द्रव्यों के यान्त्रिक गुण (Mechanical Properties of Fluids)

द्रव्यों के यान्त्रिक गुण (Mechanical Properties of Fluids)

द्रव्यों के यान्त्रिक गुण (Mechanical Properties of Fluids)

क्या कभी आपने सोचा है कि ऊँट रेगिस्तान में आसानी से क्यों दोड़ पाता है? सेना का टैंक जिसका भार एक हजार टन से भी अधिक होता है, एक सतत् (uniform) चेन पर क्यों टिका होता है? किसी ट्रक या बस के टायर अधिक चौडे क्यों होते हैं? काटने वाले औजारों की धार तेज क्यों होती है? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए तथा इसमें शामिल परिघटनाओं को समझने के लिए दी गई वस्तु पर एक विशेष दिशा में लगने वाले नेट बल (प्रणोद), तथा प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल ( अर्थात् दाब) से संबंधित अवधारणाओं से परिचित होना आवश्यक है।
प्रणोद तथा दाब (Thrust and Pressure)
किसी सतह के सम्पूर्ण क्षेत्रफल पर लगने वाले कुल लम्बवत् बल को प्रणोद कहते हैं। प्रणोद का प्रभाव उस क्षेत्रफल पर निर्भर करता है, जिस पर यह लगा होता है। प्रणोद तथा बल का मात्रक समान होता है। प्रणोद का SI मात्रक न्यूटन होता है। यह एक सदिश राशि है।
किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं।
दाब किसी निश्चित दिशा में न होकर सभी दिशाओं में क्रियाशील होता है। उपरोक्त दाब के सूत्र से, किसी वस्तु पर लगा समान बल अलग-अलग दाब उत्पन्न करता है, जो उस क्षेत्रफल पर निर्भर करता है जिस पर बल आरोपित है। अतः किसी वस्तु के कम क्षेत्रफल पर बल लगाने के लिए अधिक दाब तथा अधिक क्षेत्रफल पर उतना ही बल लगाने के लिए कम दाब की आवश्यकता होती है।
द्रव में दाब (Pressure in Liquid) 
द्रव पदार्थों का दाब उनके भार के कारण होता है। द्रव के अणु विभिन्न दिशाओं में अनियमित गति करते रहते हैं। अतः द्रव द्वारा सम्पर्क सतह के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर आरोपित अभिलम्बत् बल, द्रव का दाब अथवा द्रव स्थैतिक दाब कहलाता है।
द्रव स्तम्भ पर लगने वाला दाब  (p = hpg)
जहाँ, h = द्रव स्तम्भ की ऊँचाई, p = द्रव का घनत्व तथा g = गुरुत्वीय त्वरण द्रव का दाब, वह पात्र, जिसमें वह रखा जाता है, या पात्र की आकृति पर निर्भर नहीं करता। यदि द्रव के स्वतन्त्र तल पर लगने वाले बल में वायुमण्डलीय दाब को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो,
                                        द्रव का कुल दाब = वायुमण्डलीय दाब + pgh, होगा।
द्रव की खुली सतह से नीचे का दाब, यदि वायुमण्डलीय दाब अर्थात् pgh से अधिक होता है तब दाब की इस अतिरिक्त राशि प्रक्रिया को गेज दाब (gauge pressure) कहते हैं।
द्रव-दाब के नियम (Laws of Liquid Pressure) 
(i) द्रव के भीतर एक क्षैतिज तल पर स्थित सभी बिन्दुओं पर द्रव-दाब समान होता है।
(ii) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर द्रव का दाब सभी दिशाओं में समान होता है।
(iii) द्रव द्वारा लगाया गया दाब सदैव द्रव के सम्पर्क वाली सतह के लम्बवत् होता है।
(iv) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर द्रव दाब, द्रव की सतह के आकार व क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता।
(v) किसी बिन्दु पर द्रव का दाब, द्रव के घनत्व के अनुक्रमानुपाती होता है।
◆ किसी बिन्दु पर द्रव का दाब-द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है घनत्व अधिक होने पर दाब भी अधिक होता है।
◆ द्रव का दाब उस पात्र के आकार या आकृति पर निर्भर नहीं करता, जिसमें द्रव रखा जाता है।
◆ सभी द्रवों का क्वथनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ जाता है।
