राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964) की सिफारिशों और सुझावों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964) की सिफारिशों और सुझावों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर— राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964) की सिफारिशें और सुझाव– आयोग ने सम्पूर्ण भारतीय शिक्षा का अध्ययन किया और उसके पुनर्गठन के सम्बन्ध में अपने सुझाव दिए जो निम्नलिखित प्रकार है—
(1) शिक्षा की संरचना सम्बन्धी सुझाव—
सार्वजनिक शिक्षा– आयोग ने यह सुझाव दिया है कि देश में सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए। सार्वजनिक शिक्षा के लिए आयोग के अनुसार एक समान राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए जिससे समान स्कूली शिक्षा व्यवस्था कायम हो सके। इस निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति 20 वर्ष की अवधि में ही क्रमशः पूरी की जानी चाहिए । सार्वजनिक शिक्षा के लिए अधिक से अधिक व्यय किया जाना चाहिए ।
स्कूली शिक्षा का राष्ट्रीय मण्डल– शिक्षा आयोग ने इस बात का अनुभव किया कि भारत में शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उस पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार-विमर्श किया जाए क्योंकि यह कार्य राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा में समानता लाने में हमारी सहायता करेगा। इसीलिए आयोग ने इस बात पर बल दिया है कि भारत की समूची शिक्षा पर दृष्टि केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय द्वारा रखी जानी आवश्यक है। इस कार्य की आवश्यकता का अनुभव कर आयोग ने भारत सरकार को सलाह देते हुए केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय में एक ‘स्कूली शिक्षा का राष्ट्रीय मंडल’ स्थापित करने पर जोर दिया है।
शिक्षा को समवर्ती सूची से अलग स्थान – आयोग ने इस बात की जोरदार सिफारिश की है कि शिक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखकर तथा भारत जैसे महान और विदेश में शिक्षा के बिखराव को बढ़ावा देना उचित न होगा। अतः यह आवश्यक है कि शिक्षा को समवर्ती सूचो से अलग रखा जाए क्योंकि ऐसी दशा में राज्य और केन्द्र एक-दूसरे पर उत्तरदायित्व टालने का प्रयास करते हैं। आयोग ने यह कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि हमारे संविधान में केन्द्र के नेतृत्व में शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान है जिसमें राज्यों पर दबाव नहीं पड़ता। परन्तु इस व्यवस्था को व्यावहारिक रूप मिलना आवश्यक है। केन्द्रीय सरकार द्वारा शिक्षा के उत्तरदायित्व को अधिक से अधिक मात्रा में वहन किये जाने की सिफारिश की गई है।
प्राथमिक निःशुल्क शिक्षा– आयोग ने प्राथमिक शिक्षा की प्रगति पर विशेष बल देते हुए इस बात की सिफारिश की है कि प्राथमिक स्तर तक की पढ़ाई फीस ( ट्यूशन फीस) यथाशीघ्र समाप्त कर दी जाए। आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि यह अधिक उत्तम होगा कि यह कार्य यथाशीघ्र ही चौथी योजना के अन्त तक ही समाप्त कर दिया जाए।
शिक्षा व्यय– आयोग ने इस बात पर बल दिया है कि शिक्षा की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा में व्यय अधिक किया जाए। 1965 से 1975 के दशक में शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों में अधिक व्यय किये जाने की विशेष सिफारिश की गई। इस व्यय को निम्न मदों में बढ़ाया जाए—
(1) स्कूल शिक्षकों के वेतन बढ़ाने में ।
(2) पूर्व विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम तथा इन्टर कक्षाओं को विश्वविद्यालय से हटाकर स्कूली स्तर पर लाने में ।
(3) सभी बच्चों को 5 वर्ष तक प्रभावकारी शिक्षा देने में ।
(4) व्यावसायिक माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने में ।
