‘ड्रामा’ क्या है ? समसामयिक भारत में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
‘ड्रामा’ क्या है ? समसामयिक भारत में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर— नाटक (ड्रामा ) का अर्थ – नाटक के स्वरूप के अन्तर्गत नाटक को परिभाषित करने के अतिरिक्त नाटककार के सम्बन्ध में भी कुछ नियम निर्धारित किए हैं। ‘नाटक’ शब्द की व्याख्या उन्होंने इस प्रकार की—
“नाटक शब्द का अर्थ है, नट लोगों की क्रिया अर्थात् विधा के प्रभाव से अपने व किसी वस्तु के स्वरूप में फेर कर देने वाले को व स्वयं दृष्टि रोचन के फिरने को। नाटक में पात्रगण अपना स्वरूपपरिवर्तन करके रानादिक स्वरूप धारण करते हैं या वेश विन्यास के पश्चात् रंगभूमि में स्वीकार्य कार्य-साधन के हेतु फिरते हैं। “
नाटक के सम्बन्ध में भारतेन्दु की मान्यता है कि अभिनेता अभिनय द्वारा जिस कार्य-व्यापार को प्रस्तुत करते हैं, उसी को नाटक कहते हैं । ‘नट’ की क्रिया होने के कारण ‘नाटक’ की सार्थकता है। नट की क्रिया से आशय उसके अभिनय से है।
“दृश्य काव्य की संज्ञा रूपक है, रूपकों में नाटक ही मुख्य है। इससे रूपक मात्र को नाटक कहते हैं।”
अतः नाटक का पारिभाषिक स्वरूप इस प्रकार है- ‘नाटक साहित्य की अभिनय प्रधान विधा है, जिसमें संवाद एवं दृश्यों के माध्यम से विभिन्न चरित्रों, स्थितियों एवं भावों को प्रदर्शित किया जाता है। यह प्रदर्शन साहित्य की अन्य विधाओं एवं कलाओं के विविध रूपों के । सहयोग से और अधिक प्रभाव – पूर्ण हो जाता है ताकि दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों द्वारा रसास्वादन किया जा सकें।”
नाटक का महत्त्व– सम सामयिक भारत में नाटक के महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं—
(1) किसी बात को नाटकों के द्वारा बड़े सरल मनोरंजक और प्रभावपूर्ण ढंग से बताया जा सकता है।
(2) किसी भी घटना को या चरित्र को नाटक खेलकर सफलतापूर्वक और सरलता से समझाया जा सकता है।
(3) नाटक से बालकों का मानसिक तथा बौद्धिक विकास होता है।
(4) नाटक द्वारा छात्रों को शिष्टाचार की शिक्षा मिलती है ।
(5) नाटक अभिनयात्मक खेल है, इसके द्वारा बालक सहज ही सीख लेता है तथा उसका बहुमुखी विकास होता है।
(6) नाटकों के माध्यम से बालकों को विभिन्न समकालीन तथा परिवर्तनशील परिस्थितियों का ज्ञान सफलता से कराया जा सकता है।
(7) बालकों के नैतिक और चारित्रिक विकास में भी नाटकों का अद्भुत योगदान है।
(8) नाटकों का मंचन करते समय सामाजिक महत्त्व का होना जरूरी है। इससे सहयोग की भावना, सामाजिक गुणों का विकास होता है।
(9) नाटकों से छात्रों में सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक राजनीतिक समस्याओं में गति एवं चेतना विकसित होती है।
(10) नाटकों के द्वारा छात्रों को इतिहास, भूगोल, कला, संगीत आदि का ज्ञान भी मिलता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here