◆ यदि किसी बर्तन में h ऊँचाई तक द्रव भरा है तब बर्तन की दीवारों पर औसत दाब hpg/2 होता है।
पास्कल का नियम (Pascal’s Law)
इस नियम के अनुसार, किसी बद्ध द्रव (enclosed liquid) के किसी भाग के दाब में होने वाली वृद्धि, द्रव के अन्य भागों में बिना क्षय हुए, एकसमान रूप से संचरित हो जाती है।
                                           अथवा
इस नियम के अनुसार, यदि गुरुत्व नगण्य हो, तो पात्र में रखे द्रव के किसी एक बिन्दु पर दाब बढ़ाने पर, दाब द्रव के सभी बिन्दुओं व पात्र की दीवारों पर समान रूप से संचरित होता है। यदि गुरुत्व नगण्य न हो, तो समान दाब गहराई पर स्थित सभी बिन्दुओं पर द्रव का दाब समान नहीं होता है।
पास्कल नियम के अनुप्रयोग (Applications of Pascal’s Law) 
पास्कल नियम के दो महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं
(i) हाइड्रॉलिक लिफ्ट (Hydraulic Lift) यह पास्कल के सिद्धान्त पर आधारित एक ऐसी युक्ति है, जो भारी उपकरणों को ऊपर उठाने में प्रयुक्त होती है। इसमें एक (अल्प आकार के) अनुप्रस्थ-परिच्छेद पर अल्प बल आरोपित करने पर दाब के संचरण के कारण प्रबल बल बड़े आकार के अनुप्रस्थ – परिच्छेद पर उत्पन्न हो जाता है, जोकि भारी उपकरणों को ऊपर उठाए रखता है।
(ii) हाइड्रॉलिक ब्रेक (Hydraulic Brakes) यह पास्कल के नियम पर आधारित ऐसी युक्ति है, जो गाड़ी के सभी पहियों में एकसाथ एकसमान मन्दन उत्पन्न करती है। इसमें एक मास्टर बेलन होता है, जिसमें ब्रेक तेल भरा रहता है तथा वायुरोधी (air tight) पिस्टन लगा रहता है।
जब ब्रेक पैडल को दबाया जाता है, तो मास्टर बेलन का पिस्टन लीवर निकाय द्वारा अन्दर की ओर दबता है, जिसमें पिस्टन के निकटवर्ती द्रव पर दाब लगता है। पास्कल के नियम से यह दाब पिस्टनों में समान रूप से सचरित हो जाते हैं। इससे पिस्टन एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं। फलस्वरूप ब्रेक-शू एक-दूसरे से परस्पर दूर हो जाते हैं तथा पहिए को अन्दर से दबाते हैं, जिससे पहिए की गति मन्दित हो जाती है।
वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure)
वायुमण्डल में उपस्थित वायु भी सभी वस्तुओं पर अत्यधिक दाब आरोपित करता है, जिसे वायुमण्डलीय दाब कहा जाता है। समुद्र तल पर यह दाब 105 न्यूटन/मी’ के बराबर होता है। तापक्रम बढ़ने से हवा का घनत्व घटता है, अतः वायुमण्डलीय दाब भी घट जाता है।
वायुमण्डलीय दाब पृथ्वी की सतह पर अधिकतम होता है तथा पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर घटता है। पृथ्वी की समुद्रतटीय सतह पर वायुमण्डलीय दाब का मान 1 होता है। जहाँ यह 1.013×105 (= 105)न्यूटन/मी2 के लगभग बराबर होता है।
वायुमण्डलीय दाब के विभिन्न मात्रक निम्नलिखित हैं
(i) वायुमण्डलीय दाब का SI मात्रक न्यूटन/मी2 या पास्कल है तथा CGS पद्धति में मात्रक डाइन/सेमी± होता है।
(ii) वायुमण्डलीय दाब को पारे स्तम्भ में मिमी या सेमी में मापते हैं।
(iii) वायुमण्डलीय दाब को टॉर (torr) में भी मापा जाता है।
                                    1 टॉर = 1 मिमी पारा दाब = 133.32 पास्कल
(iv) वायुमण्डलीय दाब के मात्रक को माप-विद्या (metrological purpose) में उपयोग करने को बार कहते हैं।
                                     जहाँ, 1 बार = 10 पास्कल = 105 न्यूटन मी2
                                     1 मिलीबार = 103 बार = 100 पास्कल
यदि वायुदाबमापी में पारे के स्थान पर पानी भर दिया जाए तब वायुदाबमापी में नली की ऊँचाई लगभग 10 मी होगी।
उत्प्लावकता (Buoyancy)
किसी वस्तु के तैरने की प्रवृत्ति उत्प्लावकता कहलाती है। इसी प्रकार गैसों का प्रदर्शन भी उत्प्लावकता का गुण है।
