संपत्ति के अधिकार के वर्तमान स्वरूप का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए ।

संपत्ति के अधिकार के वर्तमान स्वरूप का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए ।

अथवा

संपत्ति के अधिकार का वर्तमान स्वरूप अर्थात् अनुच्छेद 300 (a) का वर्तमान संदर्भ में मूल्यांकन करें।
उत्तर- प्रारंभ में संविधान में संपत्ति अर्जन, स्वामित्व और संरक्षण का मौलिक अधिकार दिया गया था तथा इसे अनुच्छेद 19 (f) तथा अनुच्छेद 31के अंतर्गत रखा गया था। लेकिन संविधान में स्पष्ट कहा गया था कि सरकार लोक-कल्याण के लिए संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। 1950 से ही सरकार ने अनेक ऐसे कानून बनाए जिससे संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध लगा। 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में सम्पत्ति के अधिकार को संविधान के मूल ढांचे का तत्व नहीं माना और कहा कि संसद को संविधान का संशोधन करके इसे प्रतिबंधित करने का अधिकार है। अतः जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन, 1978 के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल कर संविधान के भाग 12 में एक नए अध्याय 6 के अंतर्गत अनुच्छेद 300 (a) में एक सामान्य कानूनी अधिकार के रूप में रखा। अनुच्छेद 300 (a) के अनुसार- “किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।”
•  इस अनुच्छेद के प्रभाव इस प्रकार हैं –
(i) संपत्ति का अधिकार अब मूल अधिकार नहीं है। अतः कोई भी व्यक्ति उसके प्रवर्तन के लिए अनुच्छेद 32 के अधीन उच्चतम न्यायालय में नहीं जा सकता।
(ii) किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से संसद या राज्य विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से ही वंचित किया जा सकता है।
 (iii) किसी व्यक्ति को केवल कार्यपालिका के आदेश द्वारा उसके संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
 (iv) संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार है। किंतु यह मूल अधिकार या संविधान का मूल लक्षण नहीं है।
 (v) यह अधिकार केवल नागरिकों तक ही सीमित नहीं है ।
2007 में एक मामले के दौरान उच्चतम न्यायालय ने यह कहकर इस अधिकार का महत्व और बढ़ा दिया कि संपत्ति अर्जित करने का अधिकार यद्यपि मूल अधिकार नहीं है, किन्तु यह संविधानिक और मानव अधिकार है। वर्तमान विधि के अनुसार संपत्ति के अधिकार से संबंधित कानून राज्य को संपत्ति अधिग्रहण से संबंधित व्यापक अधिकार प्रदान करता है। संपत्ति अधिग्रहण के मुआवजे (Compensation) से संबंधित व्यापक विवाद है। सरकार लोक कल्याण या किसी सामाजिक कल्याण या किसी सामाजिक उद्देश्य के लिए संपत्ति का अधिग्रहण करती है। सामान्यतः बाजार मूल्य से कम दाम पर मुआवजा (Compensation) दिया जाता है। लेकिन इसका व्यापक विरोध किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने भी उचित मुआवजे की बात कही है। हाल में उत्तर प्रदेश के भट्टा-परसौल में उचित मुआवजे की मांग को लेकर व्यापक स्तर पर आंदोलन चला। उसी प्रकार ओडिशा में पोस्को परियोजना के लिए भी व्यापक विरोध हुआ।
‘संपत्ति के अधिकार’ का वर्तमान स्वरूप यद्यपि विकास एवं व्यापक लोक-कल्याण की दृष्टि से सही प्रतीत होता है परंतु संपत्ति अधिग्रहण के कारण होने वाले व्यापक जन- आंदोलन के कारणों का परीक्षण कर इस कानून में संशोधन की आवश्यकता है।
> प्रारंभ में अनुच्छेद 19 (f) तथा अनुच्छेद 31 के अंतर्गत संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में था।
>  44वें संविधान संशोधन, 1978 के तहत इसे मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल कर अनुच्छेद 300 (a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया।
> अनुच्छेद 300(a) किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं।
> कोई भी व्यक्ति इस अधिकार के लिए अनुच्छेद 32 के अधीन उच्चतम न्यायालय नहीं जा सकता।
>  किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से संसद/विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि से ही वंचित किया जा सकता है, आदि।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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