संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क के अनुसार सुखदायिता के समर्थक सूचकों की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।

संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क के अनुसार सुखदायिता के समर्थक सूचकों की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।

उत्तर- मार्च 2019 में सतत विकास समाधान नेटवर्क सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क एसडीएसएन ने वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 2019 जारी की है। इस रिपोर्ट में एसडीएसएन की वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट में 156 देशों को शामिल किया है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे खुशहाल देशों में फिनलैंड लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष स्थान पर है दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: डेनमार्क और नार्वे हैं।
वर्ष 2019 में भारत का स्थान 140वां है जो पिछले वर्ष की तुलना में 7 स्थान नीचे है। जबकि पड़ोसी देशों में चीन को 93वां, पाकिस्तान को 67वां अफगानिस्तान को 154वां, नेपाल को 100वां, भूटान को 95वां, बांग्लादेश को 125वां, श्रीलंका को 130वां और म्यांमार को 131वां स्थान प्राप्त हुआ है।
उल्लेखनीय है कि वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष सतत विकास समाधान नेटवर्क, (सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क एसडीएसएन) द्वारा प्रकाशित की जाती है। वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट का प्रकाशन वर्ष 2012 से शुरू हुआ था तथा 2019 में यह इसका सातवां संस्करण प्रकाशित किया गया है। खुशहाली को आंकने के लिए सूचकांक में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, कठिन समय में व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा, स्वस्थ जीवन की प्रत्याशा, सामाजिक सरोकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा भ्रष्टाचार और उदारता की अवधारणा को आधार बनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि सतत विकास समाधान नेटवर्क संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में 2012 से काम कर रहा है। SDSN सतत विकास हेतु व्यावहारिक समाधान को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता जुटाता है जिसमें सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और पेरिस जलवायु समझौते का कार्यान्वयन भी शामिल है। एसडीएसएन संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, बहुपक्षीय वित्तपोषण संस्थानों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के साथ मिलकर काम करता है।
> SDSN सुखदाईता के समर्थक मुख सूचकों की समीक्षात्मक आलोचन
सतत विकास समाधान नेटवर्क द्वारा जारी विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2019 के संदर्भ में भारत की स्थिति की बात करें तो हम पाते हैं कि भारत इस रिपोर्ट में 140वें स्थान पर रहा जो पिछले साल के मुकाबले 7 स्थान नीचे है। पिछले साल यह 133वें स्थान पर था। इसका तात्पर्य यह है कि भारत में लोग इतने खुशहाल नहीं हैं जितने कि अन्य देशों में हैं। यहां तक कि कई पड़ोसी देश भी खुशहाली में हमसे आगे हैं। रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में लोगों में चिंता, उदासी और क्रोध सहित नकारात्मक भावनाओं में वृद्धि हुई है। समग्र रूप से विश्व में छठे स्थान पर होते हुए भी सकल घरेलू उत्पाद के संदर्भ में भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अत्यधिक कम है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में आर्थिक असमानता व्यापक पैमाने पर मौजूद है। यहां आर्थिक असमानता के आधार पर ही भारत और इंडिया डिवाइड की अवधारण उभरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 10% लोगों के पास लगभग 70% संपत्ति विद्यमान है। इससे स्पष्ट है कि लगभग 90% लोगों का जीवन स्तर सामान्य या सामान्य से कम है। भारत में सामाजिक सुरक्षा की अनेक योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं लेकिन इनका लाभ सीमित लोगों को ही मिल पाया है। इसका कारण भारत में विद्यमान भ्रष्टाचार, अनैतिकता आदि की समस्याएं विद्यमान होना है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं में लीकेज की बड़ी समस्या है जिसके कारण इसका लाभ अपेक्षित वर्ग तक नहीं पहुंच पाता है। मध्यस्थों की बड़ी संख्या होने के कारण भी योजनाओं का न तो उचित कार्यान्वयन हो पाता है और न ही इनका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति को मिल पाता है। भारत में जीवन प्रत्याशा भी संतोषजनक नहीं है। जापान जैसे देश में जहां जीवन प्रत्याशा 82 वर्ष के आसपास है, वहीं भारत में यह 67 वर्ष ही है। इसका कारण भारत में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। भारत में स्वास्थ्य सेवाएं उच्च स्तर की नहीं हैं तथा एक बड़ा तबका अछे स्वास्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से वंचित है। आयुष्मान भारत, जन आरोग्य योजना जैसे कार्यक्रम इस संबंध में एक आशा की किरण जगाते हैं।
सुखदाता के समर्थक प्रमुख सूचकों में सामाजिक सरोकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार और उदारता की अवधारणा को भी आधार बनाया जाता है। इस संदर्भ में भी भारत की स्थिति अच्छी नहीं मानी जा सकती है। अनेक प्रयासों के बावजूद भारत में ऊपरी भ्रष्टाचार की समस्या आज भी बड़े पैमाने पर विद्यमान है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा कार्यालयों में
भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर प्रचलित हैं। इसके कारण लोगों को सेवाओं की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होती हैं तथा लालफीताशाही जैसी समस्याओं को आधार मिलता है। भ्रष्टाचार के कारण रिश्वतखोरी जैसी समस्या भी उत्पन्न होती है। लोगों को समय पर सेवाओं की आपूर्ति नहीं हो पाती तथा उन्हें सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों की उदासीनता का सामना करना पड़ता है। भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं जैसे अनुच्छेद 19 में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी नागरिकों को प्रदान की गई है लेकिन इस पर भी अनेक प्रतिबंध आरोपित कर दिए जाते हैं। वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट 2019 के अनुसार सबसे खुशहाल देशों में फिनलैंड लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष पर है। इसका अर्थ है कि फिनलैंड में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक सुरक्षा, स्वस्थ जीवन की प्रत्याशा, सामाजिक सरोकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता,भ्रष्टाचार और उदारता के संदर्भ में काफी प्रगति की है। फिनलैंड यूरोप का एक विकसित देश की श्रेणी में आता है तथा यहां पर सामाजिक सुरक्षा के सूचकांक काफी उच्च रहते हैं। फिनलैंड जैसे देशों से भारत सहित अन्य विकासशील देश काफी कुछ सीख सकते हैं ताकि इन देशों के नागरिकों के जीवन स्तर को बढ़ाया जा सके।
चिंता की बात यह है कि भारत अपने से पिछड़े तथा गरीब देशों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार आदि से भी पीछे है। यह भारत के मानव जीवन स्तर के असंतोष जनक परिदृश्य को प्रदर्शित करता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में इन देशों की अपेक्षा सामाजिक सुरक्षा, स्वस्थ जीवन की प्रत्याशा, सामाजिक सरोकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार और उदारता जैसे पक्षों की दिनो दिन उपेक्षा हुई है तथा नागरिक केंद्रित नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन का अभाव भी रहा है।
स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र विकास समाधान नेटवर्क द्वारा वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट जारी करने का प्रमुख उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना है। लोगों द्वारा सामना की जा रही विभिन्न समस्याओं जैसे भ्रष्टाचार, सामाजिक आसुरक्षा, जीवन प्रत्याशा में कमी, कम प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद आदि को उद्घाटित करके सरकार को इस क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रेरित करने का कार्य भी यह रिपोर्ट करती है। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित सतत विकास लक्ष्य एसडीजी का प्रभावी क्रियान्वयन काफी उपयोगी हो सकता है।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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