◆ जब एक वस्तु को तरल (द्रव) में डुबोया जाता है तो उसके भार में कमी आ जाती है। अतः द्रव में डूबी वस्तु का यह भार, वस्तु का स्पष्ट भार (apparent weight of the object) कहलाता है।
◆ द्रवों का दबाव गहराई के साथ बढ़ता है ।
उत्प्लावन बल (Buoyant Force)
जब किसी वस्तु को द्रव में पूर्णतः या आंशिक रूप से डुबोया जाता है, तो द्रव द्वारा वस्तु पर एक बल ऊपर की ओर लगाया जाता है। यह बल उत्प्लावन बल या उत्क्षेप बल कहलाता है।
उदाहरण लकड़ी का एक टुकड़ा द्रव की सतह पर तैरता रहता है। जब हम अँगूठे से टुकड़े पर बल लगाते हैं, तब लकड़ी का टुकड़ा अचानक ऊपर की ओर उठने की प्रवृत्ति होती है। इसका कारण यह है कि द्रव, डूबी हुई प्रत्येक वस्तु पर उत्प्लावन बल लगाता है।
उत्प्लावन बल का परिमाण निम्न गुणों पर निर्भर करता है
(i) द्रवों का घनत्व (Density of Liquid) जो द्रव अधिक घनत्व रखते हैं वे कम घनत्व रखने वाले द्रवों की तुलना में ऊपर की तरफ अधिक उत्प्लावन बल लगाते हैं।
(ii) द्रव में डूबी वस्तु का आयतन (Volume of Object Immersed in Liquid) ठोस वस्तु पर लगे उत्प्लावन बल का परिमाण, वस्तु की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है बल्कि यह वस्तु के आयतन पर निर्भर करता है।
उत्प्लावकता केन्द्र (Centre of Buoyancy)
यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व केन्द्र पर कार्य करता है, जिसे उत्प्लावकता केन्द्र कहते हैं।
आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimedes’ Principle) 
जब किसी द्रव में कोई वस्तु पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है, तो उसके भार में कमी आ जाती है। भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती है। विस्थापित द्रव के भार के बराबर एक बल वस्तु पर ऊपर की ओर लगता है, जिसे उत्प्लावन बल कहते हैं। आर्किमिडीज का यह सिद्धान्त द्रव एवं गैस दोनों के लिए मान्य होता है।
                                 वस्तु पर लगा उत्प्लावन बल = वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव का भार
यहाँ गैसें जैसे वायु में जब कोई वस्तु रखी जाती है, तो वह उस वस्तु पर ऊपर की ओर एक उत्प्लावन बल लगाती है। इसका उपयोग जहाजों तथा पनडुब्बी की आकृति बनाने में, लैक्टोमीटर में (जिसके द्वारा दूध की शुद्धता की जाँच की जाती है, हाइड्रोमीटर में) जिसके द्वारा द्रव का घनत्व ज्ञात किया जाता है) तथा पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात करने आदि में किया जाता है।
प्लवन (Floatation)
जब कोई वस्तु किसी द्रव में डुबोई जाती है, तो उस पर दो बल कार्य करते हैं
(i) वस्तु का भार w, ऊर्ध्वाधरत्ः नीचे की ओर
(ii) द्रव का उत्क्षेप या उत्प्लावन बल F ऊर्ध्वाधरत्ः ऊपर की ओर।
प्लवन के नियम (Laws of Floatation)
जब एक वस्तु द्रव में डुबाई जाती है, तो वस्तु का भार इसके डूबे हुए भाग द्वारा विस्थापित द्रव के भार के बराबर होता है और वस्तु का गुरुत्व केन्द्र तथा विस्थापित द्रव का गुरुत्व केन्द्र एक ही उदग्र रेखा पर स्थित होता है। किसी वस्तु के तैरने और डूबने की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हो सकती हैं
(i) जब w > F’ अर्थात् वस्तु का भार उसके उत्क्षेप या उत्प्लावन बल से अधिक हो, तो अवस्था में वस्तु द्रव में डूब जाएगी।
(ii) जब w = F’ अर्थात् वस्तु का भार उसके द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर हो, तो इस स्थिति में वस्तु पर परिणामी बल w – F = 0 होता है। इस स्थिति में, वस्तु ठीक द्रव की सतह के नीचे तैरती रहती है।
