मौर्य कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर भी प्रकाश डालिए।

मौर्य कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर भी प्रकाश डालिए।

( 64वीं BPSC / 2019 ) –
अथवा
> मौर्य साम्राज्य में उपयोग किए गए कला के विभिन्न रूपों का उल्लेख करते हुए उनके विस्तार और प्रसार को दर्शाएं।
अथवा
> भवन निर्माण कला में उनकी भव्यता एवं पारंगतता का उल्लेख करें।
अथवा
> बौद्ध धर्म के संरक्षण और प्रसार के लिए सम्राट अशोक और परवर्ती मौर्य शासकों द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों का विश्लेषण करें।
उत्तर – मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का पहला ‘अखिल भारतीय साम्राज्य’ था, जो भारत के अधिकांश भाग और उसके उपमहाद्वीप के चारों ओर फैले हुए था। इस अवधि में लकड़ी के उपयोग से लेकर पत्थर तक कला और वास्तुकला में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया। मौर्य कला को कई रूपों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे कि वास्तुकला, मूर्तिकला, सिक्के और पेंटिंग आदि। ‘भारतीय कला’ के इतिहास का प्रारंभ मौर्यकाल से माना जा सकता है। इस काल में कला के मूलतः दो रूप थेएक सम्राट की प्रेरणा से युक्त ‘राजकीय कला’ जो चन्द्रगुप्त के राजप्रासाद (महल), अशोक स्तंभों, अशोक एवं उसके पुत्र दशरथ द्वारा निर्मित गुफाओं में दिखती है। अन्य दूसरा रूप ‘लोक कला’ का था जो दीदारगंज एवं बेसनगर की यक्षी में देखने को मिलती है । ‘लोक कला’ की परंपरा प्राचीन काल से ही काष्ठ एवं मिट्टी में चली आई थी जो अब पाषाण के माध्यम से अभिव्यक्त की जाने लगी।
राजकीय कला-चन्द्रगुप्त का राजप्रासाद ‘राजकीय कला’ का पहला उत्कृष्ट उदाहरण है जिसका वर्णन मेगास्थनीज एवं एरियन ने किया है। यह कुम्हरार गांव (पटना) में खुदाई से अवशेष के रूप में प्राप्त हुआ है। इसकी विशेषता थी कि इसका फर्श एवं छत लकड़ी के थे एवं इसमें बलुआ पत्थर के 40 पॉलिशदार चमकदार पाषाण स्तंभों का प्रयोग हुआ था। फाह्यान ने इसे ‘देवों द्वारा निर्मित’ कहा है। मेगास्थनीज ने बताया है कि पाटलिपुत्र नगर चारों ओर से लकड़ी के दिवारों से घिरा था जिसके बीच-बीच में तीर चलाने के लिए छिद्र बने हुए थे।
अशोक स्तंभ- ये मौर्यकालीन कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। ये बलुआ पत्थर के बने हुए हैं। इन स्तंभों के मुख्यतः दो भाग हैं-(i) स्तंभ यष्टि या गावदुम लाट एवं (ii) शीर्ष भाग। अशोक के एकाश्मक स्तंभों का सर्वोत्कृष्ट नमूना हमारे देश का राजकीय चिन्ह सारनाथ का ‘सिंह स्तंभ’ है। कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने ‘अशोक स्तंभ’ पर ईरानी प्रभाव का भी उल्लेख किया है। अशोक स्तंभों के कुछ उदाहरण हैं: लौरिया नंदनगढ़, सांची, वैशाली, सारनाथ से हाथी स्तंभ, सांची से हाथी राजधानी, रामपुरवा से बुल राजधानी आदि। अशोक ने इन स्तंभों को बौद्ध धर्म का प्रतीक बताया। अशोक ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर स्तूप- निर्माण को प्रोत्साहित किया और सांची, भरहुत एवं सारनाथ जैसे अनेक भव्य बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया। अशोक ने चट्टानों को काटकर गुफाओं का निर्माण किया जो एक नई शैली थी, गया के निकट बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने कंदराओं का निर्माण आजीवकों के लिए करवाया था। उसके पुत्र दशरथ ने भी नागार्जुनी पहाड़ियों में ऐसे ही कई गुफाओं का भी निर्माण करवाए ।
सिक्केः मौर्य के सिक्के ज्यादातर चांदी के थे और कुछ तांबे के बने थे। पंचमार्क थे और इन्हें कर्णपना के नाम से ये जाना जाता है। हाथी जैसे प्रतीक, रेलिंग में एक पेड़, सिक्कों पर पहाड़ों को चिह्नित किया गया था।
लोक कला – यक्ष-यक्षी की मूर्तियां जो मथुरा से पाटलिपुत्र, विदिशा, कलिंग और सूर्पारक तक पाई जाती हैं की अपनी निजी-शैली है। ये महाकाय मूर्तियां खुले आकाश में स्थापित की जाती थी। बेसनगर में एक महिला आकृति भी पाई गई है। उसका चेहरा गोल है, शरीर स्वस्थ है और होंठों पर मुस्कान है। मेढ़े फटे हुए हैं, हाथों में चूड़ियां और आंखों में तेज हैं, कुल मिलाकर यह समग्र रूप से स्त्रैण मुद्रा का शानदार लुक है । टेराकोटा की वस्तुएँ बुलंदीबाग, पाटलिपुत्र, कुम्हरार, बसाड़ और बक्सर में पाई गई हैं। एक हाथ में डमरू लेकर बुलंदीबाग से एक नारी की आकृति मिली है। इसके साथ ही, एक मुस्कुराता हुआ बालक के सिर का हिस्सा पाया गया है।
उत्तरी ब्लैक पॉलिश्ड वेयर (NBPW) मौर्य काल की मुख्य मिट्टी के बर्तन थे। ये बारीक बलुआ – जलोढ़ मिट्टी से बने थे और काफी चमकीले थे। ये मुख्य रूप से गंगा घाटी क्षेत्र में पाए जाते थे।
बौद्ध धर्म के साथ संबंध
1. कई बौद्ध स्थापत्यों, जैसे कि सांची, भरहुत, सारनाथ स्तूपों के अलावे अनेक बौद्ध विहारों का निर्माण मौर्य राजाओं द्वारा किया गया था। भिक्षुओं के विश्राम स्थल ( विहार) के रूप में बराबर एवं नागार्जुनी पहाड़ियों में कई रॉक कट गुफाओं का भी निर्माण किया गया था।
2. बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने बौद्ध नीतियों एवं उनके आदर्शों का प्रचार-प्रसार भारत के बाहर भी कई देशों में करवाया।
3. मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धम्मं शरणम् गच्छामि’ एवं ‘जियो और जीने दो’ जैसे जन कल्याणकारी आदर्शों को अपने राजधर्म में शामिल किया।
निष्कर्षतः उपरोक्त विश्लेषणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि मौर्य साम्राज्य भवन निर्माण कला में काफी समृद्धशाली रही है और बौद्ध धर्म से उनका अन्योनाश्रय संबंध रहा है।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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