जयप्रकाश नारायण और भारत छोड़ो आन्दोलन

जयप्रकाश नारायण और भारत छोड़ो आन्दोलन

उत्तर– भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 8 अगस्त, 1942 को आरम्भ किया गया था। भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज महात्मा गांधी ने किया था। आंदोलन का मकसद भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था। यह आंदोलन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के आह्वान पर पूरे देश में चलाया गया, पर आंदोलन के शुरुआत में उनके साथ ही जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली जैसे युवा समाजवादी नेताओं ने भूमिगत रहते हुए आंदोलन की अगुआई की। भारत छोड़ो आंदोलन जिसे ‘अगस्त क्रांति’ आंदोलन भी कहा जाता है, जो वास्तव में भूमिगत क्रांतिकारी आंदोलन और गांधी के नेतृत्व में चले जनता के अहिंसक आंदोलन का मिलन है। ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ का युवा नेतृत्व अपेक्षाकृत इसमें अधिक सक्रिय था, लेकिन उसे भूमिगत रह कर काम करना पड़ रहा था। जय प्रकाश नारायण ने इस आंदोलन में काफी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। आंदोलन के दौरान कई बार अज्ञात स्थानों से उन्होंने क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन और हौसला अफजाई करने तथा आंदोलन का चरित्र और तरीका स्पष्ट करने वाले दो लंबे पत्र भी लिखे। भारत छोड़ो आंदोलन के महत्व का एक पक्ष यह भी है कि आंदोलन के दौरान जनता खुद ही अपने-अपने इलाकों से आंदोलन का नेतृत्व करने लगी थी। इस आंदोलन में गांधी, जेपी और लोहिया के आह्वान पर बखूबी जनता ने जोशो-खरोश के साथ हिस्सा लिया।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही जय प्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली जैसे नेता नायक की तरह उभर कर सामने आए। सन् 1857 के पश्चात देश की आजादी के लिए चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदेलन सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन साबित हुआ, जिसके कारण भारत में ब्रिटिश राज की नींव पूरी तरह से हिल गई । भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण और लोहिया जैसे युवा नेताओं ने जनमानस में अहिंसक क्रांति का बीजारोपण किया। जब सभी वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था तब जेपी ने राम मनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली के साथ मिल कर चल रहे आंदोलन का नेतृत्व किया। हालांकि जेपी भी लंबे समय तक जेल से बाहर नहीं रह पाए और जल्द ही उन्हें ‘भारत रक्षा नियम’ जो एक सुरक्षात्मक कारावास कानून था और जिसमें सुनवाई की जरूरत नहीं होती थी, के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया। जेपी ने अपने साथियों के साथ जेल से भागने की योजना बनाना शुरू कर दिया। जल्द ही उनका यह सुअवसर नवंबर, 1942 की दिवाली के दिन आया जब त्योहार की वजह से बड़ी संख्या में सिक्योरिटी गार्ड छुट्टी पर थे। बाहर निकलने का उनका यह एक साहसिक कृत्य था, जिसने जेपी को लोकनायक बना दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों ने देशभर में कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। तब एकबारगी ऐसा लगा यह आंदोलन मुकाम पर पहुंचने से पहले ही विफल हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस के भीतर जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी कांग्रेस के नेताओं ने आंदोलन का अगले दो सालों तक सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। आंदोलन को धार देने के लिए लोहिया के नेतृत्व में मुंबई में एक भूमिगत रेडियो स्टेशन से आंदोलनकारियों को दिशा-निर्देश दिए जाने लगे। अंग्रेज जब तक उस रेडियो स्टेशन को ढूंढ़ पाते तब तक लोहिया कलकत्ता जा चुके थे। वहां वे पर्चे निकालकर लोगों को जागरूक करने लगे। उसके बाद वे जयप्रकाश नारायण के साथ नेपाल पहुंच गए। इस अवधि में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जेपी ने भूमिगत रूप में सक्रिय रूप से काम किया। ब्रिटिश शासन के अत्याचार से लड़ने के लिए नेपाल में उन्होंने एक ‘आजाद दस्ता’ बनाया और आंदोलनकारियों को आंदोलन विस्तारित करने का प्रशिक्षण देने लगे। कुछ महीनों के बाद सितंबर, 1943 में ट्रेन में यात्रा करते वक्त उन्हें पंजाब से गिरफ्तार कर लिया गया और स्वतंत्रता आंदोलन की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनको यातनाएं भी दी गई। जनवरी, 1945 में उन्हें लाहौर किले से आगरा जेल स्थानांतरित कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में इक्कीस महीने तक भूमिगत आंदोलन चलाने के बाद लोहिया को भी बंबई में 10 मई, 1944 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें भी पहले लाहौर किले में और फिर आगरा में कैद रखा गया। दो साल कैद रखने के बाद जून 1946 में लोहिया को छोड़ा गया। जब गांधीजी ने जोर देकर कहा कि वह लोहिया और जयप्रकाश की बिना शर्त रिहाई के बाद ही ब्रिटिश शासकों के साथ बातचीत शुरू करेंगें तब जा कर उन्हें अप्रैल, 1946 में जेल से रिहा कर दिया गया।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अगस्त क्रांति के नाम से मशहूर भारत छोड़ो आंदोलन देश-व्यापी था जिसमें बड़े पैमाने पर भारत की जनता ने हिस्सेदारी की और अभूतपूर्व साहस और सहनशीलता का परिचय दिया। डॉ राम मनोहर लोहिया ने ट्राटस्की के हवाले से लिखा है कि “रूस की क्रांति में वहां की एक प्रतिशत जनता ने हिस्सा लिया जबकि भारत की अगस्त क्रांति में देश के 20 प्रतिशत लोगों ने हिस्सेदारी की। “
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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