श्रवण कौशल के मुख्य आधार क्या हैं ?

श्रवण कौशल के मुख्य आधार क्या हैं ? 

उत्तर— श्रवण कौशल के मुख्य आधार– श्रवण कौशल विकसित करने के लिए निम्नलिखित आधारों की सम्यक् पूर्ति जरूरी है।

(1) पर्याप्त श्रवण– पर्याप्त श्रवण का अर्थ है – बहुत देर तक, बहुत-सी बातों को लगातार सुनना । पर्याप्त श्रवण (विषय-वस्तु तथा श्रवण की अधिक मात्रा) से उस भाषा की ध्वनि-व्यवस्था का प्रभाव श्रोता के मस्तिष्क पर पड़ते रहने के कारण उसमें शनैः-शनैः उस भाषा की ध्वनियों को पहचानने की शक्ति का स्वतः ही विकास हो जाता है और मस्तिष्क अपनी रचना की विशेषता के कारण पहचानी गई ध्वनि का वागिन्द्रिय से स्वतः ही उच्चारण करने में समर्थ हो जाता है; अत भाषा के शिक्षार्थी को पर्याप्त श्रवण के अवसर प्रदान करना परमावश्यक है। भाषा हिन्दी के पर्याप्त श्रवण के लिए ये उपाय अपनाए जा सकते हैं – हिन्दी मातृभाषा- भाषी व्यक्तियों के भाषणों का आयोजन करना, रेडियोट्रांजिस्टर पर हिन्दी कार्यक्रमों को सुनने की व्यवस्था करना, विविध भाषणों/कार्यक्रमों को टेपांकित कर के सुनाना, हिन्दी गीत, कविता, वार्तालाप, चुटकुले, पहेलियाँ आदि सुनाना, हिन्दी फिल्म दिखाना, हिन्दी फिल्मों के गीतों, डायलॉगों के रिकॉर्ड सुनाना, हिन्दी नाटकों का आयोजन करना, आरम्भ से ही आवश्यक सूचनाएँ हिन्दी में देना, कक्षा में (संभव को हो तो विद्यालय में भी) हिन्दी श्रवण- भाषण का वातावरणं बनाए रखना ।
(2) अनौपचारिक श्रवण– सामान्यतः किसी द्वितीय भाषा के लोगों के मध्य रहते हुए बिना किसी औपचारिक श्रवण – अभ्यास के ही अधिकतर लोगों में उस भाषा की श्रवण-दक्षता का विकास हो जाता है। सामान्य श्रवण या निष्क्रिय श्रवण भी इसी प्रकार का प्रभाव डालता हैं । द्वितीय भाषा को सीखने के इच्छुक व्यक्ति अन्य कार्यों में लगे हुए होने पर भी मस्तिष्क की रचना- विशेषता के कारण द्वितीय भाषा को सुनते हुए धीरे-धीरे उसके श्रवण- पक्ष में पुष्ट हो जाते हैं, अतः अनौपचारिक/ सामान्य / निष्क्रिय श्रवण के पर्याप्त अवसर प्रदान करना श्रवण – पक्ष को पुष्ट करना है।
(3) शान्त चित-श्रवण– अध्येता जो कुछ भी सुने उसे शान्त चित्त होकर सुने, अर्थात् श्रवण के समय उसका चेतन मस्तिष्क उदासीनता, क्रोध, चिन्ता, भय, घृणा, आवेश जैसे उद्वेगों से पूर्णतया मुक्त हो । शान्त चित्त होकर सुनी गई बात अच्छी तरह सुनने के कारण मस्तिष्क में अच्छी तरह प्रविष्ट तथा स्थिर होती है, अतः विद्यालयी भाषा हिन्दी के श्रवणअभ्यास के समय छात्रों का शान्त चित्त होना आवश्यक है ।
(4) एकाग्र श्रवण– प्रत्येक स्वस्थ मस्तिष्क की यह विशेषता है कि वह जिस बात में रुचि रखता है उसकी ओर एकाग्र हो जाता है और एकाग्रता की स्थिति में की गई कोई भी क्रिया स्थिर तथा प्रभावकारी होती है अतः भाषा श्रवण के समय उसके श्रवण में रुचि हो जिससे कि एकाग्रता बनी रहे।
(5) बाधाहीन श्रवण– रेल, बस-स्टेशन, कारखाने, राजमार्ग आदि के पास के मकान में पहले-पहले पहुँचे हुए व्यक्ति को वहाँ के तरह-तरह के शोरगुल के कारण एकाग्रता के कार्यों, नींद में कुछ दिनों तक बाधा पड़ती है, किन्तु शनैः-शनै उसकी श्रवणेन्द्रिय उस शोरगुल की आदी हो जाती है, अर्थात् उसमें अपेक्षित बधिरता विकसित हो जाती है और वह शोरगुल उसकी एकाग्रता के कार्यों या नींद में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करता। सामान्यतः भाषा के श्रवण के समय-बाहरी शोरगुल बाधा उत्पन्न करता है, अतः जहाँ तक संभव हो उस समय तक बाधाहीन श्रवण के अवसर प्रदान किए जाएँ जब तक छात्रों की श्रवणेन्द्रिय में बाहरी शोरगुल के प्रति अपेक्षित बधिरता उत्पन्न नहीं होती ।
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