(iii) जब w < F अर्थात् वस्तु का भार उस पर लगने वाले उत्क्षेप या उत्प्लावन बल से कम हो । इस स्थिति में परिणामी बल ऊपर की ओर लगता है, अतः वस्तु का कुछ भाग द्रव के ऊपर रहता है और वस्तु द्रव में तैरती रहती है। ऐसी अवस्था में वस्तु का घनत्व, द्रव के घनत्व से निश्चितरूपेण कम होता है।
अतः द्रव में आंशिक रूप से डूबकर तैरने वाली वस्तु के लिए
हाइड्रोमीटर (Hydrometer)
इस संयन्त्र द्वारा तरल पदार्थों का घनत्व या आपेक्षिक घनत्व मापा जाता है। यह तैरने के सिद्धान्त पर आधारित है। हाइड्रोमीटर के विशेष प्रकार द्वारा वाहनों की बैट्री के तेजाब का घनत्व मापा जाता है। लैक्टोमीटर भी हाइड्रोमीटर का एक विशेष अंग है जिसके द्वारा दूध का घनत्व मापा जाता है।
मित केन्द्र (Meta Centre)
तैरती हुई वस्तु द्वारा विस्थापित द्रव के गुरुत्व केन्द्र को उत्प्लावन केन्द्र कहते हैं। उत्प्लावन केन्द्र से जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा जिस बिन्दु पर वस्तु के गुरुत्व केन्द्र से जाने वाली प्रारम्भिक ऊर्ध्वाधर रेखा को काटती है, उसे मित केन्द्र कहते हैं। तैरने वाली वस्तु के स्थायी सन्तुलन के लिए मित केन्द्र, गुरुत्व केन्द्र के ऊपर होना चाहिए।
वस्तुओं के सन्तुलन की अवस्था (Stability of Equilibrium of Bodies) 
किसी वस्तु के मित केन्द्र की स्थिति गुरुत्व केन्द्र से सम्बन्धित होती है। जब वस्तु का मित केन्द्र, गुरुत्व केन्द्र से ऊपर होता है, तो वस्तु स्थायी सन्तुलन में होती है तथा जब वस्तु का मित केन्द्र, गुरुत्व केन्द्र से नीचे होता है, तब वस्तु अस्थायी सन्तुलन में होती है।
पृष्ठ – तनाव (Surface Tension )
प्रत्येक द्रव के मुक्त पृष्ठ में सिकुड़कर न्यूनतम क्षेत्रफल धारण करने की प्रवृत्ति होती है, मानों यह तनाव की अवस्था में हो। किसी द्रव का पृष्ठ-तनाव वह बल है, जो द्रव के पृष्ठ पर खींची गई काल्पनिक रेखा की इकाई लम्बाई पर रेखा के लम्बवत् कार्य करता है। यदि यह रेखा की लम्बाई (l) पर रेखा के लम्बवत् कार्य करता है, तो
इसका SI मात्रक न्यूटन मी या जूल / मी ? होता है, यह एक अदिश राशि है।
किसी द्रव के पृष्ठ-तनाव का मान द्रव के ताप पर तथा द्रव के पृष्ठ के दूसरी ओर के माध्यम पर निर्भर करता है। द्रव का ताप बढ़ने पर पृष्ठ-तनाव घटता है तथा क्रान्तिक ताप पर पृष्ठ-तनाव शून्य होता है | पृष्ठ तनाव के कारण ही द्रव की छोटी बूँद गोलीय आकार में गिरती है।
पृष्ठ- तनाव के उदाहरण (Examples of Surface Tension)
(i) धातु के तार का एक फ्रेम लेकर उसे साबुन के घोल में डालकर बाहर निकालने पर इसमें साबुन के घोल की झिल्ली बन जाती है। झिल्ली पर गीले धागे का एक लूप रखें। अब लूप के मध्य झिल्ली को किसी पिन से तोड़ दें, तो लूप शीघ्रता से वृत्ताकार हो जाएगा। इसका कारण पृष्ठ तनाव ही है।
(ii) जब पारे की कुछ मात्रा को काँच की साफ प्लेट पर फैलाया जाता है, तो वह गोलाकार बूँदों की आकृति ग्रहण करता है। बूँद की आकृति का निर्धारण पृष्ठ तनाव तथा गुरुत्व बल के कारण होता है। पृष्ठ तनाव के कारण छोटी बूँदें गोलाकार होती हैं, क्योंकि इन पर गुरुत्व बल नगण्य होता है। बड़ी बूँदें गुरुत्व बल के कारण मध्य से कुछ चपटी हो जाती हैं, जबकि सिरों पर गोलाकार होती हैं।
(iii) यदि साबुन के घोल को गर्म कर दिया जाए तो इसका पृष्ठ तनाव और भी कम हो जाता है तथा तब यह कपड़ों की और भी अधिक सफाई करता है।
(iv) घाव धोने वाली दवाइयों (जैसे-डिटोल आदि) का पृष्ठ-तनाव जल की अपेक्षा कम होता है, अतः यह घाव में बनी छोटी-छोटी दरारों में भी पहुँच जाता है तथा घाव की सफाई भली प्रकार हो जाती है।
