1848 की क्रांति के प्रभावों की समीक्षा कीजिए।
1848 की क्रांति के प्रभावों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर ⇒ 1848 की क्रांति के समय फ्रांस का राजा लुई फिलिप था। उसका प्रधानमंत्री गिजो प्रतिक्रियावादी था। वह किसी भी प्रकार के सुधार का विरोधी था। जनता में व्याप्त घोर असंतोष को जब उसने दबाने का प्रयास किया तब क्रोधित जनता ने राजमहल को घेर लिया। फिलिप को किसी से भी सहायता नहीं मिली जिससे विवश होकर वह राजगद्दी छोड़कर इंगलैंड भाग गया। राजा के भागने के बाद क्रांतिकारियों ने फ्रांस में द्वितीय गणराज्य की स्थापना की। नई व्यवस्था के अनुरूप 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार मिला। मजदूरों को काम दिलाने के लिए राष्ट्रीय कारखाने खोले गए, उन्हें बेकारी भत्ता भी दिया गया। इन कार्यों से श्रमिकों की स्थिति में विशेष सुधार नहीं आया, उनका असंतोष बना रहा। गणतंत्रवादियों का नेता लामार्टिन एवं सुधारवादियों का नेता लुई ब्लॉ था। शीघ्र ही दोनों में मतभेद आरंभ हो गया। नवंबर में द्वितीय गणराज्य का नया संविधान बना। लुई नेपोलियन गणतंत्र का राष्ट्रपति बना। 1848 ई० की क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में एक नए प्रकार के राष्ट्रवाद का उत्थान हुआ जिसका आधार सनिक शक्ति था। 1852 में नेपोलियन ने गणतंत्र को समाप्त कर दिया और स्वयं फ्रांस का सम्राट बन गया।
1848 की क्रांति ने न सिर्फ फ्रांस की पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, आस्ट्रिया, हॉलैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैण्ड, आयरलैंड तथा इगलड भी इस क्रांति से प्रभावित हए। इटली तथा जर्मनी के उदारवाला 7 बढ़ते हुए जन असंतोष का फायदा उठाया और राष्ट्रीय एकीकरण क कीकरण के द्वारा राष्ट्र राज्य की स्थापना की माँगों को आगे बढ़ाया, जो संवैधानिक लोकतत्र लोकतंत्र के सिद्धांत पर आधारित था।