राजस्थान में जनजागरण

राजस्थान में जनजागरण

कांग्रेस की स्थापना

 राजस्थान में कांग्रेस की स्थापना 1887 में राजकीय महाविद्यालय अजमेर के छात्रों द्वारा की गई थी। रामगोपाल कायस्थ, फतेहचन्द खूबिया, हरबिलास शारदा इत्यादि इस संस्था के प्रमुख सदस्य थे
 अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1888 में इलाहाबाद अधिवेशन (अध्यक्ष – जॉर्जयूल) में पहली बार अजमेर का प्रतिनिधि मण्डल सम्मिलित हुआ। प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व गोपीनाथ माथुर और किशनलाल ने किया था।
 प्रारम्भ में कांग्रेस ने देशी रियासतों के प्रति तटस्थ रहने की नीति अपनाई परन्तु महात्मा गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ होने पर राजस्थान में भी इसका प्रभाव बढ़ता चला गया ।

क्रान्तिकारी गतिविधियों का प्रभाव

 राजस्थान में क्रान्तिकारी गतिविधियों की शुरुआत 1905 के स्वदेशी आन्दोलन से मानी जाती है। राजस्थान के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ, राव गोपाल सिंह, रामनारायण चौधरी तथा विजयसिंह पथिक आदि ने किया।
 उत्तर भारत में लाला हरदयाल, रासबिहारी बोस आदि के नेतृत्व में ‘अभिनव भारत’ नामक क्रान्तिकारी संगठन का प्रचार किया जा रहा था। राजस्थान में केसरीसिंह बारहठ, राव गोपालसिंह खरवा और अर्जुनलाल सेठी ‘अभिनव भारत’ के कार्यकर्ता थे।
 राजस्थान के क्रान्तिकारियों का जनक शाहपुरा का बारहठ परिवार माना जाता है।
 1903 में केसरीसिंह बारहठ ने ‘चेतावनी रा चुंगट्या’ नामक सोरठे मेवाड़ महाराणा फतहसिंह को लिखकर भेजे जिसके कारण महाराणा ने दिल्ली दरबार में भाग नहीं लिया।
 क्रान्तिकारी गतिविधियों के व्यापक प्रसार के लिए 1910 में केसरीसिंह बारहठ ने राजपूताने में ‘वीर भारत सभा’ (अभिनव भारत की शाखा) का गठन किया ।
 सशस्त्र क्रान्ति के लिए क्षत्रिय वर्ग का सहयोग प्राप्त करने के लिए केसरीसिंह बारहठ ने ‘क्षात्र शिक्षा परिषद्’ के गठन की योजना बनाई।
 1912 में कोटा के महन्त साधु प्यारेलाल की हत्या करने के आरोप में केसरीसिंह बारहठ को बीस वर्ष की सजा दी गई परन्तु उन्हें 1919 में जेल से मुक्त कर दिया गया।
 1920 में वर्धा में गाँधीजी से मुलाकात के बाद केसरीसिंह बारहठ गाँधीजी के विचारों के समर्थक हो गए।
 अर्जुनलाल सेठी ने क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए 1908 में जयपुर में ‘वर्धमान पाठशाला’ की स्थापना की ।
 दिसम्बर, 1914 में बनारस में क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई। 21 फरवरी, 1915 को क्रान्ति आरम्भ करने की तिथि निश्चित की गई।
 इस योजना के अनुसार ठाकुर गोपालसिंह को ब्यावर पर व विजयसिंह पथिक को नसीराबाद पर कब्जा करना था, परन्तु यह योजना असफल रही और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
 बारहठ परिवार के ठाकुर जोरावरसिंह और कुँवर प्रताप सिंह ने 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में लॉर्ड हार्डिग्ज बम केस में प्रमुख भूमिका निभाई। माना जाता है कि यह बम जोरावरसिंह ने ही फेंका था ।

