स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका की गम्भीरता से जांच करें। इस संबंध में चुनावी पहचान पत्र किस उद्देश्य से कार्य करता है ?

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका की गम्भीरता से जांच करें। इस संबंध में चुनावी पहचान पत्र किस उद्देश्य से कार्य करता है ?

अथवा

संक्षेप में चुनाव के बारे में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करें। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के संचालन में आयोग की भूमिका की जांच करते हुए इस संदर्भ में चुनावी पहचान पत्र की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर – भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 देश में निर्वाचनों के लिए मतदाता सूची तैयार कराने और चुनाव के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के अधिकार के साथ ही एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 324 के ये शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये निर्वाचन आयोग को चुनाव से संबंधित हर बात पर अंतिम निर्णय लेने की भूमिका सौंपते हैं।
भारत के निर्वाचन आयोग की सहायता करने के लिए प्रत्येक राज्य में एक मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है। निर्वाचन आयोग स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए जिम्मेदार नहीं होता। इसके लिए राज्यों में राज्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं। भारत का निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय या बहु-सदस्यीय भी हो सकता है। 1989 तक निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय था। लेकिन अक्टूबर 1993 से निर्वाचन आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया गया, जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ दो अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं।
निर्वाचन आयोग के प्रमुख कार्य हैं – 
> वह मतदाता सूचियों को अद्यतन तथा निर्माण करने के काम की देख-रेख करता है।
> वह चुनाव का समय और चुनावों का पूरा कार्यक्रम तय करता है ।
>  निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निर्णय लेने का अधिकार है।
> निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उन्हें चुनाव चिन्ह आबंटित करता है।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका – आयोग के पास सीमित कर्मचारी एवं अधिकारी होते हैं। अतः चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनाव संबंधी कार्यों के संबंध में आयोग का पूरी प्रशासनिक मशीनरी पर नियंत्रण हो जाता है। केन्द्र तथा राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों को चुनाव संबंधी कार्य आयोग के नियंत्रण में करना होता है। निर्वाचन आयोग इन अधिकारियों का अपने सुविधानुसार तबादला कर सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी कर सकता है।
अबाध एवं निष्पक्ष चुनाव के संचालन में नौकरशाही की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इन पर चूंकि निर्वाचन आयोग का कड़ा नियंत्रण होता है, अतः ये निष्पक्ष तरीके से अपने कार्यों को करते हैं। सर्वप्रथम चुनाव की विभिन्न तैयारियों, जैसेक्षेत्र में अपराध नियंत्रण, सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था, मतदाता सूची तैयार करवाना, पोलिंग बूथ को चिह्नित करना आदि कार्य करने होते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान निर्वाचन आयोग के निर्देशों के अनुसार राजनीतिक पार्टियों पर नजर रखना तथा आचार संहिता का किसी प्रकार से उल्लंघन न हो इसकी जिम्मेदारी संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों पर ही होती है। शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि भयमुक्त वातावरण बने तथा बूथ कैप्चरिंग आदि की घटना न हो। इसके लिए प्रशासन को सर्तक रहना पड़ता है। इन कार्यों के लिए स्थानीय प्रशासन को पुलिस के अलावा केन्द्रीय पुलिस बल भी उपलब्ध करायी जाती हैं ताकि प्रशासन किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम हो सके। चुनाव के बाद मतपेटी अथवा EVM को मत गणना केन्द्रों तक सुरक्षित पहुंचाना तथा वोटों की गिनती करवाना भी प्रशासन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन में चुनावी पहचान पत्र की भूमिका- भारत निर्वाचन आयोग प्रमुख टीएन शेषन ने अगस्त, 1993 में चुनाव प्रणाली में सुधार करने तथा चुनावों में धन बल अथवा बाहुबल जैसे कदाचार को रोकने के प्रयास में देश के सभी मतदाताओं के लिए मतदाता पहचान पत्र बनाने का आदेश दिया। आयोग ने नवीनतम तकनीकी एवं नवाचारों का लाभ उठाने के लिए मई, 2000 में मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) कार्यक्रम के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए।
> मतदाता पहचान पत्र या ईपीआईसी (मतदाता फोटो पहचान पत्र) निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किया गया एक ऐसा पहचान पत्र है जो सभी योग्य मतदाताओं को चुनाव दिवस पर उनकी मतदाता पहचान को सक्षम करने में मदद करता है। जो लोग पहले से ही मतदाता सूची में नामांकित हैं वे मतदाता पहचान पत्र प्राप्त करने के योग्य हैं जिसे चुनाव कार्ड के रूप में भी जाना जाता है। इन चुनाव कार्डों में व्यक्तिगत विवरण के साथ एक विशिष्ट पहचान संख्या छपी होती है।
>  चुनावी पहचान पत्र से मतदाता की सही पहचान हो जाती है। इससे ‘वन मैन वन वोट’ की अवधारणा सुनिश्चित होती है।
> चुनावी पहचान पत्र के प्रयोग से एक से अधिक बार मत डालने की प्रवृत्ति पर रोक लगी है। इस तरह इसने जाली मतदान पर रोक लगायी है।
> चुनावी पहचान पत्र के द्वारा वही व्यक्ति मत डाल सकता है जिसका विवरण पहचान पत्र में उल्लेखित है। अतः इससे पहचान पत्र धारण करने वाला प्रत्येक भारतीय नागरिक राजनीतिक प्रक्रिया में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकता है।
> चुनावी पहचान पत्र शुरू होने से पहले एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के भी मत डाल सकता था। लेकिन चुनावी पहचान पत्र से अब ऐसा करना संभव नहीं है ।
> चुनावी पहचान पत्र के प्रयोग से चुनाव के दौरान स्थानीय लोगों के बीच होने वाले तनाव के साथ लड़ाई-झगड़ों एवं फर्जी मतदाताओं पर भी रोक लगी है।
इसके अलावा चुनाव कार्ड न केवल चुनावों में वोट डालने के लिए उपयोगी है बल्कि यह बैंक खाता खोलने, नया गैस कनेक्शन करवाने, पासपोर्ट अथवा वीजा कार्ड बनवाने से लेकर ट्रेन यात्रा-हेतु ऑनलाइन आरक्षण के लिए पहचान प्रमाण
और पता प्रमाण के रूप में भी कार्य करता है। आजकल लगभग प्रत्येक सरकारी एजेंसियां, बीमा कंपनियां अथवा बैंक एजेंसियों जैसे बंधक कंपनियां (यदि आप बंधक या किसी अन्य व्यक्तिगत ऋण के लिए आवेदन करने जा रहे हैं) और दावा कंपनियां (बीमा क्लेम) मतदाता पहचान संख्या की मांग करती हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने निवास स्थान के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर जाकर बसता है तो चुनावी तालिका में पंजीकरण के लिए भी एक मतदाता पहचान पत्र आवश्यक होता है। भविष्य में, बायोमेट्रिक रूप का डेटा जैसे डिजिटल हस्ताक्षर और फिंगरप्रिंट चुनाव कार्ड में माइक्रोचिप के अंदर सनिहित किये जा सकते हैं।
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