित कर देता है। सत्याग्रह आंदोलनों के जरिए गांधीजी 1 सतह पर स्थानीय समस्या के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं लेकिन असल में वे राष्ट्रीय स्वाधीनता और राजनीतिक स्वाधीनता का महाआख्यान रचते नजर आते हैं। इसकी बानगी के तौर पर उनके कई सत्याग्रहों को देखा जा सकता है- इनमें बिहार का चंपारण सत्याग्रह, डांडी मार्च या नमक सत्याग्रह, खेड़ा का किसान सत्याग्रह जैसे कई गांधीजी के जीवन के प्रमुख सत्याग्रह हैं जिनमें कई बार तो उन्हें महीने-महीने भर का उपवास भी करना पड़ा।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *