बंगाल से बिहार के अलग होने एवं आधुनिक बिहार के उदय पर प्रकाश डालिए ।
बंगाल से बिहार के अलग होने एवं आधुनिक बिहार के उदय पर प्रकाश डालिए ।
(46वीं BPSC/2005 )
अथवा
1912 में बिहार, उड़ीसा के बंगाल से अलग होने के विभिन्न कारणों का उल्लेख करें। आधुनिक बिहार के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थिति/विकास की चर्चा करें।
> बिहार के नवाबों एवं अंग्रेजों के काल में बंगाल से संबद्ध रहने के कारण इसका पर्याप्त विकास नहीं हुआ। फलतः इसके बंगाल से अलग करने की मांग की जाती रही ।
> 1911 को दिल्ली के शाही दरबार में बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्रों को बंगाल से पृथक करने की घोषणा हुई ।
> 1 अप्रैल, 1912 को विधिवत बिहार प्रान्त की स्थापना हुई ।
> इसके बाद आधुनिक बिहार का विकास हुआ। 1916 ई. में पटना उच्च न्यायालय एवं 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
> आजादी के बाद श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार में सरकार बनी।
उत्तर- बिहार को पृथक राज्य में परिवर्तित करने की मांग 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में की जाने लगी थी। 1894 में ‘बिहार टाइम्स’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ जिसमें बिहार को पृथक प्रान्त बनाने की मांग रखी गयी । इसी वर्ष बिहार के उपराज्यपाल ‘चार्ल्स इलियट’ को ज्ञापन दिया गया कि बिहार को पृथक प्रांत बनाया जाए। बिहार के अलग राज्य बनाए जाने की मांग कई कारणों से प्रभावित थी। मुगलकाल में बिहार एक अलग सूबा था, बाद में यह बंगाल के नवाबों के प्रभाव में आ गया तथा ब्रिटिश काल में भी यह बंगाल से ही संबद्ध रहा । इसलिए बिहार के उच्च पदों, शिक्षा, व्यवसाय आदि पर बंगालियों का प्रभाव रहा, जबकि बिहारवासी भी इन पदों, व्यवसायों आदि में अपनी भागीदारी बढ़ाना चाह रहे थे। अतः बंगाल की छाया से निकलना आवश्यक था। 1905 में बंगाल विभाजन ने इनकी मांग को एक आधार प्रदान कर दिया। चूंकि बंगाल विभाजन का अधिकारिक कारण प्रशासनिक सुविधा को बताया गया, जबकि प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से बंगाल को विभाजित करने के बदले बिहार को बंगाल से अलग करना ज्यादा उपयुक्त था।
1906 में सच्चिदानंद और महेश नारायण द्वारा पृथक बिहार की मांग के समर्थन में एक पुस्तिका प्रस्तुत की गई। इसी वर्ष राजेन्द्र प्रसाद ने पटना में बिहारी छात्र- सम्मेलन का आयोजन किया। 1908 में बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का पहला अधिवेशन पटना में आयोजित हुआ। इसमें मो. फखरूद्दीन ने बिहार को बंगाल से पृथक कर एक नये प्रांत के रूप में संगठित करने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
इन संस्थाओं एवं समाचार पत्रों-पत्रिकाओं के माध्यम से पृथक बिहार की मांग ने जोर पकड़ा और 12 दिसंबर, को दिल्ली में आयोजित शाही – दरबार में बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्रों को बंगाल से पृथक कर एक नये प्रांत में संगठित करने की घोषणा ब्रिटिश सम्राट द्वारा की गई। 1 अप्रैल, 1912 से विधिवत बिहार प्रान्त की स्थापना हो गई।
बिहार की स्थापना के साथ ही आधुनिक बिहार का तीव्र गति से विकास हुआ। 1916 में पटना उच्च न्यायालय तथा 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। 1917 के चंपारण सत्याग्रह के समय संपूर्ण देश का ध्यान बिहार पर गया एवं इसके बाद बिहार राष्ट्रीय आंदोलन में एक सक्रिय प्रदेश के रूप में जाना जाने लगा।
1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के द्वारा उड़ीसा को अलग प्रांत का दर्जा प्रदान करते हुए 1 अप्रैल, 1936 को बिहार से उड़ीसा प्रांत अलग कर दिया गया। 1937 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी। परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध में बगैर भारतीयों की सहमति के भारत को इस युद्ध में झोंक देने के विरोध में देश के सभी प्रांतों की कांग्रेस सरकार ने इस्तीफा दे दिया। बिहार में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार ने भी इस्तीफा दे दिया और बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली भंग कर दी गई ।
भारत की आजादी के बाद पुनः श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार में सरकार बनी, साथ ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए। यह बिहार के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था।
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