स्वदेशी पर जोर देकर गांधीजी कौन-सा संदेश देना चाहते थे ?
स्वदेशी पर जोर देकर गांधीजी कौन-सा संदेश देना चाहते थे ?
( 40वीं BPSC/1995)
अथवा
स्वदेशी अर्थात देश के अंदर लघु एवं कुटीर उद्योगों से बने सामान को गांधीजी पसंद करते थे। इस संबंध में उनके विचार एवं मूल संदेशों को लिखें।
> स्वदेशी पर उनके जोर देने का मूल उद्देश्य यह संदेश देना था कि लोग अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का उत्पादन लघु एवं कुटीर उद्योगों के स्तर पर करें जिससे उन्हें रोजगार मिलेगा तथा आर्थिक विकास होगा। साथ ही अंग्रेजों की आर्थिक कमर टूट जाएगी और वो यहां से भागने को मजबूर होंगे।
> गांधी जी आर्थिक क्षेत्र, शिक्षा के क्षेत्र, सभ्यता एवं संस्कृति के क्षेत्र आदि में स्वदेशी के पक्षधर थे।
उत्तर- गांधीजी ने स्वदेशी पर जोर दिया जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके रचनात्मक कार्यों का एक महत्वपूर्ण भाग था। स्वदेशी को उनके राजनीतिक सहयोगियों तथा आम जनता ने अपनाया। गांधी जी सिर्फ स्वदेशी वस्तुओं ही नहीं बल्कि सेवा,
उत्पादन, संस्कृति हर क्षेत्र में स्वदेशी के पक्षधर थे। गांधी के स्वदेशी पर जोर को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत रखा जा सकता है
> आर्थिक क्षेत्र में गांधी स्वदेशी को अपनाना चाहते थे एवं लोगों को प्रेरित करते थे। उनका विचार था कि बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिसमें श्रम की प्रधानता होगी एवं लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिलेगा। श्रमिकों का शोषण नहीं होगा एवं पूंजी का एकत्रीकरण नहीं होगा। समाज में अधिकतम समानता आएगी एवं लोगों का रूझान भौतिकवादी प्रवृति से बचा रहेगा। उन्होंने लोगों को विदेशी कपड़ों के स्थान पर खुद से निर्मित खादी के कपड़ों को पहनने की सलाह दी जिससे लोग जहां आर्थिक रूप से सबल होंगे वहीं अंग्रेजों के भारत से संबंधित बाजार की नीति में भी बाधा होगी। गांधीजी के प्रेरणा से कई कुटीर उद्योग स्थापित हुए एवं लोगों ने खादी कपड़ों को पहनना प्रारंभ किया एवं विदेशी कपड़ों की होली जलाई।
> गांधी जी शिक्षा के क्षेत्र में भी पाश्चात्य शिक्षा पद्धति से असंतुष्ट थे, क्योंकि उसमें मानवीय संवेदनाओं का स्थान कम है। उनके अनुसार पाश्चात्य शिक्षा के कारण हम अपने संस्कारों, संस्कृति, भाषा आदि से दूर होते चले जाएंगे। वे चाहते थे कि लोग अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें। इसलिए उन्होंने हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्न किए।
> गांधी सभ्यता एवं संस्कृति में भी स्वदेशी प्रभाव के पक्षधर थे। वे भारतीय समाज पर पश्चिमी प्रभाव से चिंतित थे। वे दूसरे देश की संस्कृति के विरोधी न होते हुए भी भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी नकारात्मक प्रभाव को गलत मानते थे।
इस प्रकार गांधी जी स्वदेशी पर जोर देकर देशवासियों को आर्थिक रूप से सबल तथा सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक दृष्टिकोण से सुदृढ़ होने का संदेश देना चाहते थे।
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