बिहार के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान क्या परिवर्तन हुए ?

बिहार के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान क्या परिवर्तन हुए ?

( 45वीं BPSC/2002)
> सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के कारक
> अंग्रेजों की कार्य-पद्धति
 > ऐतिहासिक तत्व
> अंग्रेजों की आर्थिक नीति और उसका प्रभाव
उत्तर – ब्रिटिश शासनकाल संपूर्ण देश के लिए आर्थिक शोषण, सामाजिक सुधार एवं परिवर्तन का काल था। निश्चित तौर पर ब्रिटिश शासनकाल में नकारात्मक परिवर्तन के साथ ही कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी हुए।
1764 के बक्सर – युद्ध के पश्चात बंगाल के साथ ही बिहार एवं उड़ीसा में द्वैध शासन की स्थापना हुई। द्वैध शासन बिहार के वाणिज्य – व्यापार के पतन का कारण बना, कृषि की हालत बदतर हो गई। भयंकर अकाल एवं गरीबी के कारण कहा जाने लगा था कि ‘जीवित लोग मरे को खा रहे हैं। ‘
क्लाइव द्वारा स्थापित द्वैध शासन को 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने समाप्त किया। बिहार की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था बदहाल हो चुकी थी। एक समकालीन लेखक थियोडोर ने लिखा है- “बिहार बूचड़खाना बन गया है। दुर्दशा और अकाल की लंबी श्रृंखला शुरू हो गई है तथा नंगे लोग सड़क पर घूमते हैं। बिहार का एक तिहाई भाग जंगल के समान हो गया है, जिसमें केवल जंगली जानवर बसते हैं। “
कार्नवालिस ने 1793 ई. में ‘स्थायी बंदोबस्त’ व्यवस्था लागू की जिसमें जमींदारों का एक नया वर्ग पैदा हो गया। नियम के अनुसार निश्चित तारीख को सूर्यास्त से पूर्व लगान जमा न करने वाले जमींदारों की जमींदारी छीन ली जाती थी। इसका असर किसानों पर पड़ा जिनसे लगान वसूलने के लिए हर तरह के जुल्म किए गए। अतः कृषि पर निर्भर बिहार की हालत बिगड़ती चली गई। इसका बुरा प्रभाव सामाजिक स्तर पर भी पड़ा। यद्यपि गरीबी एवं विभिन्न समस्याओं के बावजूद बिहार के नेता स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे। 1942 के आंदोलन में बिहार का योगदान तो अभूतपूर्व रहा। अंग्रेजों के शासनकाल में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश भी लगा, जहां समान दुश्मन ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया, वहीं सती प्रथा, बाल विवाह आदि प्रथाओं पर कुछ अंकुश भी लगा।
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