प्लेट – विवर्तनिकी सिद्धांत के आधार पर हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कीजिए।
प्लेट – विवर्तनिकी सिद्धांत के आधार पर हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कीजिए।
( 39वीं BPSC / 1993 )
उत्तर – प्लेट – विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी पर्पटी सात बड़ी एवं कुछ छोटी प्लेटों से बनी है। प्लेटों की गति के कारण प्लेटों के अंदर एवं ऊपर की ओर स्थित महाद्वीपीय शैलों में दबाव उत्पन्न होता है। इसके परिणामस्वरूप वलन, भ्रंशीकरण तथा ज्वालामुखीय क्रियाएं होती हैं। सामान्य तौर पर इन प्लेटों की गतियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
1. कुछ प्लेटें एक-दूसरे के करीब आती हैं और अभिसरित परिसीमा का निर्माण करती हैं।
2. कुछ प्लेट एक-दूसरे के करीब आती हैं, तब या तो वे टकराकर टूट सकती हैं या एक प्लेट फिसल कर दूसरी प्लेट के नीचे जा सकती हैं।
3. कभी-कभी वे एक-दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में भी गति कर सकती हैं और रूपांतर परिसीमा का निर्माण करती हैं। इन प्लेटों में लाखों वर्षों से हो रही गति के कारण महाद्वीपों की स्थिति तथा आकार में परिवर्तन आया है।
> प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के आधार पर हिमालय की उत्पत्ति- यह सबसे प्राचीन भू-भाग गोंडवाना भूमि का एक हिस्सा था। गोंडवाना भू-भाग के विशाल क्षेत्र में भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के क्षेत्र शामिल थे। संवहनीय धाराओं ने भू-पर्पटी को अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया और इस प्रकार भारत-आस्ट्रेलिया की प्लेट गोंडवाना भूमि से अलग होने के बाद उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने लगी। उत्तर दिशा की ओर प्रवाह के फलस्वरूप ये प्लेट अपने से अधिक विशाल प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकरायी। इस टकराव के कारण इन दोनों प्लेटों के बीच स्थित ‘टेथिस’ भू-अभिनति के अवसादी चट्टान, वलित होकर हिमालय तथा पश्चिम एशिया की पर्वतीय श्रृंखला के रूप में विकसित हो गये।
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