भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका का विवेचन करें। बिहार में भाषाई संख्यालघुओं ( Linguistic Minorities ) के लिए प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका का विवेचन करें। बिहार में भाषाई संख्यालघुओं ( Linguistic Minorities ) के लिए प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका के नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलुओं की चर्चा करें। बिहार के भाषाई संख्यालघु कौन हैं एवं उनके लिए विशेष प्रावधान क्या है का वर्णन करें ?
उत्तर- भारत एक बहुभाषी देश है जहां कुछ भाषा करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जबकि कुछ भाषा कम लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। संविधान में अनुच्छेद 344 के अंतर्गत प्रारंभ में 14 भाषाओं को राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी जिसे बाद में बढ़ाकर 22 कर दिया गया।
भारतीय राजनीति में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है। दक्षिण भारत की कुछ राजनीतिक पार्टियों ने तो अपनी राजनीति चमकाने के लिए हिन्दी विरोधी रवैया अपनाया। 1956 में भाषा के आधार पर तेलुगू भाषी क्षेत्र को आन्ध्र-प्रदेश नामक एक अलग राज्य बनाया गया। बाद में भाषा के आधार पर अनेक राज्यों का जन्म हुआ। इन विभाजनों एवं नए राज्यों के जन्म के पीछे जनता की भाषागत भावना की आड़ में राजनीतिक स्वार्थ था। ऐसे राज्यों के गठन से लोगों में भाषाई स्वाभिमान बढ़ा एवं क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को इसका प्रत्यक्ष फायदा मिला।
दक्षिण भारत की तरह ही महाराष्ट्र की कुछ पार्टियाँ भाषा के आधार पर अपना वोट बैंक बढ़ाने के प्रयास में हैं। मनसे (MNS) भाषा के आधार पर बिहार तथा यू.पी. के लोगों के साथ दुर्व्यवहार कर महाराष्ट्र में अपनी राजनीति चमकाने में सफल रही है। केंद्रीय सरकार भी ऐसे गैर-संवैधानिक कृत्यों से निपटने के बजाय राजनीतिक लाभ के लिए अंदर-ही-अंदर इनका समर्थन करती है।
अतः भाषा भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह यद्यपि हमारे विविधतापूर्ण संस्कृति का वाहक है परंतु हमारे राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ा बाधक भी है। अतः हमें स्कूली स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों की भाषा के अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि हमारे मध्य भाषागत समस्या का समाधान हो एवं भारतीय राजनीति भी इसके सकारात्मक प्रभावों से लाभान्वित हो सके।
बिहार में हिन्दी, उर्दू के अलावा मैथिली, मगही, भोजपुरी, अंगिका आदि भाषा बोली जाती है। बिहार सरकार ने उर्दू को द्वितीय राजकीय भाषा घोषित किया है। मुस्लिम समुदाय के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध सरकार ने उर्दू में कराया है। मदरसों की शिक्षा को बिहार सरकार ने मान्यता दे रखी है तथा उर्दू माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के द्वारा जारी प्रमाण-पत्रों को मान्यता दी गई है। उसी प्रकार संस्कृत बोर्ड के प्रमाण-पत्रों को भी मान्यता प्राप्त है। बिहार सरकार के प्रयास से 2005 में मैथिली को राजभाषा की सूची में शामिल किया गया है।
> भारत में भाषायी राजनीति।
> भाषा के आधार पर गठित राज्य।
> भारतीय संविधान में राजभाषा।
> भारतीय संस्कृति की विविधता एवं भाषा का महत्व ।
> बिहार में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए उठाए गए कदम |
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