समाचार पत्रों का प्रभाव

1. राजपुताना समाचार –
 मास्टर कन्हैयालाल द्वारा सम्पादित राजपूताना समाचार पत्र जयपुर से उर्दू व हिन्दी दोनों भाषाओं में साप्ताहिक रूप से प्रकाशित होता था। 1850-60 के दशक में प्रकाशित इस पत्र में जनता के हित एवं सरकार की आलोचना छपती थी ।
2. सज्जन कीर्ति सुधाकर –
 1879 में उदयपुर से प्रकाशित यह हिन्दी साप्ताहिक पत्र मेवाड़ राज्य का सरकारी गजट था। इसमें केवल प्रशासनिक समाचार प्रकाशित होते थे।
3. राजपुताना गजट –
 1885 में अजमेर से मौलवी मुराद अली ने इसका सम्पादन किया। इसने रियासती जनता पर नरेशों के अत्याचारों का प्रकाशन कर जनता में निडरता की भावना पैदा की । हैराल्ड
4. राजपुताना –
 1885 में अंग्रेजी में हनुमानसिंह द्वारा अजमेर से प्रकाशित यह समाचार पत्र राजस्थान के ए. जी. जी. के कार्यों की आलोचना के लिए जाना जाता था।
5. राजस्थान समाचार –
 1889 में यह समाचार पत्र अजमेर से समर्थदान चारण द्वारा प्रकाशित किया जाता था। यह राजस्थान में प्रकाशित प्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र था ।
6. राजस्थान केसरी –
 इस समाचार-पत्र का प्रकाशन वर्धा से 1920 में विजयसिंह पथिक द्वारा किया गया था। बाद में यह समाचार पत्र अजमेर से छपने लगा ।
7. नवीन राजस्थान –
 1922 में राजस्थान सेवा संघ द्वारा अजमेर से प्रकाशित यह समाचार पत्र भीलों और कृषकों पर होने वाले अत्याचारों को प्रमुखता से छापता था । विजयसिंह पथिक ने भी इसका प्रकाशन किया था ।
8. तरुण राजस्थान –
 नवीन राजस्थान पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद 1923 में तरुण राजस्थान का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
9. नवज्योति –
 इस साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन 1936 में अजमेर से रामनारायण चौधरी द्वारा किया गया था। बाद में दुर्गाप्रसाद चौधरी ने इसका संपादन किया।
10. राजस्थान वीकली –
 ब्यावर से 1923 में ऋषिद मेहता द्वारा निकाले जाने वाले इस पत्र ने जनता की समस्याओं को प्रकाशित कर जनमत जागृत किया।
11. आगीवाण –
 जयनारायण व्यास ने 1932 में ब्यावर से यह पत्र निकाला। यह राजस्थानी भाषा का प्रथम राजनैतिक समाचार पत्र था।

सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाएँ

1. देश हितैषणी सभा, 1877 –
 2 जुलाई, 1877 को महाराणा सज्जनसिंह (1874-1884) की अध्यक्षता में उदयपुर में गठन ।
 देश हितैषणी सभा का उद्देश्य वैवाहिक समस्याओं को सुलझाना था। इस सभा ने विवाह एवं त्याग पर खर्च कम करने के लिए वातावरण तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
2. वाल्टर कृत ‘राजपुत्र हितकारिणी सभा’, 1888-1889–
 इस सभा ने विवाह की आयु बढ़ाने, बहुविवाह बंद करने और त्याग के सम्बन्ध में सुझाव दिए तथा मृत्युभोज को सीमित करने का प्रयास किया ।
 परन्तु राजपूताना के कार्यवाहक ए. जी. जी. वाल्टर ने ही इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में रुचि नहीं ली ।
3. सर्वहितकारिणी सभा, 1907 –
 1907 में चूरू में स्वामी गोपालदास ने पं. कन्हैयालाल तथा पं. श्रीराम के सहयोग से स्थापना की ।
 इन्होंने बालिका शिक्षा के लिए ‘सर्वहितकारिणी पुत्री पाठशाला’ तथा हरिजन – शिक्षा के लिए ‘कबीर पाठशाला’ की स्थापना की ।
4. मित्र मण्डल, बिजौलिया –
 साधु सीताराम दास ने बिजौलिया के किसानों में जागृति उत्पन्न करने एवं उनके हितों के संरक्षण के लिए गठन किया ।
 मित्रमण्डल के सदस्य प्रज्ञाचक्षु भंवरलाल ने अपने गीतों के माध्यम से किसानों में जागृति उत्पन्न की। उनका गीत ‘मान मान मेवाड़ा राजा प्रजा पुकारे रे’ बड़ा लोकप्रिय हुआ।
5. वीर भारत सभा, 1910 –
क्रान्तिकारी गतिविधियों के प्रसार के लिए 1910 में केसरीसिंह बारहठ ने वीर भारत सभा की स्थापना की।
यह संगठन राष्ट्रीय क्रान्तिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ की प्रान्तीय शाखा के रूप में काम करता था।
6. विद्या प्रचारिणी सभा, बिजौलिया –
 साधु सीताराम दास ने बिजौलिया में विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना राष्ट्रभक्त तैयार करने के लिए की ।
 1915 में विजयसिंह पथिक ने इसका संचालन संभाला।
7. प्रताप सभा, 1915 –
 महाराणा प्रताप की स्मृति में 1915 में उदयपुर में स्थापना । बलवन्त मेहता ने लम्बे समय तक इसका संचालन किया।
 इस सभा ने राजनैतिक जागृति उत्पन्न करने के लिए वीररस पूर्ण साहित्य का प्रकाशन किया तथा ‘प्रताप पुस्तकालय’ की स्थापना की ।
8. हिन्दी साहित्य समिति, 1912 –
 1912 में जगन्नाथ द्वारा भरतपुर में स्थापना की गई।
 1927 में हिन्दी साहित्य समिति द्वारा भरतपुर में ‘विश्व हिन्दी सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने की। इसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, जमनालाल बजाज आदि ने भी भाग लिया था ।
9. प्रजा प्रतिनिधि सभा, 1918 –
 1918 में कोटा में नागरिकों की शिकायतों को महकमा खास के समक्ष रखने के लिए पं. नयनूराम शर्मा ने ‘प्रजा प्रतिनिधि सभा’ स्थापना की गई।
10. मरुधर मित्र हितकारिणी सभा, 1918 –
 मरुधर मित्र हितकारिणी सभा का गठन 1918 में चाँदमल सुराणा ने जोधपुर में किया था।
 मारवाड़ सेवा संघ के निष्क्रिय हो जाने के बाद 1923 में जयनारायण व्यास ने इस सभा का पुनर्गठन कर ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ नाम दिया।
 1929 में मारवाड़ हितकारिणी सभा ने दो पुस्तकें ‘मारवाड़ की अवस्था’ और ‘पोपाबाई का राज’ प्रकाशित की, जिनमें मारवाड़ प्रशासन की कटु आलोचना की गई।
11. राजपूताना मध्य भारत सभा, 1918 –
 1918 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के समय राजपुताना और मध्य भारत की देशी रियासतों के कार्यकर्ताओं ने जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में दिल्ली के चाँदनी चौक में स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में इस सभा का गठन किया।
 इसका मुख्यालय कानपुर में रखा गया था। गणेश शंकर विद्यार्थी, अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, चाँदकरण शारदा, जमनालाल बजाज इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे।
12. राजस्थान सेवा संघ, 1919 – 
विजयसिंह पथिक ने 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसका मुख्यालय अजमेर में रखा गया।