(v) कॉर्क अथवा प्लास्टिक की गुड़िया के एक ओर कपूर का टुकड़ा चिपकाकर, उसे जल के पृष्ठ पर छोड़ने पर वह चिपके हुए कपूर की विपरीत दिशा में भागती है। यदि पानी के पृष्ठ पर मिट्टी का तेल छिड़क दिया जाए तो कपूर के टुकड़े अथवा कॉर्क का चलना बन्द हो जाता है, क्योंकि तेल मिश्रित पानी का पृष्ठ-तनाव कपूर के घोल के पृष्ठ तनाव की अपेक्षा कम होता है।
(vi) यदि किसी पानी भरे गड्ढे में मिट्टी का तेल छिड़क दिया जाए तो उसके पानी का पृष्ठ-तनाव कम हो जाता है। पृष्ठ तनाव कम होने से उसकी सतह की झिल्ली टूट जाती है जिससे उसमें स्थित मच्छर पानी में डूब कर मर जाते हैं।
(vii) शेविंग अथवा पेन्टिंग ब्रश के बाल पानी के अन्दर फैल जाते हैं परन्तु जैसे ही ब्रश बाहर निकाला जाता है, बाल आपस में चिपक जाते हैं। इसका कारण है कि पानी के बाहर बालों के बीच द्रव की फिल्म बन जाती है जो पृष्ठ-तनाव के कारण न्यूनतम क्षेत्रफल ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखती है जिस कारण बाल परस्पर चिपक जाते हैं।
आसंजक बल (Adhesive Force)
दो भिन्न प्रकार के पदार्थों के अणुओं के मध्य लगने वाले अन्तराण्विक आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं।
उदाहरण
(i) स्याही एवं कागज के बीच आसंजक बल स्याही के ससंजक बल की अपेक्षा अधिक होता है। अतः लिखते समय स्याही कागज पर चिपक जाती है, जिससे लिखना सम्भव बन जाता है। इस बल के कारण ही ब्लैक बोर्ड पर चॉक से लिखने अक्षर उभर आते हैं।
(ii) जल से भीगी काँच की प्लेट को सुखाने के लिए इसे किसी ऐसे पदार्थ से पोंछते हैं, जिसका जल के अणुओं के लिए आसंजक बल काँच की अपेक्षा अधिक होता है, जैसे-सूखा खुरदरा कपड़ा। रेशमी तथा नायलोन कपड़े का जल के लिए आसंजक बल कम होता है, अतः इनसे गीली प्लेट को आसानी से नहीं पोंछा जा सकता है। आसंजक बल के कारण ही थेलियम (thalium) की परखनली में पारा रखने पर, पारा नली की दीवार से चिपक जाता है।
ससंजक बल (Cohesive Force)
एक ही पदार्थ के विभिन्न अणुओं के मध्य लगने वाले अन्तराण्विक आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं। यह ठोसों तथा द्रवों में अधिक तथा गैसों में सबसे कम, लगभग नगण्य होता है।
उदाहरण
(i) काँच की प्लेट जल में डालने पर इसलिए गीली होती है, क्योंकि जल के अणु काँच के अणुओं से आसंजक बल के कारण चिपक जाते हैं।
(ii) जल से भीगी काँच की दो चिपकी प्लेटों को अलग-अलग करने में जल के अणुओं के बीच लगने वाले ससंजक बल के विरुद्ध काफी बल लगाना पड़ता है।
(iii) जल के अणुओं, काँच आदि के बीच लगने वाला ससंजक बल अणुओं के बीच की दूरी की सातवीं घात के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
पृष्ठ – ऊर्जा (Surface Energy)
द्रव के मुक्त पृष्ठ पर उपस्थित अणुओं पर एक परिणामी बल नीचे की ओर कार्य करता है। द्रव के अन्दर उपस्थित अणुओं को जब पृष्ठ पर लाया जाता है, तो इस अन्तराण्विक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यह कार्य अणुओं में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। द्रव के पृष्ठ के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर अणुओं में उपस्थित इस अतिरिक्त स्थितिज ऊर्जा की मात्रा द्रव की पृष्ठ- ऊर्जा कहलाती है। यह परिभाषित करता है कि नियत ताप पर द्रवों के दिये गये क्षेत्रफल पर किये गये कार्य की मात्रा पृष्ठ तनाव के विरुद्ध होती है।
इसका SI मात्रक जूल / मी2 तथा विमा [MT-2 ] है |
स्पर्श कोण (Angle of Contact)
