जातिवाद क्या है ? क्या बिहार की राजनीति में जातिवाद हावी है ?

जातिवाद क्या है ? क्या बिहार की राजनीति में जातिवाद हावी है ?

उत्तर- जातिवाद भारत की एक मुख्य सामाजिक समस्या माना जाता रहा है। जाति- व्यवस्था से ही समाज में ऊँच-नीच की भावना पैदा हुई। कर्म के आधार पर . विकसित जाति-व्यवस्था जन्म के आधार को गले लगा ली जिसका समाज पर बुरा । प्रभाव पड़ा। आज जातिवाद केवल सामाजिक समस्या ही नहीं राजनीतिक समस्या भी बन गई है, क्योंकि जाति और राजनीति दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करने लगी है। रजनी कोठारी ने इस संबंध में अपना विचार व्यक्त करते हुए सही कहा है कि आज हम जातिविहिन राजनीति की कल्पना नहीं कर सकते। उनका कहना सही है कि राजनीति में जातीयता का इतना प्रभाव हो गया है कि ‘बेटी और वोट अपनी जाति को दो’ का प्रचलन शुरू हो गया। भारत में ही नहीं; बिहार की राजनीति में भी जातिवाद हावी हो गया है। बिहार में भी राजनीति दलों द्वारा जाति के आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है, सरकार में विभिन्न जातियों को प्रतिनिधित्व मिलता हैं तथा राजनीतिक दल’ जातीय भावनाओं को उकसाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। चनाव की प्रतिस्पर्धा में जातीय समीकरण उभरकर सामने आता हैं। बिहार में कभी अगडी और पिछड़ी जातियों में विभेद पैदा किया जाता है। कभी सवर्णों अर्थात अगडी जातियों के सहयोग से नया समीकरण बनाता है। एक वरिष्ठ चुनाव-विश्लेषक ने सही कहा है कि “बिहार के लोग अभी भी जातिवाद का चश्मा पहल रखा है, हाँ। उसका नंबर बदलता रहता है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *