निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये ।

निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये ।

(1) अनुकरण वाचन
(2) द्वितीय भाषा
(3) कविता रचना
(4) वाचन सामग्री
उत्तर—  (1) अनुकरण वाचन– अनुकरण वाचन कक्षा में छात्रों द्वारा किया जाता है। इसे अनुकरण वाचन इसलिए कहा जाता है कि, क्योंकि इसमें छात्र शिक्षक द्वारा किये गये बाचन के अनुसार ही वाचन करने का प्रयास करता है। अनुकरण वाचन के दो भेद हैं—
(i) व्यक्तिगत वाचन– व्यक्तिगत वाचन में छात्र अकेला जोर से उच्चारण करता हुआ उचित आरोह-अवरोह, गति, स्वर और प्रवाह आदि के साथ पड़ता है। उसके द्वारा इस प्रकार से पढ़ने से उसकी वाचन सम्बन्धी कमियों का शिक्षक को पता चल जाता है और उन कमियों को शिक्षक द्वारा दूर किया जा सकता है। इस प्रकार के वाचन से छात्र में आत्मविश्वास बढ़ता है और वक्तृव्य शक्ति का विकास होता है। माध्यमिक कक्षाओं में प्रायः व्यक्तिगत वाचन होता है।
(ii) समवेत वाचन ( सामूहिक वाचन ) – इस वाचन में छात्र कक्षा के अन्य छात्रों के साथ सामूहिक रूप से सस्वर वाचन करता है। छोटी कक्षाओं के लिए यह अत्यधिक उपयोगी है। छोटी-छोटी कविताओं एवं बाल उपयोगी गीतों का समवेत वाचन करना हमेशा उचित रहता है। इसके लिए ठीक यह रहता है कि सबसे पहले शिक्षक छात्रों के समक्ष आदर्श वाचन प्रस्तुत करे फिर शिक्षक छात्रों से उसी रूप में एक साथ छात्रों को वाचन करने का निर्देश दे । इससे जो छात्र अकेले पढ़ने में संकोच करता है वह भी समवेत वाचन में अन्य छात्रों के साथ खुलकर वाचन करना सीख जाता है और उसकी झिझक समाप्त हो जाती है।
(2)  द्वितीय भाषा– द्वितीय भाषा, गृहभाषा से इतर वह भाषा है जो बालक विद्यालय में सीखता है। इसका स्वरूप पूर्णतया औपचारिक एवं व्यवस्थित होता है । जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो वे अक्षरों को सीखते हैं और फिर शब्दों को बोलते हैं। उसके बाद वे वाक्यों का निर्माण करना शुरू करते हैं। यदि बच्चे घर में सीखी गई भाषा में ही लिखना-पढ़ना शुरू करते हैं तो उनकी सीखने की गति तेज होती है। ऐसे में उन्हें व्याकरण सीखने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वह प्राकृतिक रूप से व्याकरण की भाषा के प्रयोग के माध्यम से सीख लेता है। लेकिन जब उसकी मातृभाषा स्कूल में सिखाई जा रही भाषा से भिन्न होती है तो उसे स्कूल मे पढ़ाई जा रही भाषा सीखने में वास्तव में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
हमारे देश में विभिन्न समाज सम्प्रदायों में विभिन्न भाषाएँ विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार बोली जाती है। घर में या परिवार में तथा दूसरे सामाजिक क्रियाकलापों में, जैसे—खेल के मैदान में, स्कूल में, कोर्ट में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। इन सभी परिस्थितियों में मातृभाषा या घर की भाषा का प्रयोग हो, ऐसा सम्भव नहीं है। घर में जहाँ मातृभाषा का प्रयोग होता है तो स्कूल में आजकल अंग्रेजी भाषा को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ा जाता है। आजकल तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारा देश बहुभाषी देश है। इसलिए हमारे देश में अंग्रेजी भाषा है जो पूरे देश के लोगों को आपस में जोड़ती है। इसलिए इसी मानसिकता के आधार पर अंग्रेजी भाषा को भारतीय स्कूलों में दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है।
हमारे देश में अंग्रेजी को लिंक भाषा भी कहते हैं, क्योंकि यह दो भिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोगों में सम्प्रेषण में सहायक है। इस दृष्टि से यदि देखा जाए तो मातृभाषा का बोधक बालक जब स्कूल में पहुँचता है तो स्कूल की भाषा के रूप में उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कराया जाता है। हमारे देश में अंग्रेजी भाषा को सीखना एक तरह से बच्चों के लिए कठिन काम है, क्योंकि उन्हें एक साथ स्कूल में दो या अधिक भाषाएँ एक साथ सीखनी पड़ती है। यदि हमारे परिवार में घर में भाषा के रूप में अंग्रेजी बोली जाती तो इसे स्कूल में सीखना बेहद आसान होता। लेकिन अंग्रेजी भाषा तो स्कूल में ही सीखते हैं। वहाँ हमारी एक विशिष्ट अंग्रेजी का ही विकास होता है जो कि अकादमिक उद्देश्य के लिए पर्याप्त है। हम स्कूल में सीखी गई अंग्रेजी भाषा को सामाजिक संदर्भ या वातावरण में प्रयोग नहीं कर पाते, क्योंकि उसके प्रयोग का परिवेश जहाँ हमें वातावरण के आधार पर प्राप्त नहीं हो पाता है वही हम उसे घर की भाषा की तरह बोलने में भी सक्षम नहीं हो पाते।
