व्यक्तिगत विभिन्नता सम्बन्धी धारणा का शिक्षा के क्षेत्र में क्या महत्त्व है ?

व्यक्तिगत विभिन्नता सम्बन्धी धारणा का शिक्षा के क्षेत्र में क्या महत्त्व है ? 

उत्तर– वैयक्तिक भिन्नता का शिक्षा में महत्त्व (Importance of Individual Differences in Education)— वैयक्तिक भिन्नता की अवधारणा ने बालक की शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए हैं। हम सभी जानते हैं कि पूर्वकाल में शिक्षा, शिक्षक-केन्द्रित होती थी जबकि मनोविज्ञान के प्रवेश से आज शिक्षा, बाल केन्द्रित हो चुकी है।
वैयक्तिक भिन्नता के कारण ही वर्तमान शिक्षा ‘बाल केन्द्रित’ हुई है क्योंकि आज यह निर्विवाद रूप से समझा जाने लगा है कि बालक को जाने बिना, उसकी शिक्षा के क्षेत्र में किया जाने वाला प्रयास शत-प्रतिशत सफल नहीं हो सकता । अतः शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नता का अत्यधिक महत्त्व होता है।
चूँकि एक बालक दूसरे बालक से कई बातों में भिन्न होता है, इसलिए प्रत्येक बालक के लिए समान शिक्षा व्यवस्था नहीं हो सकती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए रॉस के अनुसार, “जहाँ तक निर्देशन का प्रश्न है, वैयक्तिक भिन्नताओं के सिद्धान्त ने शिक्षण से सम्बन्धित शैक्षिक सिद्धान्त को बहुत ही प्रभावित किया है । “
प्रत्येक बालक की शिक्षा की समुचित व्यवस्था करने के लिए वैयक्तिक भेदों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है ।
इस सम्बन्ध में स्किनर के अनुसार, “यदि अध्यापक सभी प्रकार की योग्यता के बालकों को प्राप्त होने वाली शिक्षा में उन्नयन करना चाहता है तो उसके लिए वैयक्तिक भिन्नता के स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है। “
यदि बालकों की वैयक्तिक भिन्नताओं को अस्वीकार नहीं कर सकते हैं, तो फिर हम उन्हें एक जैसी शिक्षा क्यों प्रदान करते हैं। इस समस्या का उल्लेख करते हुए स्किनर ने कहा है कि, “हमारे विद्यालयों में विद्यार्थी योग्यताओं तथा रुचियों में काफी भिन्न होते हैं, फिर भी हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे सब एक समान हों।”
वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नता का महत्त्व बढ़ गया है उसकी उपयोगिता भी बढ़ गयी है और आज शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में इसका उपयोग किया जा रहा है इसे निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं—
(1) शिक्षा की पाठ्यचर्या के निर्माण में (In the Development of Curriculum)– वैयक्तिक भिन्नता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ही आज विभिन्न समूहों के बालकों के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाने लगा है क्योंकि हम यह जान चुके हैं कि भिन्न-भिन्न प्रकार के बालकों हेतु एक प्रकार का पाठ्यक्रम अनुकूल (उपयुक्त) नहीं होता है। साथ ही साथ हमें यह भी ज्ञात हो गया है कि पाठ्यक्रम इतना व्यापक होना चाहिए जिससे बालक को उसकी योग्यता, अभिरुचि, आकांक्षा, स्वास्थ्य तथा आवश्यकता के अनुसार शिक्षा प्राप्त हो सके। दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि पाठ्यक्रम लचीला हो न कि कठोर ताकि आवश्यकता महसूस होने पर उसमें परिवर्तन या परिमार्जन किया जा सके।
