स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि की मुख्य प्रवृत्तियों ( Trends ) की विवेचना करें।
स्वतंत्रता के बाद भारतीय कृषि की मुख्य प्रवृत्तियों ( Trends ) की विवेचना करें।
(41वीं BPSC/1997 )
अथवा
‘भारतीय कृषि की मुख्य प्रवृत्तियों की विवेचना, ‘ यहां प्रवृत्तियों ( Trends ) का अर्थ भारतीय कृषि की ‘दिशा’ से है।
उत्तर – प्रारंभ से ही कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार एवं अधिकांश भारतीयों की जीविका का प्रमुख स्रोत रहा है। आज भी हमारे देश के GDP में कृषि एवं सहायक क्षेत्र का योगदान लगभग 15% है, जबकि लगभग 58% आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। आज भारतीय कृषि अनेक कमियों के बावजूद स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की तुलना में विकसित अवस्था में है। लेकिन इस अवस्था को प्राप्त करने में भारतीय कृषि अनेक सुधारों की प्रक्रिया से गुजरी है। यदि स्वतंत्रता पूर्व की बात करें तो अंग्रेजों की औपनिवेशिक नीतियों के कारण देश में औद्योगिक विकास की गति एकदम धीमी रही जिससे कृषि पर जनसंख्या का भार अत्यधिक था। जमींदारी प्रथा एवं इसी प्रकार की अन्य व्यवस्थाओं के कारण
कृषि की हालत बुरी थी। अतः जब स्वतंत्रता प्राप्ति हुई तो सर्वप्रथम कृषि-सुधार संबंधी नीति पर विचार किया गया। इस उद्देश्य से प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956) में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गई।
कृषि सुधार के लिए कृषि के ढांचागत सुधार की सर्वप्रथम आवश्यकता थी। भू-धारण पद्धति में जमींदार – जागीरदार वर्ग आदि का वर्चस्व था। ये खेतों में कोई सुधार किए बिना मात्र लगान की वसूली किया करते थे। इसी प्रकार के अन्य सुधारों हेतु सरकार द्वारा मुख्यतः तीन कार्य किए गए
1. जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन – स्वतंत्रता के एक वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन तथा वास्तविक कृषकों को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाये गए। इसी दिशा में भूमि की अधिकतम स्वामित्व सीमा का निर्धारण एक दूसरी नीति थी। इस सुधार से जहां वास्तविक किसानों के अधिकारों की रक्षा हुई, वहीं कृषि उत्पादकता में भी वृद्धि हुई।
2. काश्तकारी सुधार – अनेक राज्यों में काश्तकारों के स्वामित्व अधिकार को प्रदान करने या काश्तकारों द्वारा मुआवजा भरने पर स्वामित्व अधिकार को प्राप्त करने संबंधी वैधानिक प्रावधान किए गए। इसके तहत भू-स्वामी को मिलने वाली लगान का नियमन भी किया गया।
3. कृषि का पुनर्गठन – इसके अंतर्गत भूमि का पुनर्वितरण, चकबंदी तथा सहकारी कृषि पर बल दिया गया है।
इन ढांचागत सुधारों के बाद भी भारतीय कृषि में अपेक्षानुरूप विकास नहीं हुआ । छठे दशक के मध्य में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. नोरमान ई. बोरलॉग एवं भारतीय वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथ के योगदान के फलस्वरूप भारत में हरित क्रांति हुई। हरित क्रांति का तात्पर्य ऊंची उपज वाले बीजों (High Yielding Varieties Seeds HYVs) एवं रासायनिक खादों व नई तकनीक के प्रयोग के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि से है। यद्यपि हरित क्रांति के इस पहले चरण में HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे समृद्ध राज्यों तक ही सीमित रहा, इसके अतिरिक्त HYV बीजों का लाभ केवल गेहूं पैदा करने वाले क्षेत्रों को ही मिल पाया। हरित क्रांति के द्वितीय चरण (1970 के दशक के मध्य से 1980 के दशक के मध्य तक) में HYV बीजों की प्रौद्योगिकी का विस्तार कई राज्यों तक पहुंचा जिससे कई फसलों को लाभ हुआ। अतः हरित क्रांति प्रौद्योगिकी के प्रसार से भारत को खाद्यान उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई। FA
कृषि की वर्तमान अवस्था पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है परंतु अभी भी भारतीय कृषि एवं भारतीय किसान समस्याओं में उलझे हुए हैं। इस कारण सरकार कृषि विकास के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। जैसे- किसानों को उचित दरों पर ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सहकारी ऋण व्यवस्था, नाबार्ड व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना आदि । राष्ट्रीय बीज मिशन, किसान कॉल सेंटर, कृषि व्यावसाय केन्द्रों की स्थापना, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, राष्ट्रीय जैविक कृषि परियोजना आदि भारतीय कृषि के विकास के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं एवं कदम हैं। इससे भारतीय कृषि आधुनिक एवं नवीन प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख होगी।
> वर्तमान में GDP में कृषि एवं सहायक क्षेत्र का योगदान – 15% (लगभग)
> 58% आबादी रोजगार के लिए कृषि पर आश्रित है। (लगभग)
> प्रथम-पंचवर्षीय योजना में कृषि को उच्च प्राथमिकता
• स्वतंत्रता के बाद कृषि में किए गए कुछ सुधार –
> जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन
> कृषि का पुनर्गठन
डॉ. बोरलॉग + डॉ. स्वामीनाथन के योगदान से ‘हरित क्रांति’ का प्रारंभ
> प्रथम चरण (1960-70) – केवल गेहूं एवं कुछ राज्यों को फायदा मिला।
> द्वितीय चरण (1970-80) ज्यादा फसलों एवं राज्यों को फायदा –
• वर्तमान में कृषि एवं कृषकों के लिए योजनाएं
> राष्ट्रीय बीज मिशन
> कृषि व्यावसाय केन्द्रों की स्थापना
> राष्ट्रीय जैविक कृषि परियोजना
> किसान कॉल सेंटर
> राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना
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