राष्ट्रीय अधिनियम और शिक्षा नीति की घोषणा— आयोग ने भारतीय शिक्षा सेवा गठित करने तथा राज्यों के शिक्षा विभागों के विशिष्टता प्रदान किये जाने की सिफारिश की है। आयोग ने इस बात की सिफारिश की है कि इस समय भारत सरकार को अपनी शिक्षा नीति घोषित करनी चाहिए, जिससे कि राज्य सरकारों और स्थानीय संस्थाओं और अधिकारियों को इस सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा निर्देशन दिया जा सके ।
आयोग ने इस बात को भी महसूस किया है कि भारत में एक राष्ट्रीय शिक्षा अधिनियम पारित किया जाना चाहिए। सम्भवत: यह इंग्लैण्ड के 1944 के शिक्षा महाअधिनियम से प्रभावित होकर कहा गया है । आयोग ने सिफारिश की है कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा अधिनियम’ पारित करने की सम्भावनाओं पर जाँच की जानी चाहिए तथा औचित्य पर विचार कर राष्ट्रीय शिक्षा सम्बन्धी अधिनियम पारित किया जाना चाहिए जो कि राष्ट्रीय शिक्षा एवं भावात्मक एकता को बढ़ावा देने में सहायक होगा।
माध्यमिक शिक्षा– आयोग ने माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने की सिफारिश की है। स्कूली शिक्षा समाप्त करने का कार्यकाल 12 वर्ष बताया गया है। आयोग ने इस बात की सिफारिश की है कि माध्यमिक शिक्षा के अन्तर्गत हायर सैकण्डरी कोर्स होना चाहिए। उन प्रान्तों में जहाँ इन्टरमीडिएट कक्षाएँ हैं वहाँ के लिए सिफारिश की गई है कि उनकी पहली कक्षा हायर सैकण्डरी में तथा दूसरी कक्षा विश्वविद्यालय या डिग्री कोर्स में मिला देनी चाहिए ।
माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग का यह मत है कि यहाँ पर बहुउद्देश्यीय शिक्षा का प्रारूप प्रचलित कर दिया जाना चाहिए। साथ ही विज्ञान तथा गणित की शिक्षा पर विशेष रूप से बल दिया जाना चाहिए। विभिन्न विषयों का पाठ्यक्रम में समावेश शिक्षा के स्तर में सुधार ला सकेगा। आयोग ने विभिन्न विषयों के विशेष माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना पर भी अपना मत व्यक्त किया है। माध्यमिक शिक्षा के स्तर में बढ़ावा देने तथा उसे प्रगति प्रदान करने के लिए सरकार से इस बात की सिफारिश की गई है कि स्कूली शिक्षा पर अधिक से अधिक व्यय किया जाए।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा– आयोग ने वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा के प्रचार प्रसार की आवश्यकता का अनुभव किया है । अतः इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये जाने की सलाह दी है सम्पूर्ण शिक्षा का आधार ही वैज्ञानिक बनाने की जोरदार सिफारिश की गई है। आयोग ने कहा है कि केन्द्र को चाहिए कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा केन्द्र स्थापित करने के अलावा शिक्षा विज्ञान तथा मानवशास्त्र जैसे सामाजिक विषयों का अध्ययन भी इन स्थानों पर कराया जाए।
आयोग ने इस बात की भी सिफारिश की है कि स्कूली शिक्षा में विज्ञान की शिक्षा अनिवार्य कर दी जानी चाहिए और अन्त उसे विश्वविद्यालय स्तर पर सभी पाठ्यक्रमों का अंग बना दिया जाना चाहिए। आयोग ने तकनीकी शिक्षा के प्रबल प्रचार के लिए विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान पुस्तकों के प्रकाशन पर जोरों से काम किये जाने की सिफारिश की है।
उच्च शिक्षा— आयोग ने उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में भी अपना विचार व्यक्त किया है। इसके सम्बन्ध में आयोग ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कार्य की सराहना करते हुए उसके द्वारा अधिक व्यय द्वारा प्रभावशाली कदम उठाए जाने की माँग की है। विश्वविद्यालय शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग की मुख्य सिफारिश निम्न प्रकार से हैं—