जब कोई द्रव पृष्ठ किसी ठोस पृष्ठ को स्पर्श करता है, तो स्पर्श स्थान के पास द्रव-पृष्ठ सामान्यतः वक्रीय हो जाता है। जब काँच की किसी प्लेट को जल में डुबोते हैं, तो प्लेट के पास वाले जल का मुक्त पृष्ठ अवतल हो जाता है अर्थात् ऐसा प्रतीत होता है कि प्लेट द्वारा जल ऊपर खींचा गया है। यदि काँच की प्लेट को पारे में डुबोते हैं तो प्लेट के पास वाला पारा कुछ नीचे दब जाता है तथा पारे का मुक्त पृष्ठ उत्तल हो जाता है। अतः द्रव तथा ठोस पृष्ठ की स्पर्श रेखा (line of contact) के किसी बिन्दु पर दो स्पर्श तल (tangent planes), एक ठोस पृष्ठ के स्पर्शीय द्रव के अन्दर की ओर तथा दूसरा द्रव पृष्ठ के स्पर्शीय ठोस पृष्ठ से दूर, खींचे जाएँ, तो इन स्पर्श तलों के बीच का कोण स्पर्श कोण (0) कहलाता है।
स्पर्श कोण से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु (Important Points Related to Angle of Contact)
(i) यदि स्पर्श कोण 90° है, तो
◆ द्रव बर्तन को भिगोता है।
◆ केशनली में द्रव न तो ऊपर चढ़ता है ओर न नीचे उतरता है।
◆ केशनली में द्रव का तल क्षैतिज होता है।’
(ii) यदि स्पर्श कोण < 90° (न्यूनकोण) है, तो
◆ द्रव बर्तन को भिगोता है।
◆ द्रव केशनली में ऊपर चढ़ता है। –
◆ केशनली में द्रव का तल अवतल होता है। –
(iii) यदि स्पर्श कोण > 90° (अधिक कोण) है, तो
◆ द्रव बर्तन को नहीं भिगोएगा।
◆ द्रव केशनली में नीचे गिरेगा।
◆ केशनली में द्रव का तल उत्तल होता है।
(iv) शुद्ध जल तथा साफ काँच की सतह पर स्पर्श कोण शून्य होता है। साधारण जल तथा काँच के लिए स्पर्श कोण 8°, इसी प्रकार पारे तथा काँच के लिए स्पर्श कोण 140°, ऐल्कोहॉल तथा साफ काँच के लिए स्पर्श कोण होता है।
(v) किसी द्रव का ताप बढ़ने पर स्पर्श कोण भी बढ़ता है। –
(vi) घुलनशील अशुद्धियाँ स्पर्श कोण के मान को घटा देती हैं
(vii) आंशिक रूप से घुलनशील अशुद्धियाँ स्पर्श कोण के मान को बढ़ा देती हैं।
(viii) स्पर्श कोण का मान द्रव तथा उसके सम्पर्क में स्थित ठोस पृष्ठ की प्रकृतियों पर निर्भर करता है। किसी एक युग्म के लिए इसका मान नियत रहता है।
केशिकत्व (Capillarity)
शीशे की बनी एक ऐसी खोखली नली जिसकी त्रिज्या केश के समान बारीक होती है, केशनली (capillary) कहलाती हैं। केशनली को जल में खड़ा करने पर उसमें जल अपने सामान्य तल से कुछ ऊपर उठ जाता है। शीशे की बनी संकीर्ण नली (केशनली) में द्रव के ऊपर चढ़ने अथवा नीचे उतरने की घटना को केशिकात्व कहते हैं। यदि कोई द्रव किसी केशनली में h ऊँचाई तक चढ़ता है या h गहराई तक उतरता है व उसका स्पर्श कोण θ है, तो
जहाँ, r = केशनली की त्रिज्या, d = द्रव का घनत्व तथा T = द्रव का पृष्ठ तनाव द्रव की ऊँचाई (h) बढ़ने के बारे में
(i) पृष्ठ तनाव अधिक होने पर ऊँचाई अधिक होगी।
(ii) स्पर्श कोण कम होने पर ऊँचाई अधिक होगी।
(iii) केशनली की त्रिज्या कम होने पर ऊँचाई अधिक होगी।
(iv) द्रवों का घनत्व कम होने पर ऊँचाई अधिक होगी।
◆ जिन द्रवों के लिए स्पर्शकोण अधिककोण है, वे केशनली में नीचे उतर आते हैं तथा जिन द्रवों के लिए स्पर्शकोण न्यूनकोण है, वे केशनली में ऊपर चढ़ जाते हैं।
◆ यदि एक केशनली में जल की अपेक्षा एक तरल अधिक ऊँचाई तक चढ़ता है, तो इसका कारण यह है, कि तरल का पृष्ठ-तनाव जल की अपेक्षा अधिक है।
◆ केशनली में द्रव का चढ़ना, ऊर्जा संरक्षण के नियम का उल्लंघन (violate) नहीं करता है।
◆ केशनली का छिद्र जितना अधिक बारीक अर्थात् छिद्र की त्रिज्या जितनी कम होती है। केशनली में द्रव उतना ही अधिक ऊपर चढ़ता है।
◆ चन्द्रमा की सतह पर केशनली में द्रव स्तम्भ की ऊँचाई पृथ्वी की अपेक्षा छः गुनी अधिक होती है।
◆ यदि केशनली की लम्बाई, ऊँचाई से अधिक होती है, तो द्रव नली में इतनी ऊँचाई तक चढ़ जाता है कि द्रव नली की चोटी तक चढ़कर फैल जाता है। परन्तु केशनली के ऊपरी सिरे से बाहर फुहार के रूप में नहीं निकल पाता।
द्रवों का प्रवाह (Flow of Liquids)
द्रवों का प्रवाह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है