रामनारायण चौधरी एवं हरिभाई किंकर प्रमुख कार्यकर्ता थे । ha u
13. मारवाड़ सेवा संघ, 1920 – 
 मारवाड़ राज्य के प्रथम राजनीतिक संगठन ‘मारवाड़ सेवा संघ’ की स्थापना 1920 में जयनारायण व्यास ने जोधपुर में की थी । अध्यक्ष – दुर्गाशंकर, मंत्री – प्रयागराज भंडारी ।
14. अमर सेवा समिति, चिड़ावा, 1922 –
 1922 में मा. प्यारेलाल गुप्ता ने शेखावाटी क्षेत्र के खेतड़ी ठिकाने के चिड़ावा कस्बे में ‘अमर सेवा समिति’ गठित की ।
 समाज सेवा, सामाजिक बुराइयों का विरोध और राष्ट्रीय भावना का प्रसार इसके प्रमुख उद्देश्य थे।
15. चरखा संघ, 1927 – 
 1927 में जमनालाल बजाज ने जयपुर में चरखा संघ की स्थापना की। चरखा संघ का उद्देश्य स्वदेशी का प्रचार करना था।
16. राजपूताना देशी राज्य परिषद्, 1928 –
 अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की शाखा के रूप में विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी, केसरी सिंह बारहठ और दामोदरलाल सेठी ने अजमेर में स्थापना की।
 परिषद का प्रथम अधिवेशन 23-24 नवम्बर, 1928 को अजमेर में अमृतलाल सेठी के सभापतित्व में हुआ।
17. जीवन कुटीर, वनस्थली, 1929 – 
 समाज सेवी संस्था ‘जीवन कुटीर’ की स्थापना पं हीरालाल शास्त्री ने तत्कालीन जयपुर रियासत की निवाई तहसील के वनस्थली (वर्तमान में टोंक जिले में ) ग्राम में 12 मई, 1929 को की ।
 जीवन कुटीर का उद्देश्य अपने स्वयं के साधनों से एक नये ग्राम समाज की रचना करना था, जो पूर्णतः स्वावलम्बन पर आधारित हो ।
18. मारवाड़ यूथ लीग, 1931 –
 10 मई, 1931 को जोधपुर में जयनारायण व्यास के निवास पर मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना हुई ।
 इसका उद्देश्य जनता के अधिकारों की माँग करना तथा राज्य के दमन का विरोध करना था ।
19. राजस्थान हरिजन सेवा संघ, 1932 –
 1932 में गाँधीजी ने घनश्यामदास बिड़ला की अध्यक्षता में अखिल भारतीय हरिजन सेवा संघ’ की स्थापना की ।
  बिड़ला ने राजपुताना शाखा (अजमेर) का अध्यक्ष हरविलास शारदा को मनोनीत किया ।
 माणिक्यलाल वर्मा ने अजमेर के पास नरेली गाँव में ‘सेवा आश्रम’ स्थापित किया, जहाँ हरिजन सेवा कार्य करने, खादी कातने-बुनने तथा अपना काम स्वयं करने की शिक्षा दी जाती थी।
20. खांडलाई आश्रम, डूंगरपुर, 1934 –
 माणिक्यलाल वर्मा ने 1934 में सागवाड़ा के निकट भीलों की पालों के मध्य ‘खांडलाई आश्रम’ की स्थापना की ।
 आश्रम द्वारा आदिवासी भीलों एवं हरिजनों में शिक्षा के प्रसार एवं सर्वोन्नमुखी विकास के लिए कार्य किये जाते थे।
21. नागरी प्रचारिणी सभा, 1934-
 1934 में ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु और जौहरीलाल इन्दु ने धौलपुर में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की ।
22. महिला मण्डल, उदयपुर, 1935 –
 दयाशंकर श्रोत्रिय ने 10 नवम्बर, 1935 को उदयपुर में ‘महिला मण्डल’ की स्थापना की ।
 इस संस्था का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से महिलाओं में राजनैतिक चेतना एवं राष्ट्रीय भावना का विकास करना था ।
 महिला मण्डल के संचालन में दयाशंकर श्रोत्रिय की पत्नी कमला श्रोत्रिय का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
23. मारवाड़ लोक परिषद्, 1938 –
 मारवाड़ लोक परिषद् की स्थापना 1938 में जयनारायण व्यास की प्रेरणा से हुई। इसका अध्यक्ष रणछोड़दास गट्टानी को बनाया गया।
 मारवाड़ लोक परिषद का घोषित उद्देश्य था – ‘महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना ।
24. आजाद मोर्चा, 1942 –
 हीरालाल शास्त्री से मतभेद के कारण जयपुर प्रजामण्डल से अलग हुए कार्यकर्ताओं ने 14 – 15 सितम्बर, 1942 को आजाद चौक (चौड़ा रास्ता, जयपुर) में बाबा हरिश्चन्द्र के नेतृत्व में ‘आजाद मोर्चा’ का गठन किया ।
 1945 में जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से आजाद मोर्चा का जयपुर प्रजामण्डल में विलय हो गया ।

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