मौर्य कला पर प्रकाश डालिए तथा बिहार में इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।

मौर्य कला पर प्रकाश डालिए तथा बिहार में इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।

(60-62वीं BPSC / 2018 )
अथवा
उद्भव एवं विकास का वर्णन करते हुए कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में प्रमुख मौर्य शासकों के योगदान का उल्लेख करते हुए बिहार में इसके प्रभाव व विशेषता का विश्लेषण करें।
उत्तर – भारतीय इतिहास में मौर्य काल को उत्कृष्ट भारतीय कला के प्रारम्भ का समय माना जा सकता है। हालांकि हड़प्पा काल में उच्च स्तर की कला एवं वास्तुकला का अस्तित्व था, परन्तु पुरातात्विक प्रमाण के रूप में वे वस्तुएं वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। मौर्य काल में ही सर्वप्रथम कला के क्षेत्र में पाषाण का व्यापक उपयोग हुआ जिस कारण से ये कलाकृतियां वर्तमान में भी उपलब्ध हैं। जहां चन्द्रगुप्त मौर्य एवं अशोक आदि सम्राटों के प्रेरणा से ‘राजकीय कला’ ने ऊंचाइयों को प्राप्त किया, वहीं ‘लोक कला एवं मूर्तिकला’ के दृष्टिकोण से भी यह काल उन्नत रहा है।
 राजकीय अथवा दरबारी कला
1. चन्द्रगुप्त कालीन कला – राजकीय कला का सर्वोत्तम उदाहरण मगध सम्राट चन्द्रगुप्त का पाटलिपुत्र स्थित कुम्हरार से प्राप्त राजप्रासाद है। इस सभा भवन से प्राप्त अवशेष से इसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है । यह सभा अनेक खम्भों वाला एक विशाल हॉल था। इस सभा भवन की लम्बाई 140 फीट तथा चौड़ाई 120 फीट थी । इस सभा भवन में 84 पाषाण स्तम्भ हैं। सम्राट अशोक ने पाषाणों का उपयोग कर इस काष्ठ प्रासाद का विस्तार किया। प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान ने इस प्रासाद को ‘देव निर्मित महल’ कहा था ।
2. अशोक कालीन कला- मौर्यकाल के सर्वाधिक अवशेष सम्राट अशोक के समय के प्राप्त हुए हैं। सम्राट अशोक के समय की कलाकृतियों को चार भागों में बांटा जा सकता है –
क. स्तम्भ- स्तम्भ मौर्य कालीन कला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। इन स्तम्भों की संख्या निश्चित नहीं है। ये स्तम्भ दो प्रकार के पाए गए हैं
(i) जिन पर धम्म लिपियां खुदी हुई हैं- इस प्रकार के स्तम्भ दिल्ली-मेरठ, दिल्ली – टोपरा, इलाहाबाद, रामपुरवा, सारनाथ, लुंबिनी आदि जगहों से प्राप्त हुए हैं।
(ii) सामान्य स्तम्भ- इस प्रकार के स्तम्भ रामपुरवा (बैल – शीर्ष), बसाढ़, कोसरा आदि जगहों से प्राप्त हुए हैं।
ख. स्तूप- ये स्तूप ईंट अथवा प्रस्तर के बने ठोस गुंबद होते थे। इनका निर्माण बौद्ध एवं जैन धर्म के लोग किसी पवित्र स्थान पर स्मारक स्वरूप करते थे। परम्परा के अनुसार सम्राट अशोक ने 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया था।
ग. पाषाण वेदिका – मौर्यकालीन स्तूप विहार वेदिकाओं से घिरे हुए होते थे। इनमें से कुछ के भग्नावशेष मिले हैं। पाटलिपुत्र की खुदाई में तीन वेदिकाओं के टुकड़े प्राप्त हुए हैं, जो चमकीली पॉलिश के कारण मौर्यकालीन माने जाते हैं।
घ. गुहा विहार- सम्राट अशोक ने भिक्षुओं के रहने के लिए गुफाओं के रूप में विहार बनवाए थे। इन गुफाओं का एक समूह गया से 25 किमी. दूर उत्तर में
बराबर एवं नागार्जुनी पहाड़ी में (जहानाबाद) प्राप्त हुआ है।
3. दशरथ कालीन कला- अशोक के पुत्र दशरथ ने नागार्जुनी पहाड़ियों में गोपिका गुफा का निर्माण आजीवकों के रहने के लिए करवाया। इसी समय निर्मित लोमेश ऋषि की गुफा (जहानाबाद ) भी काफी प्रसिद्ध है।
लोक कला एवं मूर्तिकला- मौर्यकाल में राजकीय दरबार से बाहर जनसाधारण के द्वारा कला का अद्भुत विकास हुआ, जिसे लोक कला कहा गया है। मूर्तिकला के श्रेष्ठ नमूने इसी लोक कला के प्रमाण हैं। पटना के दीदारगंज से प्राप्त यक्षी की मूर्ति मौर्यकला का अद्भुत उदाहरण है, जिसे ‘दीदारगंज यक्षी’ नाम दिया गया है। पटना के लोहानीपुर से दो पुरुषों के ‘नग्न शरीर’ की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। बुलंदी बाग से एक नारी मूर्ति प्राप्त हुई है जो खड़ी मुद्रा में पूर्ण आकार में है।
> मौर्य कालीन मूर्तियों में पत्थर व मिट्टी की मूर्ति तो मिली है लेकिन धातु की कोई भी मूर्ति नहीं मिली है।
>  मौर्य कालीन मृण्मूर्तियों के विषय पशु-पक्षी, खिलौना, मानव आदि हैं अर्थात ये गैर-धार्मिक मृणमूर्तियां हैं। इस प्रकार मौर्य कालीन कला का उद्देश्य धर्मनिरपेक्ष था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मौर्य कालीन कला विविध आयामों में परिपूर्ण थी तथा अपनी कल्पनाशक्ति, शिल्प, वैज्ञानिक विधि एवं रचनाशीलता में भी काफी समृद्ध थी । मौर्यकालीन कला का प्रभाव बिहार पर व्यापक रूप से पड़ा है। मौर्यकालीन कला की उत्पत्ति बिहार से ही हुई तथा धीरे-धीरे अशोक के काल में वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान बांग्लादेश आदि देशों तक फैल गया था। मौर्यकालीन कला व संस्कृति से बिहार उस समय शिक्षा व कला के केन्द्र के रूप में विकसित था। मौर्यकालीन कला प्राचीन बिहार कला एवं संस्कृति के दृष्टिकोण से व्यापक समृद्धि का सूचक रहा है। मौर्यकालीन कला व प्रशासनिक दृष्टिकोण के कारण ही बिहार काफी समय तक भारतवर्ष का राजनीतिक केन्द्र बना हुआ था। अर्थात मौर्य काल ‘बिहार का स्वर्ण काल’ था।
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