शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के रूप में ‘आत्माभिव्यक्ति’ तथा ‘आत्मानुभूति’ को स्पष्ट कीजिए।

शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य के रूप में ‘आत्माभिव्यक्ति’ तथा ‘आत्मानुभूति’ को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– आत्माभिव्यक्ति (Self-Expression) – कुछ व्यक्तिवादी विचारकों के मतानुसार शिक्षा के उद्देश्य बालकों को आत्माभिव्यक्ति में स्वतंत्रता एवं सफलता देना है। आत्माभिव्यक्ति से उसका तात्पर्य आत्म प्रकाशन (Self Assertion) अर्थात् मूल प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर देना है। दूसरे शब्दों में, शिक्षा द्वारा बालकों की मूल प्रवृत्तियों का विकास इस प्रकार किया जाना चाहिये कि वे उनको स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सके । मनोविश्लेषण के आचार्यों का कथन है कि आत्माभिव्यक्ति/आत्म प्रकाशन से व्यक्ति में भावना ग्रन्थि नहीं बनने पाती और उसका जीवन यापन स्वाभाविक ढंग से चलता है । यह तभी संभव है, जब समाज में ऐसी स्वतंत्रता, रीति रिवाज आदि हों जिनकी सहायता से बालक अपनी जन्मजात प्रवृत्तियों को सरलता से व्यक्त करना सीख सके। आत्माभिव्यक्ति के उद्देश्य के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं—
(1) मूल प्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं अतः व्यक्ति को इन्हें तृप्त करने का जन्माधिकार प्राप्त है।
(2) मूल प्रवृत्तियों के दमन से व्यक्ति में भावना ग्रन्थि बन जाती है फलतः वह अनेक मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है । अतः इन्हें व्यक्त करने का अवसर प्रत्येक व्यक्ति को मिलना चाहिए ।
(3) मूल प्रवृत्तियों के दमन से बालक अपराध वृत्ति की ओर आकृष्ट होते हैं जिनसे उनका भावी जीवन नष्ट हो जाता है।
(4) इनके दमन से बालक का व्यक्तिगत असन्तुलन हो जाता है।
(5) शिक्षा का कार्य व्यक्ति को सुखी बनाता है। यह तभी सम्भव है जबकि मूल प्रवृत्तियों को व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया जाये।
आत्मानुभूति (Self-Realization) – आत्मानुभूति का अर्थ अपने ‘स्व’ को विकसित करते हुए विश्व के ‘स्व’ के साथ एकाकार कर देना अर्थात् ‘एकता में अनेकता’ और ‘ अनेकता में एकता’ देखता है। वह एक आध्यात्मिक अवस्था है और व्यक्तित्व का सर्वोच्च सोपान है।
रॉस के अनुसार—” आत्मानुभूति में आत्मा का अर्थ मौजूदा असन्तोषजनक एवं अनुशासनहीन आत्मा नहीं है बल्कि भविष्य की पूर्णतः परिवर्तित आत्मा है। “
अतः इस उद्देश्य के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक के गुणों तथा विकास की संभावनाओं का पता लगाकर उसे सुसामाजिक प्राणी बनाना है जिससे वह आगे चलकर अपने सर्वोच्च गुण की अनुभूति कर सके । आत्मानुभूति के उद्देश्य के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं—
(1) यह उद्देश्य बालक की पाशविक प्रवृत्तियों का शोधन (Sublimation) तथा मार्गान्तीकरण (Redirection) करके उसमें मानवीय गुणों का विकास करता है।
(2) यह उद्देश्य समाज विरोधी भी नहीं है क्योंकि व्यक्ति को समाज का अभिन्न अंग माना गया है। यह समाज में रहकर ही अपने व्यक्तिगत गुणों की अनुभूति कर सकता है ।
(3) यह उद्देश्य चारित्रिक विकास में योग देता है ।
(4) यह उद्देश्य बुरी प्रवृत्तियों को छोड़कर अच्छी दिशा में मोड़ने का प्रयास करता है ।
(5) यह उद्देश्य सर्वोत्तम गुणों का विकास कर, बालक को पूर्णता की ओर ले जाता है।
विचारों को पृथक्-पृथक् ढंग से प्रस्तुत करने का मुख्य रूप से इनमें अन्तर है। “स्वयं” की अनुभूति होने के पश्चात् ही बालक ‘स्व’ की अभिव्यक्ति कर सकता है। ‘स्व’ की अनुभूति के अभाव में वह ‘स्व’ की अभिव्यक्ति भी नहीं कर सकेगा। अतः दोनों उद्देश्य एक ही तथ्य से सम्बन्धित होते हुए भी प्रस्तुत करने का मुख्य अन्तर है।
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