फुकुशिमा परमाणु आपदा ने परमाणु तकनीकी के खतरों पर दुनिया का ध्यान पुनः केन्द्रित कर दिया है। भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए, इस रास्ते को त्याग देना, क्या भारत के लिए उपयुक्त होगा? क्या हमारी ऊर्जा की जरूरतें वैकल्पिक स्रोतों से पूरी की जा सकती हैं? व्याख्या कीजिए |
फुकुशिमा परमाणु आपदा ने परमाणु तकनीकी के खतरों पर दुनिया का ध्यान पुनः केन्द्रित कर दिया है। भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए, इस रास्ते को त्याग देना, क्या भारत के लिए उपयुक्त होगा? क्या हमारी ऊर्जा की जरूरतें वैकल्पिक स्रोतों से पूरी की जा सकती हैं? व्याख्या कीजिए |
(53-55वीं BPSC/2012 )
उत्तर – परमाणु ऊर्जा का दो प्रकार से उपयोग किया जा सकता है – एक रचनात्मक तथा दूसरा विध्वंसात्मक | इसके विध्वंसात्मक उपयोग के तहत परमाणु बम बनाकर तथा उसका इस्तेमाल कर काफी जानमाल को क्षति पहुंचाई जा सकती है। जबकि इसके रचनात्मक उपयोग में परमाणु रिएक्टर से विद्युत उत्पादन एवं विभिन्न उपयोगी समस्थानिकों (Isotopes) को प्राप्त किया जाता है।
इस तरह परमाणु ऊर्जा का रचनात्मक उपयोग सही मायने में फलदायी है। लेकिन इस क्रम में यदि परमाणु रिएक्टर में किसी कारणवश दुर्घटना हो जाती है अथवा उसकी खतरा सुरक्षा में पड़ जाती है तो यह परमाणु आपदा के रूप में अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा करती है, जैसे- आनुवंशिक विकृति, चर्म रोग, तंत्रिका तंत्र का बुरी तरह से प्रभावित होना, जीवों की मृत्यु, मृदा – प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा जैव-विविधता का ह्रास आदि। इससे स्पष्ट है कि परमाणु रिएक्टर दुर्घटना तात्कालिक एवं दीर्घकालिक दोनों रूपों में अपने आस-पास की आबादी को पीढ़ी-दर, पीढ़ी प्रभावित करता है। परमाणु आपदा के विनाशलीला क्रम के रूप में इसे अमेरिका के थ्री माइल आइलैण्ड, यूक्रेन के चेरनोबिल तथा जापान के फुकुशिमा परमाणु आपदा क्रम में सहज ही देखा गया।
अतः उपर्युक्त आपदाओं एवं घटनाओं को देखते हुए ऐसा कहा जाने लगा है कि भारत को अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति हेतु परमाणु ऊर्जा आधारित तकनीकी को त्यागकर, ऊर्जा के जरूरतों की पूर्ति हेतु अन्य वैकल्पिक स्रोतों की ओर ध्यान देना चाहिए तथा इससे ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना चाहिए ।
वर्तमान दौर तीव्र आर्थिक विकास का है तथा आर्थिक विकास के लिए विद्युत की पर्याप्त उपलब्धता एक अनिवार्य शर्त है। भारत में विद्युत उत्पादन के विविध स्रोत हैं, यथा- कोयला, प्राकृतिक गैस एवं जल । इसके अतिरिक्त ज्वारीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा तथा बायोमास भी ऊर्जा के कुछ नवीकरणीय साधन हैं। भारत में ऊर्जा उत्पादन में कोयला, प्राकृतिक गैस तथा जल प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। किंतु, कोयला एवं प्राकृतिक गैस के सीमित भंडार हैं जिससे इनके आयात की अनिवार्यता बढ़ जाती है एवं भुगतान संतुलन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही इनके साथ पर्यावरण प्रदूषण, परिवहन एवं कुछ अन्य समस्याएं भी हैं।
जल विद्युत संयंत्रों के संदर्भ में भी कुछ घाएं हैं, जैसे- विस्थापन, पारिस्थितिकी असंतुलन तथा जैव-विविधता का ह्रास आदि।
• गैर-परंपरागत / नवीकरणीय ऊर्जा से संबद्ध समस्याएं
> उपकरणों का अपेक्षाकृत महंगा होना।
> प्रति यूनिट ऊर्जा प्राप्ति पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय ।
> रख-रखाव में तकनीकी की समस्या |
> जागरूकता का अभाव।
> औद्योगिक उपयोग के लिए लागत का और अधिक होना ।
• परमाणु ऊर्जा वैकल्पिक स्रोत के रूप में
> यह अधिक क्षमता युक्त होता है।
> इसे स्वच्छ अथवा सफेद ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। इससे ऊर्जा उत्पादन के क्रम में कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन नहीं होता है।
> इसके बहु-आयामी उपयोग हैं; जैसे- चिकित्सा, कृषि सुधार, उद्योग, पाइपलाइनों में रिसाव का पता लगाना तथा पुरातत्त्व आदि में |
> यह परिवहन की समस्या से मुक्त है।
> भारत में परमाणु ईंधन, थोरियम का पर्याप्त भंडार है।
> इसमें कोयला और प्राकृतिक गैस, जैसे प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं होता।
> परमाणु ऊर्जा संलयन (Fusion) आधारित ऊर्जा होती है जो भारत सहित पूरे विश्व को चिरकालिक ऊर्जा सुरक्षा देने में कारगर है।
इस तरह निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि तीव्र विकास की निरंतरता को बनाए रखने के लिए परमाणु ऊर्जा आधारित तकनीक को त्यागना तर्कसंगत नहीं होगा। इसके लिए जरूरी है केवल परमाणु रिएक्टरों की उचित देखभाल और नियमित रख-रखाव की ।
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