(i) धारा रेखीय प्रवाह (Stream Lined Flow) यदि द्रव के प्रवाह में किसी एक बिन्दु से होकर गुजरने वाले द्रव के सभी कण एक ही वेग से, एक ही मार्ग से होकर गुजरें तब यह प्रवाह, धारा रेखीय प्रवाह (streamlined flow) कहलाता है। एक बिन्दु से होकर गुजरने वाले द्रव के कण जिस रेखीय पथ पर गति करते हैं, धारा रेखा कहलाती है तथा इसके किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर द्रव के प्रवाह की दिशा को प्रदर्शित करती है। उदाहरण – यदि तरल किसी बेलनाकार (cylindrical) पाइप में धारा रेखी गति से बह रहा है तो पाइप के पास वाली परतों की गति न्यूनतम होती है और जैसे-जैसे पाइप से दूर जाते हैं, परतों की गति बढ़ती जाती है।
(ii) पटलित प्रवाह (Laminar Flow) यदि एक द्रव किसी क्षैतिज सतह पर धारा रेखीय प्रवाह में भिन्न-भिन्न वेगों की परतों के रूप में बह रहा हो तथा परतें आपस में मिलती न हों, तो द्रव का प्रवाह पटलित प्रवाह कहलाता है। इस प्रवाह में द्रव प्रवाह का वेग सदैव द्रव के क्रान्तिक वेग से कम होता है।
(iii) विक्षुब्ध प्रवाह (Turbulent Flow) यदि द्रव के प्रवाह में किसी एक बिन्दु से होकर गुजरने वाले द्रव के कण भिन्न-भिन्न वेगों से, भिन्न-भिन्न मार्गों से होकर गुजरें, तब द्रव का यह प्रवाह विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है अथवा जब द्रव प्रवाह का वेग उसके क्रान्तिक वेग से अधिक होता है तब द्रव के कण अनियमित गति करते हैं तथा उनका प्रवाह, विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है।
क्रान्तिक वेग (Critical Velocity)
द्रव का वह निश्चित वेग जिससे कम वेग पर द्रव का प्रवाह धारा रेखीय तथा उससे अधिक वेग पर द्रव का प्रवाह विक्षुब्ध प्रवाह हो जाता है, क्रान्तिक वेग कहलाता है। क्रान्तिक वेग नली की त्रिज्या पर निर्भर करता है तथा तरल का घनत्व अधिक होने पर क्रान्तिक वेग भी अधिक होता है।
इस समीकरण से स्पष्ट है कि असमान अनुप्रस्थ – परिच्छेद वाली नली के किसी बिन्दु पर द्रव के प्रवाह की दर उस बिन्दु पर अनुप्रस्थ – परिच्छेद के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अतः जहाँ नली चौड़ी होती है, वहाँ द्रव प्रवाह का वेग कम तथा जहाँ नली पतली होती है, वहाँ द्रव प्रवाह का वेग अधिक होता है।
यदि नली का क्षेत्रफल बढ़ता है, तब द्रव का वेग घटता है और यदि द्रव का वेग बढ़ता है, तब नली का क्षेत्रफल घटता है। अविरत्ता का सिद्धान्त द्रव्यमान संरक्षण पर आधारित है।
बहते तरल की ऊर्जा (Energy of a Flowing Fluid)
ऐसे पदार्थ जो बह सकते हैं, तरल कहलाते हैं। जैसे जल, वायु, इत्यादि ।
किसी बहते हुए तरल में निम्न तीन प्रकार की ऊर्जाएँ होती हैं
(i) दाब ऊर्जा ( Pressure Energy) किसी द्रव में दाब के कारण निहित ऊर्जा उसकी दाब ऊर्जा कहलाती है। इसकी माप द्रव को दाब के विरुद्ध (वेग-परिवर्तन किए बिना) धकेलने में किए गए कार्य से होती है।
(ii) स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) किसी द्रव में पृथ्वी सतह (किसी निर्देश स्तर) से ऊँचाई अथवा स्थिति के कारण निहित ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
(iii) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) किसी द्रव में उसकी गति अथवा वेग के कारण निहित ऊर्जा उसकी गतिज ऊर्जा कहलाती है।
बरनौली प्रमेय के अनुप्रयोग (Applications of Bernoulli’s Theorem) 
(i) वायुयान के पँखों की आकृति (Shape of an Aeroplane Wing) वायुयान के पँखों की आकृति इस प्रकार बनाई जाती है कि जब वायुयान रनवे (runway) पर तेजी से गतिशील होता है, तो पँखों के इस विशिष्ट आकार के कारण पँखों के ऊपर की वायु की गति बढ़ जाती है व नीचे की घट जाती है। अतः वरनौली प्रमेय के अनुसार, ऊपरी दाब घट जाता है व नीचे दाब बढ़ जाता है। दाबान्तर के कारण वायुयान पर ऊपर की ओर एक बल (dynamic lift) लगता है, जिसका परिमाण दाबान्तर व पँखों के क्षेत्रफल के गुणनफल के तुल्य होता है। जब उपरोक्त बल का परिमाण वायुयान के भार से अधिक हो जाता है, तो वायुयान ऊपर उठ जाता है।