(1) वर्षीय स्नातक कोर्स– शिक्षा आयोग ने इस बात की सिफारिश की है कि विश्वविद्यालय शिक्षा प्रथम डिग्री कोर्स 3 वर्ष का किया जाना चाहिए। जहाँ पर इन्टरमीडिएट कक्षाएँ हैं उनका दूसरा वर्ष प्रथम डिग्री कोर्स के साथ तथा प्रथम वर्ष हायर सैकण्डरी शिक्षा के पाठ्यक्रम में मिला दिया जाना चाहिए। आयोग ने द्वितीय डिग्री कोर्स या पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स को दो वर्ष ही रहने देने की सिफारिश की है।
(2) विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा की स्थापना– आयोग ने इस बात पर बल दिया है कि उच्च शिक्षा प्रचार के लिए विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाओं की स्थापना आवर रूप से की जानी चाहिए।
आयोग ने सिफारिश की है कि कम से कम 6 विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर तथा अनुसंधान कार्य अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्ड के अनुसार किया जाना चाहिए। इन विश्वविद्यालयों में एक टेक्नीकल और कृषि विश्वविद्यालय का होना आवश्यक है। इन विश्वविद्यालयों में देश के उत्तम छात्रों को सुविधा दी जानी चाहिए। इन विश्वविद्यालयों का माध्यम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर होने के नाते अंग्रेजी ही होनी चाहिए। इस प्रकार के उच्च शिक्षा के लिए आयोग ने जो सिफारिश की वह भी विचारणीय है।
गतिशील तथा विकासशील स्तर–अतः इस सन्दर्भ में आयोग द्वारा प्रस्तावित सुझाव इस प्रकार हैं—
(1) प्राथमिक तथा सैकण्डरी कक्षा के अन्त में राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी मशीनरी का निर्माण किया जाये जो राष्ट्रीय स्तर की परिभाषा कर सके उनकी पुनरावृत्ति और मूल्यांकन कर सके।
(2) विद्यालय संगमों का निर्माण होना चाहिए। ये संगम इस प्रकार होने चाहिए कि एक सैकण्डरी स्कूल आस-पास के प्राइमरी स्कूलों को प्रभावित कर सके। इस प्रकार सभी विद्यालय विकास के लिए एक समूह का निर्माण कर लेंगे ।
(3) विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों को स्कूलों की कुशलता बढ़ाने में विभिन्न उपायों से योग देना चाहिए ।
(4) स्तर को उठाने के लिए उचित सहयोग तथा सम्बद्धता की आवश्यकता है। यह सम्बद्धता शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर होनी चाहिए। यह उस पृथक्ता को समाप्त कर दे जिससे शिक्षण संस्थाएँ ग्रसित हैं। इस दृष्टि से कमीशन का विचार है।
(5) शिक्षा के सभी स्तरों पर सघन रूप से स्तर को ऊँचा उठाने के प्रयत्न होने चाहिए। स्कूलों के पहले 10 वर्षों में बालक में गुणात्मक विकास हो जिससे इस स्तर पर शिक्षा में अपव्यय की सम्भावना कम रहे। कक्षा X पास करने के पश्चात् यही प्रयत्न हायर सैकण्डरी तथा उच्च शिक्षा में भी हो।
शिक्षा और भाषाएँ— आयोग ने शिक्षा के माध्यम से सम्बन्ध में भी अपने विचार व्यक्त किए हैं।
अंग्रेजी– आयोग ने इस बात की सिफारिश की है कि अखिल भारतीय शिक्षा संस्थाओं की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही होनी चाहिए। अंग्रेजी की पढ़ाई स्कूली स्तर से शुरू करनी चाहिए। उच्च शिक्षा में बौद्धिक व अकांक्षयी कार्यों के लिए अंग्रेजी सम्पर्क भाषा का काम दिया। इसका अर्थ हुआ शिक्षा में अंग्रेजी अधिकांश जनता की सम्पर्क भाषा नहीं होगी।
अन्तर्राष्ट्रीय भाषाएँ– आयोग ने इस बात की सिफारिश की है कि उपयोगिता की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं का अध्ययन आवश्यक है। रूसी भाषा के अध्ययन पर खास तौर से ध्यान दिए जाने की बात कही गई है।
उचित भाषा नीति– आयोग ने उचित भाषा नीति अपनाने की सिफारिश करते हुए यह कहा है कि स्कूल तथा कॉलेज तथा शिक्षा का माध्यम होने का हक मातृभाषा को है। स्कूल तथा उच्च शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
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