भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण की उपयुक्तता के पक्ष और विपक्ष में तर्कों को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण की उपयुक्तता के पक्ष और विपक्ष में तर्कों को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
( 41वीं BPSC / 1997 )
उत्तर – नाभिकीय ऊर्जा प्रारंभ में ऊर्जा उत्पादन के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में विश्व के अधिकतर सक्षम देशों में अपनाया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र के विकास की चिंता थी । इस विकास के लिए विशाल मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता महसूस की गई, क्योंकि हमारा देश काफी विशाल क्षेत्रफल एवं जनसंख्या वाला है। ऊर्जा उत्पादन के प्रचलित तरीके, यथा कोयले – द्वारा ताप विद्युत के विकास के अलावा अन्य तरीकों का विकास आवश्यक था। डॉ. होमी जहांगीर भाभा की अध्यक्षता में 1948 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई। नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास प्रारंभ करने का एक कारण यह भी था कि भविष्य में सीमित कोयले के भंडार जब कम हो जाएंगे तो ऊर्जा-आवश्यकता की पूर्ति कैसे की जाएगी? इन्हीं कारणों से नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में देश आगे बढ़ा एवं देश का पहला परमाणु ऊर्जा गृह, तारापुर (महाराष्ट्र) में 1969 में स्थापित किया गया। आज देश में परमाणु-ऊर्जा का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो रहा है। 2009-10 के दौरान देश ने 771.55 अरब यूनिट बिजली का उत्पादन किया जिसमें परमाणु – विद्युत का योगदान 18.63 अरब यूनिट रहा । भविष्य में परमाणु ऊर्जा उत्पादन में विकास की काफी संभावनाएं हैं। – विद्युत उत्पादन में ताप विद्युत के बाद दूसरा प्रमुख स्रोत जल विद्युत है लेकिन जल विद्युत उत्पादन में एक विशिष्ट भौगोलिक दशा की आवश्यकता होती है। अतः देश के सभी क्षेत्रों में जल विद्युत का उत्पादन संभव नहीं है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है। परमाणु ऊर्जा उत्पादन की एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि ऊर्जा उत्पादन से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। आज जब विश्व में पर्यावरण रक्षा के लिए मंथन चल रहा है तो ऐसे में विशाल ऊर्जा की आवश्यकता को परमाणु ऊर्जा उत्पादन से पूरा करना आवश्यक है। भारत में कोयले के सीमित भंडार के साथ ही तेल एवं गैस की उपलब्धता भी सीमित है। हमें तेल के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन नाभिकीय ऊर्जा के लिए विकसित किया जा रहा तृतीय चरण थोरियम आधारित होगा जो देश की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगा, क्योंकि हमारे देश में थोरियम के विशाल भंडार उपलब्ध हैं।
परमाणु ऊर्जा उत्पादन के पक्ष में यद्यपि और भी तर्क एवं तथ्य दिए जा सकते हैं। अनेक विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भी परमाणु ऊर्जा का समर्थन किया है। सरकार भी इसके पक्ष में है एवं नई परियोजनाओं को मंजूरी दी जा रही है। हाल ही में फ्रांस के सहयोग से महाराष्ट्र के जैतापुर में एक परमाणु ऊर्जा उत्पादन के परियोजना को मंजूरी मिली है। लेकिन इस परियोजना का प्रारंभ से ही स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है। कुछ विशेषज्ञ भी ऐसी परियोजनाओं पर अंगुली
उठा रहे हैं। जापान में भूकंप और सुनामी के कारण फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में संकट पैदा होने के बाद जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को लेकर विरोध और भी तीव्र हो गया है। वास्तव में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में जापान की वर्तमान घटना के पहले भी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं जो इन संयंत्रों के सुरक्षा संबंधी संदेह को पुख्ता करते हैं। पूर्व सोवियत संघ के चेरनोबिल (Chernobyl) के न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में 1986 में परमाणु विस्फोट हुआ था जिसमें लगभग 4000 लोगों की जान गई एवं लगभग 2 लाख लोगों को उस स्थान से विस्थापित होना पड़ा था। उसी प्रकार 1979 में संयुक्त राज्य अमेरिका के थ्री माइल्स आइलैंड के परमाणु संयंत्र में भीषण हादसा हुआ था। इन हादसों के अलावा भी अनेक हादसे विश्व के अनेक परमाणु संयंत्रों में हो चुके हैं। ऐसे में हमारे परमाणु संयंत्रों को लेकर आशंका गहरा जाती है कि क्या हम इन परमाणु संयंत्रों में होने वाले हादसों के लिए तैयार हैं। निश्चित तौर पर परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के संदर्भ में खामियों को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है ।
विदेशी मदद से निर्मित हमारे सभी प्लांट लाइट वाटर रिएक्टर हैं। ये दुनिया में सबसे अधिक जल पीने वाले संयंत्र हैं। अतः भारत जैसे देश में जहां पहले ही जल संकट की समस्या है, वहां लाइट वाटर रिएक्टर का निर्माण कतई व्यावहारिक नहीं हो सकता। जल की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ऐसे रिएक्टर समुद्र तटीय इलाके में लगाए जा रहे हैं। जिससे जहां स्थानीय लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है, वहीं जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप चक्रवात, सुनामी, तूफान, समुद्री जल स्तर का बढ़ना आदि समस्याएं बढ़ रही है, ऐसे में इन संयंत्रों की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है।
भारत आयात आधारित परमाणु कार्यक्रम की ओर बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि भारत सुरक्षा संबंधी कल-पु 1-पुर्जों के लिए भी विदेशी कंपनियों पर निर्भर हो जाएगा। साथ ही आयात आधारित ऐसे कार्यक्रम बड़े घोटाले की संभावना भी व्यक्त करते हैं। अतः नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण की उपयुक्तता के पक्ष और विपक्ष को ध्यान में रखते हुए परमाणु ऊर्जा उत्पादन एवं विकास का कार्य इन संयंत्रों के पुख्ता सुरक्षा उपायों को अपनाकर आपदा प्रबंधन को दुरुस्त करके एवं स्थानीय लोगों की आशंकाओं/समस्याओं को दूर करके ही आगे बढ़ाना चाहिए।
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