(ii) मैगनस प्रभाव (Magnus Effect) टेनिस या क्रिकेट के खिलाड़ी जब गेंद को स्पिन कराते हुए फेंकते हैं, तो गेंद वायु में सरल रेखा पर न चलकर एक वृत्ताकार पथ पर चलती है। इसका कारण यह है, कि जब गेंद किसी कोणीय चाल से स्पिन करती है, तो उसके साथ-साथ उसके चारों ओर की वायु भी कोणीय चाल से घूमती है। तथा स्पिन करती हुई आगे बढ़ती है। यदि गेंद के नीचे वायु की धारा रेखाओं की दिशा गेंद की स्पिन गति की दिशा में होता है, तब वायु का परिणामी वेग अधिक हो जाता है। अतः गेंद के ऊपर वायु का वेग कम तथा गेंद के नीचे वायु का वेग अधिक होता है। बरनौली के सिद्धान्त के अनुसार, गेंद के ऊपर वायुदाब अधिक तथा नीचे वायुदाब कम हो जाता है। इस दाबान्तर के कारण ही गेंद सरल रेखा में नहीं चल पाती है तथा नीचे को झुकते हुए वक्राकार पथ पर चलती है।
(iii) समान दिशा में अत्यन्त समीप गतिशील नावों (अथवा बसों) में आकर्षण (Attraction between Two Nearby Boats (or Buses) Moving in Same Direction) जब दो नाव (अथवा बस) समान दिशा में अत्यन्त समीप तेजी से गतिशील होती हैं, तो उनके मध्य जल (अथवा वायु) की परतें तेजी से गतिशील हो जाती हैं, जबकि दूर स्थित जल (अथवा वायु) की परतें धीमी गति से चलती हैं। अतः बरनौली प्रमेय से, उनके मध्य, दाब कम हो जाता है। इस दाबान्तर के कारण ही वे एक-दूसरे की ओर खिंचती हैं।
(iv) तेज आँधी-तूफान में टीन की छतों का उड़ जाना (Blowing off the Roof During Storm) जब टीन की छत के ऊपर से बहुत अधिक चाल से वायु बहती है, तो बरनौली की प्रमेय के अनुसार, छत के ऊपर वायुदाव. वायुमण्डलीय दाब से बहुत कम हो जाता है, जबकि टीन के नीचे वायुमण्डलीय दाब रहता है। इस दाबान्तर के कारण ही टीन ऊपर उड़ जाती है।
स्टोक्स का नियम ( Stoke’s Law)
यदि, r त्रिज्या की एक सूक्ष्म गोली, किसी पूर्णत: समांग (homogeneous) व अनन्त विस्तार वाले तरल माध्यम (जैसे द्रव अथवा गैस) में सीमान्त वेग u से गति करे, तो गोली पर कार्य करने वाला श्यान बल F = 6πηrυ होता है।
जहाँ,  υ = वस्तु का वेग, r = वस्तु की त्रिज्या तथा η = द्रव का श्यानता गुणांक।
यह स्टोक्स का नियम कहलाता है।
इस नियमानुसार, माध्यम द्वारा पिण्ड पर लगने वाले श्यान बल का मान पिण्ड की आकृति, आकार व चाल तथा माध्यम की श्यानता पर निर्भर करता है।
स्टोक्स नियम के अनुप्रयोग (Applications of Stoke’s Law)
(i) स्टोक्स के सूत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग मिलीकन की इलेक्ट्रॉनिक आवेश ज्ञात करने की विधि में किया जाता है। इस विधि में तेल की छोटी-छोटी बूँदों को वायु में गिराकर तथा उनके गिरने की सीमान्त चाल नापकर बूँदों की त्रिज्या ज्ञात की जाती है।
(ii) पैराशूट का नीचे उतरना जब कोई छाताधारी व्यक्ति पैराशूट लेकर उड़ते हवाई जहाज से कूदता है, तो प्रारम्भ में उसका वेग तेजी से बढ़ने लगता है। इस समय वायु की श्यानता उसके वेग को कम करने का प्रयास करती है। पैराशूट के खुलते ही श्यान-बल का मान काफी बढ़ जाता है, जिससे व्यक्ति का त्वरण कम होता जाता है। अन्ततः कुछ दूरी तक गिरने के पश्चात् व्यक्ति का त्वरण शून्य हो जाता है अर्थात् वह सीमान्त वेग प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार व्यक्ति नियत सीमान्त वेग से पृथ्वी पर उतरता है।
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