(2) छात्रों के वर्गीकरण में (In the Classification of Students)— विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की आयु में ही भिन्नता नहीं होती है वरन् उनमें शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक भिन्नताएँ भी होती हैं । वर्तमान युग में इसी बात पर बल देते हुए कक्षा के सभी छात्रों को तीन वर्गों (श्रेष्ठ, सामान्य और निम्न) में विभाजित किया जाता है तथा सभी वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षा की व्यवस्था की जाती है लेकिन जहाँ यह सम्भव नहीं होता है वहाँ उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाता है।
(3) शिक्षा के उद्देश्य निर्धारण में (In Determining the Aims of Education)– वर्तमान समय में बालकों को उचित शिक्षा प्रदान करने हेतु शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करना अति आवश्यक हो गया है। चूँकि किसी भी स्तर की शिक्षा हेतु उद्देश्य उस स्तर के औसत बालकों को ध्यान में रखकर निर्धारित किये जाते हैं और ये उद्देश्य यथार्थ के धरातल पर निर्धारित किए जाते हैं जिसमें वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है ।
(4) शिक्षण – साधनों के चयन में ( In the Selection of Teaching Aids)— यह बात सर्वविदित है कि सभी छात्र सभी शिक्षण साधनों में समान रूप से रुचि नहीं लेते हैं इसीलिए यह अति आवश्यक हो गया है कि शिशु, बालक तथा किशोर स्तर पर अलग-अलग शिक्षण साधनों का प्रयोग किया जाए। विभिन्न दृश्य-श्रव्य साधनों- ओवरहेड प्रोजेक्टर, टेलीविजन और कम्प्यूटर का उपयोग, वर्तमान में इसी कारण से बढ़ता जा रहा है, परन्तु सभी छात्र समान रूप से इन सभी में रुचि नहीं लेते हैं । अतः जिसमें वे रुचि लेते हैं उन्हें उसी के अनुसार सीखने के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
(5) शिक्षण विधियों के चयन में (In the Selection of Teaching Methods)— वैयक्तिक भिन्नता के अनुसार शिक्षा देने के लिए शिक्षण विधियों को उपयुक्त ढंग से चुनने तथा क्रियान्वित करने की परम आवश्यकता होती है। आज के वर्तमान समय में उस शिक्षण विधि को ही अच्छा एवं उपयुक्त माना जाता है जो कि कक्षा विशेष के छात्रों के अनुकूल हों जिसमें ज्यादा से ज्यादा छात्रों की रुचि एवं सहभागिता हो तथा छात्र अपनी व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर स्वगति से अधिगम कर सकें। इस दृष्टि से शिशु स्तर पर ‘मॉन्टेसरी प्रणाली’ और ‘किण्डर गार्टन प्रणाली’ अच्छी समझी जाती है और बाल एवं किशोर स्तर पर ‘योजना विधि’ और ‘अभिक्रमिक अनुदेशन’ अच्छी होती है ।
(6) शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन (In Educational and Vocational Guidance)– शिक्षक को समय-समय पर छात्रों को निर्देशन के माध्यम से शैक्षिक, व्यावसायिक व उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को हल करना बहुत जरूरी है जिससे वह (विद्यार्थी) समस्याओं के हल हो जाने पर सही व ध्यानपूर्वक पढ़ सके।
दूसरी तरफ छात्रों को उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता एवं रुचि के आधार पर अपने अध्ययन के विषय एवं क्षेत्र का चुनाव करने में भी सहायता दी जाए और उनकी अभिक्षमता एवं विशिष्ट योग्यता के आधार पर उन्हें प्रशिक्षण हेतु कौशल तथा व्यवसाय चुनने में सहायता प्रदान की जाये।
(7) गृहकार्य की मात्रा में (In Determining the Load of Home Word)– वैयक्तिक भिन्नता के कारण ही सभी छात्रों (बालकों) में समान कार्य या कार्य की समान मात्रा पूर्ण करने की क्षमता नहीं होती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि गृहकार्य देते समय हम बालकों की क्षमताओं और योग्यताओं का पूरी तरह से ध्यान रखें। साथ ही साथ आज वैयक्तिक भिन्नता की पहली माँग यह है कि शिशु स्तर पर गृहकार्य की मात्रा बहुत कम होनी चाहिए तथा बाल तथा किशोर स्तर पर कार्य की मात्रा अधिक होनी चाहिए जबकि इसके ऊपर के छात्रों को स्वाध्याय की ओर प्रेरित करना चाहिए। इसी प्रकार किसी भी कक्षा के छात्रों में से निम्न स्तर के छात्रों को अपेक्षाकृत कम, औसत स्तर के छात्रों को औसत और उच्च स्तर के छात्रों को अपेक्षाकृत अधिक गृहकार्य दिया जाए ।
