19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत के क्या कारण थे? बिहार के विशेष संदर्भ में इन्डेन्च पद्धति के आलोक में विवेचना कीजिए।

19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत के क्या कारण थे? बिहार के विशेष संदर्भ में इन्डेन्च पद्धति के आलोक में विवेचना कीजिए।

(64वीं BPSC/2019 )
अंग्रेजों के भारत पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद भारतीय संसाधनों के दोहन और उनका निर्गमन के लिए अधिकाधिक मजदूरों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु अंग्रेजों को इन्डेन्चर पद्धति (गिरमिटिया मजदूर) का सहारा लेने की चर्चा करें। 19वीं सदी में बिहार से अधिकाधिक मजदूरों का इसका हिस्सा बनने के कारणों को उजागर करें।
उत्तर– ब्रिटिशकालीन भारत में अपने साम्राज्यवादी हितों को पूरा करने के लिए अंग्रेजों ने भारतीयों का अनेक प्रकार से शोषण किया। जैसे ही 19वीं सदी में भारत का शासन ब्रिटिश के हाथों में प्रत्यक्ष रूप से आ गया था, फलतः धन की निकासी के साथ-साथ भारत से व्यापक स्तर पर श्रमिकों के रूप में भी लोगों को भारत से बाहर ले जाया गया। 19वीं सदी में कई भारतीय व्यापक गरीबी और अकाल से बचने के लिए गिरमिटिया मजदूर बनने को तैयार हो गए। कुछ ने पहले अकेले यात्रा की और कुछ दूसरों ने अपने परिवारों को उन कॉलोनियों में बसने के लिए लाया, जिनमें उन्होंने काम किया था।
1834 में गुलामी के उन्मूलन के बाद भारतीय गिरमिटिया मजदूरों की मांग में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई। वे अफ्रीका और कैरिबियन में चीनी जैसे उच्च मूल्य की फसलों का उत्पादन करने वाले बागानों के लिए, कभी-कभी बड़ी संख्या में भेजे गए थे। वर्ष 1900 में भारत की आबादी करीब 30 करोड़ थी और लगभग तीन करोड़ लोगों को ब्रिटिश द्वारा अपने हितों की पूर्ति के लिए वर्ष 1834 से वर्ष 1937 तक भारत के बाहर भेजा गया। इसके लिए इंडेन्चर पद्धति का सहारा लिया गया। इन्डेन्चर पद्धति एक प्रकार का कान्ट्रैक्ट होता था जिसका प्रयोग श्रमिकों को कुछ भुगतान कर उनकी सेवाएं प्राप्त करने के लिए किया जाता था। यानी यह एग्रीमेंट श्रमिक व ब्रिटिश सरकार की रिक्रूटमेंट एजेंसी के बीच बना था। इसमें दोनों पक्ष सहमत होते थे इसलिए तकनीकी तौर पर इसे गुलामी नहीं कहा गया किन्तु जो अशिक्षित लोग एग्रीमेंट शब्द को बोल नहीं सकते थे वे इसका अर्थ क्या निकालते, इसलिए वे इसे ‘गिरमिट’ कहते थे और इस पर अंगूठा लगाने वाले को ‘गिरमिटिया’ कहा गया। बाद में ब्रिटिश औद्योगिकरण तथा साम्राज्यवादी प्रसार के बाद इस पद्धति को बढ़ावा मिला, साथ ही बंगाल में परमानेंट सेटलमेंट एक्ट के बाद बंगाल के किसानों व मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गई जिसका लाभ उठाकर ब्रितानियों ने तत्कालीन बिहार प्रांत के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों को विश्व के कई सुदूर भागों में स्थानान्तरित कर दिया गया, यथा-मॉरिशस, फिजी, मलेशिया, कैरिबियन द्वीप, सिंगापुर व अफ्रीका आदि । परिणामस्वरूप आज भी भारतीय मूल के लोग विश्व के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं तथा विभिन्न देशों के साथ नीतियों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं।
वर्तमान में भी भारत सरकार द्वारा अप्रवासी भारतीयों के लिए विशेष प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, इसके लिए विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों व दिवसों का संचालन किया जाता है, यथा- ‘भारत को जानो’ कार्यक्रम ‘ओवर-सीज भारतीयों’ के लिए नागरिकता नियम, ‘प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन’ का आयोजन आदि ।
इस तरह इन्डेन्चर पद्धति के माध्यम से बिहार के लोग विश्व के विभिन्न भागों में बसे हुए हैं। 19 वीं सदी में ब्रिटिश की इस समुद्रीय पारंगतता के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं —
औद्योगिक क्रान्ति के चलते नए-नए क्षेत्रों में ब्रिटिश बाजार की पहुंच ।
ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीति के लक्ष्य की पूर्ति के लिए नए क्षेत्रों तक पहुंच। यहां नियंत्रण व कार्य करने के लिए मानव श्रम की आवश्यकता होती है जिसे ब्रिटिश द्वारा भारत से पूरा किया जाता था। फलत: बिहार के श्रमिक विश्व के अनेक भागों में पहुंच गए।
ब्रिटिश की कुशल नौसेना व योग्य अधिकारी के कारण यूरोप व सम्पूर्ण विश्व पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का प्रभाव।
बागानों में काम करने के लिए सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता जिसे ब्रिटेन अपने उपनिवेशों से प्राप्त कर सकता था।
वर्ष 1947 तक ब्रिटिश का एकछत्र शासन स्थापित होना।
भारतीय व अन्य उपनिवेशों के शासन पर पूर्ण नियंत्रण होना ।
बिहार राज्य में उद्योगों का विकास नहीं हो पाने के कारण यहां व्यापक स्तर पर निर्धनता का व्याप्त होना तथा पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता के कारण ‘गिरमिटिया मजदूरों’ के रूप में बिहार से श्रमिक विश्व के अनेक भागों में पहुंच गए।
ब्रिटिश काल में कलकत्ता जैसे प्रसिद्ध बन्दरगाह पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण था जहां से बिहार के श्रमिकों को अच्छी मजदूरी का प्रलोभन देकर समुद्री मार्गों के माध्यम से विश्व के अनेक भागों में आसानी से पहुंचा दिया जाता था।
 यदि 2011 की जनगणना पर गौर करें तो आज भी बिहार में शिक्षा की स्थिति निम्न है और इसका जनसंख्या घनत्व में सर्वाधिक है, जबकि कृषि एवं औद्योगिक विकास दर काफी नीचे है जिसके कारण बिहार में बेरोजगारी और गरीबी आज भी व्यापक स्तर पर व्याप्त है। नतीजतन आज भी भारत के अलावे विश्व के विभिन्न भागों में ये बड़ी संख्या में उपस्थित हैं।
इस प्रकार ब्रिटिशकालीन समुद्र पारियता की नीति के चलते मानव संसाधन के प्रसार को बढ़ावा मिला तथा बिहार से विश्व के विभिन्न भागों में पहुंच गये जिनमें से आज भी अधिकतर ‘ब्लू कॉलर’ जॉब करते हैं। हालांकि ब्रिटिश काल में हुई समुद्र पारयिता की नीति के पीछे ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति को प्रोत्साहन देना था।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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