हरित क्रांति ने भारत में अनाज उत्पादन को बढ़ाया है परंतु इसने अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं।” इसकी व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
हरित क्रांति ने भारत में अनाज उत्पादन को बढ़ाया है परंतु इसने अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं।” इसकी व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
(48-52वीं BPSC/2009 )
उत्तर – भारत में छठे दशक के मध्य में HYV बीजों एवं रासायनिक खादों व नई तकनीकों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई जिसे ‘हरित क्रांति’ नाम दिया गया है। हरित क्रांति के पहले चरण का लाभ पंजाब, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों एवं गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों को ही मिला। लेकिन इसके दूसरे चरण के फैलाव से देश के कई राज्यों एवं गेहूं के अलावा अन्य खाद्यान्न फसलों को भी लाभ मिला। भारत खाद्यान्न की दृष्टि से न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि हम कृषि उत्पादों के निर्यात में भी सक्षम हुए। लेकिन, हरित क्रांति ने अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को भी जन्म दिया है जिसे विभिन्न बिंदुओं से स्पष्ट किया जा सकता है – समृद्ध
1. कृषियोग्य भूमि के अत्यधिक दोहन से भूमि की उत्पादन क्षमता का ह्रास हुआ है। एक ही भूमि पर वर्ष में दो बार फसल प्राप्त करने से भूमि अपनी उर्वरता धीरे-धीरे खोती जा रही है।
2. HYV बीजों एवं रासायनिक उर्वरक के प्रयोग में अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है । फलतः हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में भू-जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है।
3. रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से पर्यावरण तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है।
4. पर्यावरण प्रदूषण के कारण खाद्य पदार्थों एवं भू-जल में विष का स्तर (Toxic level) बढ़ता जा रहा है।
पर्यावरण में होने वाले ये परिवर्तन चिंताजनक हैं। आज स्थिति ये है कि हम हरित क्रांति के दौर में शुरू किए गए उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के प्रयोग के बिना कृषिकार्य नहीं सकते, जबकि हम इसके दुष्परिणामों से अवगत हो चुके हैं। यह हरित क्रांति का ही परिणाम है कि अत्यधिक मशीनीकरण हुआ है एवं इसका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
• हरित क्रांति की पर्यावरणीय समस्याएं –
> अत्यधिक दोहन से भूमि की उर्वरता में कमी ।
> अधिक जल की आवश्यकता के फलस्वरूप भूमिगत जल स्तर का नीचे आ जाना।
> उर्वरकों , कीटनाशकों आदि के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषण |
> खाद्य पदार्थों में विष – स्तर (Toxic level) का बढ़ना।
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