आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू की भूमिका की समीक्षा कीजिए |
आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू की भूमिका की समीक्षा कीजिए |
(56-59वीं BPSC/2016)
अथवा
आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू जी के आदर्शों की चर्चा कीजिए।
उत्तर – आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू जी की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे कई पाश्चात्य विचारधाराओं से प्रभावित थे, परन्तु उनसे आक्रान्त नहीं थे। इन विचारधाराओं को भारतीय दर्शन के साथ सामंजस्य नेहरू जी की स्वयं की मौलिकता रही है।
उदारवाद की पाश्चात्य अवधारणा ने नेहरू को सर्वाधिक प्रभावित किया । व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता, स्वतंत्र निर्वाचन और संसदीय सरकार की अवधारणा – नेहरु ने उदारवाद से ही ग्रहण किया। गांधी के विचारों ने भी नेहरू को प्रभावित किया । यद्यपि वैचारिक दृष्टि से नेहरू गांधीजी से पूर्ण साम्यता नहीं रखते थे, फिर भी वे अहिंसा को सर्वश्रेष्ठ नीति मानते थे। समाजवाद ने भी नेहरू को प्रभावित किया, परन्तु वे क्रांतिकारी पद्धति से असहमत थे । इन सभी तत्वों ने नेहरू को आधुनिक भारत के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया।
लोकतंत्र के विषय में नेहरू के विचार – नेहरू ने लोकतंत्र को आत्म-अनुशासन के रूप में देखा। लोकतंत्र में नेहरू की आस्था का स्रोत उदारवाद एवं मानववाद में उनका विश्वास है। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था की परिकल्पना की जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करने का समान अवसर प्राप्त हो । परन्तु नेहरू के लोकतंत्र की अवधारणा, पाश्चात्य लोकतंत्र की अवधारणा से भिन्न है। पश्चिमी अवधारणा में लोकतंत्र को एक ऐसी व्यवस्था समझा जाता है जिसमें कतिपय सरकारी संस्थाएं विद्यमान होती हैं। नेहरू के लिए लोकतंत्र जीवन-दर्शन है। उन्होंने न केवल राजनीतिक समता पर, बल्कि आर्थिक समानता पर भी बल दिया।
समाजवाद – नेहरू मॉर्क्स और लेनिन के विचारों से काफी प्रभावित थे। वे राज्य द्वारा चालित और नियंत्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर तो थे, परन्तु व्यक्तिक स्वतंत्रता को अवरोधित करके नहीं। इसके लिए नेहरू जी ने आयोजन का मार्ग अपनाया। उनका मानना था कि इस प्रकार व्यक्तिक स्वतंत्रता को अवरोधित किए बिना समता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनके इसी प्रयासों का परिणाम है कि संविधान की ढांचा में समाजवाद को अपनाया गया।
मिश्रित अर्थव्यवस्था- नेहरू का समाजवाद परंपरागत समाजवाद से इस अर्थ में भिन्न है कि यह अर्थव्यवस्था पर राज्य के पूर्ण नियंत्रण की मांग नहीं करता है। परंपरागत समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का कोई महत्व नहीं होता है, जबकि नेहरू मिश्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर थे अर्थात् वे अर्थव्यवस्था पर राज्य और निजी दोनों क्षेत्रों के अधि कारों को मान्यता प्रदान करते थे।
पंचायती राज संस्थाएं एवं ग्रामीण विकास- पं. नेहरू पर यह दोषारोपण किया जाता है कि वे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के पक्के हिमायती थे। उन्होंने गांवों को अनदेखा किया, जिन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था की आत्मा कहा जाता है। बेशक नेहरू जी आधुनिकीकरण में विश्वास करते थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व में अद्भुत विरोधाभास समन्वित था। अरसे से चली आ रही भारत की सांस्कृतिक परंपराओं एवं मान्यताओं के प्रति उनकी आस्था दृढ़ थी। उन्होंने तीन प्रकार की ग्रामीण समस्याओं के विकास पर जोर दिया
1. सामुदायिक विकास कार्यक्रम
2. सहकारी समितियां एवं
3. शक्तिशाली ग्राम पंचायत
गांवों को कठोर संघर्षपूर्ण जीवन से उबारने के लिए गांधीजी के अनुरूप वे चाहते थे कि पंचायतें देश के शासन तंत्र का आधार बनें। ग्रामवासियों से भूल हो सकती है, परन्तु भूलों से व्यक्ति सन्मार्ग की ओर अग्रसर होता है। उनका अकाट्य विचार था कि पंचायतों के माध्यम से जन समुदाय को शिक्षित / प्रशिक्षित किया जा सके।
धर्म निरपेक्षता – भारत जैसे बहु- धार्मिक देश के लिए धर्म निरपेक्षता की अवधारणा नेहरू की मौलिक सोच है। नेहरू के लिए धर्म निरपेक्षता एक राजनीतिक और सामाजिक सिद्धांत ही नहीं, वरन् व्यक्ति और समूह का एक मानसिक दृष्टिकोण भी है।
गुट निरपेक्षता – गुट निरपेक्षता की अवधारणा, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को स्थापित करने एवं भारतीय विदेश नीति में नेहरू जी का विशिष्ट योगदान है। उनका मानना था कि नव- स्वतंत्रता प्राप्त राष्ट्रों को किसी गुट में शामिल न होकर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करना चाहिए। उनका मानना था कि गुटीय राजनीति में असम्मिलित होकर एक ओर तो ये राष्ट्र अपना पूरा का पूरा ध्यान विकास में लगा सकेंगे और दूसरी ओर इन्हें दोनों गुटों से अधिकतम सहायता प्राप्त हो सकेगी।
इस तरह, नेहरू जी अपनी आधुनिक विचारधारा से स्वतंत्र भारत का आधुनिक मॉडल बनाने में सफल रहे। आश्चर्य नहीं कि उनके विचारों को संविधान में जगह देकर उनकी भावनाओं को मूर्त रूप प्रदान किया गया है। आधुनिक भारत उनके उल्लेखनीय योगदान हेतु सर्वथा ऋणी रहेगा।
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