(8) कक्षा का आकार (Size of the Class)– बालकों की व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखते हुए किसी भी कक्षा में विद्यार्थियों (छात्रों) की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए। हम देखते हैं कि किसी भी कक्षा में बालकों की संख्या 40 से 50 होने पर अध्यापक व्यक्तिगत रूप से छात्रों पर ध्यान नहीं दे पाता है और इसी कारण वह वैयक्तिक भिन्नताओं के आधार पर उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है। अतः मनोवैज्ञानिकों का मत है कि कक्षा में छात्रों की संख्या लगभग 20 से 25 ही होनी चाहिए।
रास के अनुसार, “प्रत्येक अध्यापक की संरक्षता में छात्रों की संख्या इतनी कम होनी चाहिए कि वह उन्हें व्यक्तिगत रूप से भलीभाँति जान सके, क्योंकि इस ज्ञान के बिना वह उनसे ऐसे कार्यों को करने को कह सकता है, जो उनमें बहुतों के स्वभाव के अनुसार उनके लिए असम्भव हो। “
(9) वैयक्तिक सहायता में (In Individual Help )— वैयक्तिक भिन्नता सभी बालकों में इतनी ज्यादा होती है कि सभी दृष्टियों से ‘समरूप समूह’ का निर्माण करना अत्यन्त कठिन हो जाता है इसलिए वैयक्तिक सहायता आवश्यक होती है। यह वैयक्तिक सहायता कई रूपों में देनी पड़ती है। जैसे— कक्षा में पाठ का विकास करते समय प्रायः प्रश्नों को पूछा जाता है, इस समय शिक्षकों को चाहिए कि प्रश्नों का वितरण सम्पूर्ण कक्षा में करके सरल प्रश्नों के उत्तर निम्न स्तर के छात्रों से पूछें, सामान्य प्रश्नों के उत्तर सामान्य छात्रों से पूछे तथा कठिन प्रश्नों के उत्तर उच्च स्तर के छात्रों (बालकों) से पूछें और प्रश्नों के सही उत्तर न देने वाले छात्रों की कठिनाई को समझकर उसे दूर करने के उपाय खोजें तथा उन्हें दूर करें। कमजोर छात्रों को थोड़ा अतिरिक्त समय देकर भी उनकी वैयक्तिक रूप से सहायता करें।
(10) लिंग-भेद के अनुसार शिक्षा (Education According to Sex )– यह बात भी सर्वविदित है कि बालक और बालिकाओं की रुचियों, क्षमताओं, आवश्यकताओं, योग्यताओं आदि में पर्याप्त विभिन्नता होती है तथा जैसे-जैसे बालक तथा बालिकाओं की आयु बढ़ती जाती है उनमें ये भिन्नताएँ भी बढ़ती जाती हैं और यह अन्तर स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
इस दृष्टि से प्राथमिक कक्षाओं में तो उनके लिए समान पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-विषय होने चाहिए जबकि माध्यमिक स्तर तक आते-आते इन विद्यार्थियों के विषयों में अंतर की स्पष्ट रेखा खींच देनी चाहिए । इसी दृष्टिकोण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए ही माध्यमिक स्तर पर बालकों को गणित तथा विज्ञान से सम्बन्धित विषय तथा बालिकाओं को गृहविज्ञान, कढ़ाई-बुनाई आदि विषयों की शिक्षा दी जाती है।
सारांश रूप में हम यह कह सकते हैं कि बालक की वैयक्तिक भिन्नता शिक्षा में अति महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इन वैयक्तिक भिन्नताओं का ज्ञान होने पर ही एक शिक्षक अपने छात्रों को विभिन्न प्रकार से. लाभान्वित कर सकता है।
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