‘जीवनी लेखन’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?

‘जीवनी लेखन’ के बारे में आप क्या जानते हैं ? 

                                  अथवा

जीवनी किसे कहते हैं ?
उत्तर— जीवनी–जीवनी हिन्दी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधा है जिसने हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। जीवनी में वर्णित नायक के जीवन के ‘कु’ और ‘सु’ दोनों पक्षों का सांगोपाग और यथार्थ अनावृत्त चित्रण होता है और जिस रूप में उसने अपने जीवन का विकास किया है, उस रूप में उसका सही रूप जीवनीकार प्रस्तुत कर देता है। जीवनीकार अपने चरित्र नायक के जीवन का निर्माण नहीं करता बल्कि उसका कार्य तो उसे प्रस्तुत करना है। डॉ. रामगोपाल चौहान का कहना है— “जीवनी साहित्य में एक स्वतंत्र विधा के रूप में अपने चरित्र नायक के अन्तर और बाह्य उसके जीवन सम्बन्धी घटनाओं, परिस्थितियों, व्यक्तियों का, उसके गुण और दोषों का, महान व्यक्ति बनाने में उसके जीवन की विकास-गति का तथा उसके जीवन के प्रभाव का कलात्मक, रोचक, सजीव, सहृदयतापूर्ण किन्तु तटस्थ चित्रण होता है।”
डॉ. हरिमोहन के अनुसार—“जीवनी गद्य साहित्य की वह कथेतर विधा है, जिसमें व्यक्ति विशेष के अन्तः बाह्य का लेखा-जोखा यथार्थ के परिवेश में विन्यसित रहता है। यह कार्य किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सम्पादित किया जाता है, जीवनी के नायक द्वारा स्वयं नहीं।
डॉ. रामअवध द्विवेदी—”किसी व्यक्ति विशेष के क्रमबद्ध जीवन वृत्तान्त को जीवनी कहते हैं।”
ड्रायड के अनुसार—“व्यक्ति विशेष के जीवन का इतिहास ही जीवनी है। “
हैरोल्ड निकल्सन के अनुसार—‘जीवनी कलाकृति के रूप में लिखित व्यक्ति के जीवन का सत्य विवरण है। “
जीवनी के आवश्यक तत्त्व—
(i) जीवनी में दिए गए प्रसंगों में क्रमबद्धता का होना आवश्यक है क्योंकि जीवनी एक प्रकार का व्यक्तिपरक इतिहास ही होता है।
(ii) जीवनी की रचना करते समय लेखक को सभी प्रकार से अपना सन्तुलन बनाए रखना चाहिए। इस सन्तुलन का मतलब यह है कि चरित्रनायक के जीवन की विविध घटनाओं में से उपयुक्त घटनाओं का ही चयन करना चाहिए।
(iii) लेखक को केवल ऐसे घटनाक्रम ही अपनाने चाहिए जो चरित्र नायक के जीवन के सामूहिक और चिरन्तन सत्यों का उद्घाटन करने वाले हों।
(iv) जीवनीकार को चरित्रनायक के गुणों तथा दोषों का निष्पक्ष होकर वर्णन करना चाहिए। इसके साथ-साथ उन परिस्थितियों का ध्यान रखना आवश्यक है जिसके कारण चरित्र नायक के गुण और दोष उभरकर सामने आ जाते हैं।
(v) जीवनी में कलात्मकता का समावेश होना नितान्त जरूरी है तभी जीवनी में सम्प्रेषणीयता आ सकती है।
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