सफल-आर्थिक नियोजन ( Economic Planning ) के लिए कौन से संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं ?

सफल-आर्थिक नियोजन ( Economic Planning ) के लिए कौन से संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं ?

 ( 43वीं BPSC / 2001 )
अथवा
संरचनात्मक परिवर्तन का अर्थ व्यवस्थागत परिवर्तन से है अर्थात नियोजन के लिए वर्तमान तौर-तरीकों में परिवर्तन से है।
उत्तर- आर्थिक नियोजन से अभिप्राय है राज्य के अभिकरणों द्वारा देश की एक निश्चित अवधि हेतु आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना। भारत में आर्थिक नियोजन का सर्वोच्च संस्था योजना आयोग है जो एक गैर-संवैधानिक निकाय है। इसके साथ ही ‘राष्ट्रीय विकास परिषद’ का गठन भी आर्थिक नियोजन हेतु राज्यों एवं योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था। भारत में आर्थिक नियोजन का मूल लक्ष्य – संवृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता है। भारत में आर्थिक नियोजन के कुछ लक्ष्यों को लगातार हासिल किया जा रहा है। किन्तु गरीबी उन्मूलन, रोजगार का सृजन, शिक्षा आदि लक्ष्य अभी तक संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुंच सके हैं। इसके लिए कुछ संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता है। सर्वप्रथम योजना निर्माण में सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और निचले स्तर के प्रतिनिधियों की भागीदारी होनी चाहिए। यद्यपि राष्ट्रीय विकास परिषद् इस कमी को पूरा करती है, लेकिन वास्तव में योजनाओं का निर्माण योजना आयोग के अधीन ही होता है। लेकिन इन योजनाओं को राज्य सरकारों को वहां की परिस्थितियों के अनुसार लागू करना पड़ता है। दूसरी बात योजनाओं के निर्माण में जनसामान्य की भागीदारी होनी चाहिए।
12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए योजना आयोग ने एक ऐसी पहल की है जिसमें जनता ‘आयोग’ के वेबसाइट पर योजना से जुड़े अपने सुझाव डाल सकती है। आर्थिक नियोजन के लिए योजना आयोग अथवा राज्य के आयोगों को सरकारी नियंत्रण से कुछ छूट मिलनी चाहिए, कई बार योजना निर्माण में राजनीतिक दृष्टि स्पष्ट रहती है। इससे वैसे राज्यों, जिन्हें इन योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए कई बार नहीं मिल पाता। योजना निर्माण में सरकारी अधिकारी एवं मंत्रियों के अलावा समाज कल्याण से जुड़े लोगों को शामिल किया जा सकता है। इनका रवैया निष्पक्ष भाव से समाज कल्याण होता है। इससे गरीबी, बेरोजगारी जैसी सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु योजना बनाने में सहायता मिल सकेगी। ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्’ का गठन लगभग इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर किया गया है, लेकिन एक ही क्षेत्र में काम करने वाली इन अलग-अलग संस्थाओं में समन्वय की आवश्यकता है।
• संरचनात्मक परिवर्तन –
> नियोजन में केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार एवं जमीनी स्तर से जुड़े प्रतिनिधियों की प्रभावकारी भागीदारी ।
> योजना निर्माण में जनसामान्य की भागीदारी
> योजना आयोग जैसी संस्था के सरकारी एवं राजनीतिक प्रभाव से मुक्ति ।
> योजना निर्माण में शिक्षाविदों, पर्यावरणविदों, समाजसेवियों की भागीदारी सुनिश्चित हो ।
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