बंगाल साहित्य तथा संगीत में रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
बंगाल साहित्य तथा संगीत में रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
(60-62वीं BPSC/2018)
अथवा
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने साहित्य, संगीत व विचारों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन एवं आमजन को प्रभावित किया। इसी परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान पर चर्चा करें।
उत्तर – रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, उपन्यासकार, शिक्षाविद, चित्रकार एवं विचारक थे और भारतीय साहित्य के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। वे बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों की राष्ट्रगान बनी – भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन अधिनायक जय हो” तथा बांग्लादेश का राष्ट्रगान “आमार सोनार बांग्ला ” ।
गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला साहित्य और संगीत को एक नई दिशा दी। उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य और बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। इससे बंगाली साहित्य क्लासिकल संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में नई बहार लेकर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखें। इन रचनाओं में, ‘चोखेर बाली, घरे बहिरे, गोरा’ आदि शामिल हैं। उनके उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं में उनकी रचनात्मक प्रतिभा सबसे मुखर हुई है। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्मवाद तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है। इसके साथ ही उनकी कविताओं में उपनिषद जैसी भावनाएं भी महसूस होती हैं।
साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि सभी विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया । अंग्रेजी में अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ। रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाटक भी अनोखे हैं। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर, राजा, विसर्जन आदि शामिल हैं। टैगोर का कथा साहित्य एवं उपन्यास भले ही बंकिमचन्द्र और शरतचन्द्र की तरह लोकप्रिय न हों, लेकिन साहित्य के मापदंडों पर उनका कथा साहित्य बहुत उच्च स्थान रखता है। उन्होंने बांग्ला साहित्य में नए मानक रचे जो आगे आने वाले बांग्ला साहित्यकारों के लिए एक प्रेरणास्रोत बने । रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला सभ्यता की अच्छाइयों को पश्चिम में तथा पश्चिम की अच्छाइयों को यहां लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवीन्द्रनाथ टैगोर ने देशी और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अन्दर समाहित कर लिया था और मानवता को विशेष महत्व देते थे। इसकी झलक उनकी कृतियों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया।
बचपन से ही रवीन्द्रनाथ की विलक्षण प्रतिभा का आभास होने लगा था। उन्होंने पहली कविता मात्र आठ वर्ष की उम्र में लिखी और केवल 16 वर्ष की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई। उन्होंने 2 हजार से अधिक गीतों की रचना की। रवीन्द्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अंग बन गया है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएं अब तो गीतों में शामिल हो चुकी हैं। उनके गीत हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ठुमरी शैली से प्रभावित हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं, मानो उनकी रचना उस राग-विशेष के लिए ही की गई हो।
गुरुदेव सही मायने में विश्व कवि होने की पूरी योग्यता रखते हैं। उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान रचनाओं को पसंद किया जाता है। इस प्रकार टैगोर ने बांग्ला साहित्य, दिलाई। दुनिया की तमाम भाषाओं में आज भी टैगोर की बांग्ला साहित्य, संगीत, संस्कृति आदि को विश्व के समक्ष शानदार तरीके से प्रस्तुत किया। बांग्ला साहित्य और संगीत को उन्होंने सही मायने में एक नई दिशा और दशा प्रदान की।
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