निर्धनता मानव जीवन के मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रहने का मामला है। ” समझाइये एवं इसे कम करने के उपाय सुझाइये ।

निर्धनता मानव जीवन के मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रहने का मामला है। ” समझाइये एवं इसे कम करने के उपाय सुझाइये ।

( 47वीं BPSC/2007 ) –
उत्तर – शाहीन रफी खान और डैमियन किल्लेन ने निर्धनता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है- ‘‘निर्धनता भूख है। निर्धनता बीमार होना है और डॉक्टर से न दिखा पाने की विवशता है। निर्धनता बेरोजगारी है। निर्धनता भविष्य के प्रति भय है, दिन में एक बार भी भोजन न पाना है। निर्धनता अपने बच्चे को उस बीमारी से मरते हुए देखने को कहते हैं, जो अस्वच्छ पानी पीने से होती है। निर्धनता शक्ति प्रतिनिधित्व हीनता और स्वतंत्रता की हीनता का नाम है । ” “
अतः निर्धनता उस स्थिति का नाम है जब व्यक्ति जीवन के लिए आवश्यक अत्यंत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति खुद से अथवा अन्य स्रोतों से नहीं कर पाता एवं अशिक्षा, बीमारी, कुपोषण आदि का शिकार हो जाता है।
वर्तमान में देश में निर्धनता रेखा के निर्धारण हेतु भोजन में कैलोरी की मात्रा को आधार बनाया गया है। भोजन मैं प्रतिदिन शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी व ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी न पाने वालों की निर्धनता रेखा से नीचे माना जाता है।
उधर प्रो. डी.टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ दल ने निर्धनों की पहचान के लिए वैकल्पिक फॉर्मूले का उपयोग किया जिसके तहत प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गया। लकड़वाला फॉर्मूले में शहरी निर्धनता के आकलन हेतु औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक व ग्रामीण क्षेत्रों में इस उद्देश्य हेतु कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया गया है। इसके अलावा भी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में निर्धनता आकलन हेतु समिति गठित हुई।
सरकार ने निर्धनता-निवारण के लिए त्रि-आयामी नीति अपनाई। पहली रणनीति संवृद्धि आधारित है। यह इस आशा पर आधारित है कि आर्थिक संवृद्धि का फायदा समाज के सभी वर्गों तक पहुंच जाएगा। 1950-1960 के दशक के पूर्वाद्ध में हमारी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य यही था । यह नीति निर्धनता निवारण में बहुत सहायक नहीं हो पायी। दूसरी रणनीति अतिरिक्त परिसंपत्तियों और कार्य-सृजन से सम्बद्ध है, क्योंकि नीति-निर्धारकों को ऐसा लगा कि अतिरिक्त परिसंपत्तियों और कार्य-सृजन के साधनों द्वारा निर्धनों के लिए आय और रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। ऐसा विशेष निर्धनता निवारण कार्यक्रमों के माध्यम से ही हो पाएगा। इस दूसरी रणनीति को तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) में आरंभ किया गया और तब से धीरे-धीरे बढ़ाया गया। इसके अंतर्गत रोजगार कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया गया। ऐसे कार्यक्रमों के उदाहरण हैंग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP), इसका उद्देश्य गांवों और छोटे कस्बों में स्व-रोजगार के अवसरों का सृजन है। इसे खादी ग्रामोद्योग आयोग के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत छोटे उद्योग लगाने के लिए बैंक ऋणों के माध्यम से वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराता है। प्रधानमंत्री की रोजगार योजना (PMRY) के अंतर्गत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में निम्न आय वर्ग के परिवारों के शिक्षित बेरोजगार किसी भी प्रकार के उद्यम को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) का ध्येय शहरी क्षेत्रों में स्व- – रोजगार तथा मजदूरी पर रोजगार के अधिक अवसरों का सृजन है। स्व-रोजगार कार्यक्रमों के अंतर्गत अब स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का गठन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। बाद में सरकार बैंकों के माध्यम से उन स्वयं सहायता समूहों को आंशिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) ऐसी ही एक योजना है। 2 फरवरी, 2006 को केन्द्र सरकार ने NREGA का प्रारंभ किया। यह अब तक की सबसे महत्वकांक्षी योजना है जिसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को वर्ष में 100 दिनों तक के लिए अकुशल शारीरिक श्रम कार्य उपलब्ध कराने की गारंटी देने का निर्णय किया गया है। इसे 2 अक्टूबर, 2009 से MNREGA के नाम से जाना जाता है।
 निर्धनता निवारण की दिशा में तीसरी रणनीति लोगों को सस्ता अनाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलापूर्ति और स्वच्छता जैसी न्यूनतम आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इन मूलभूत आवश्यकताओं पर सार्वजनिक व्यय लोगों के जीवन स्तर को सुधार सकता है। यह विधि 5वीं पंचवर्षीय योजना से अपनाई गई।
> देश में निर्धनता रेखा के निर्धारण हेतु योजना में कैलोरी की मात्रा को आधार बनाया गया है।
> भोजन में प्रतिदिन शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी न पाने वाले को निर्धनता रेखा से नीचे माना जाता है।
> सरकार ने निर्धनता-निवारण के लिए त्रि-आयामी रणनीति अपनाई है –
(i) संवृद्धि आधारित रणनीति ।
(ii) अतिरिक्त परिसंपत्तियों और कार्य सृजन के साधनों का विकास |
(iii) सस्ता अनाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलापूर्ति, स्वच्छता जैसी न्यूनतम आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना।
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