(3) कविता रचना – हिन्दी साहित्य के मुख्य दो अंग हैं— गद्य और पद्य । पद्य के माध्यम से कवि अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति सहज में करता है। पद्यं के अन्तर्गत भावना, कल्पना तथा बुद्धि तीनों पक्षों का समावेश होता है। पद्य में भाव तत्त्व प्रधान होता है। कल्पना तत्त्व के सम्बन्ध में कहा जाता है कि, “जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि ।” मनुष्य की वाणी जो शब्द – विधान करती है वही कविता है । कविता हृदय की वस्तु है। सौन्दर्य की तरह कविता का भी आस्वादन ही किया जा सकता है।
विद्वानाचार्यों द्वारा दी गई कविता की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार है—
कविराज विश्वनाथ–“वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।” रसात्मक वाक्य ही काव्य (कविता) है।
पण्डितराज जगन्नाथ–“रमणयार्थ प्रतिपादकः शब्द काव्यम्।’ रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द ही काव्य है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती है उसे कविता कहते हैं।”
जयशंकर प्रसाद— ‘आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति काव्य है। “
जान्सन– “कविता सत्य और आनन्द के एकीकरण की कला है जिसमें विवेक के साथ कल्पना का प्रयोग होता है। “
कारलायल—”संगीतमय विचार ही कविता है। “
उपर्युक्त प्रत्येक परिभाषा में कविता के किसी न किसी विशिष्ट सौन्दर्य तत्त्व का संकेत है और कविता वस्तुतः इन सभी तत्त्वों की समष्टि है। वह जीवन की समालोचना भी है। संगीतमय विचार भी, वह जीवन का प्रतिबिम्ब भी है और सर्वोत्तम शब्द – योजना भी । छात्रों में इन सौन्दर्य तत्त्वों का बोध एवं अनुभूति की योग्यता विकसित करना ही कविता शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है।
कविता- शिक्षण का महत्त्व– कविता सदा से ही साहित्यिक एवं कलात्मक सौन्दर्यानुभूति का प्रमुख स्रोत रही है। व्यक्ति के हृदय में कुछ भाव या रागतत्व सुषुमावस्था में विद्यमान रहते हैं। कविता- शिक्षण द्वारा वे राग तत्त्व जाग्रत हो उठते हैं और रसानुभूति एवं सौन्दर्यानुभूति कराने हैं। आदि काल से ही कविता मानव हृदय में एक अद्भुत लोकोत्तर आनन्द एवं रस का संचार करती रही है, जिसमें हम कुछ देर के लिए सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर भावों के अनुपम जगत में विचारण करने लग जाते हैं। इसी कारण मानव हृदय कविता के प्रति जितना विमुग्ध होता है, उसकी रमणीयता में रमता जाता है और उसकी भाव लहरियों का अवगाहन कर आनन्द विभोर होना चाहता है, उतना भाषा की अन्य कृतियों में नहीं । इसी कारण कविता को ब्रह्मानन्द सहोदर की संज्ञा प्रदान की जाती है। इसी कारण कविता को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाता है जिससे बालकों के हृदय में लोकोत्तर आनन्द का संचार एवं रस की दृष्टि से की जा सके। इसको और अच्छी तरह से कविता – शिक्षण के उद्देश्यों द्वारा भी समझा जा सकता है।
कविता – शिक्षण के उद्देश्य–कविता – शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं—
(1) छात्रों को भावानुसार उचित गति, यति, लय एवं उचित आरोह-अवरोह से पठन करने एवं पठित अंश का भाव ग्रहण करते हुए रसानुभूति करने योग्य बनाना।
(2) छात्रों में पढ़ी हुई कविता के भावों को अपने शब्दों में कहने और उसकी समीक्षा करने में निपुण करना ।
(3) काव्य में निहित सत्यं, शिवं और सुन्दरम् का विकास करना ।
(4) छात्रों को कविता का अर्थ ग्रहण करने, उसका भाव ग्रहण करने और उसके आधार पर रस की अनुभूति कर सौन्दर्यानुभूति करने और अन्त में परमानन्दानुभूति करने योग्य बनाना ।
(5) छात्रों में कविता और साहित्य अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करना ।
(6) काव्य के शिक्षण से स्थायित्व और अमरता के गुणों का विकास करना है।
(7) छात्रों की सृजनात्मक शक्तियों को सचेष्ट करना और उनमें साहित्य रचना करने के प्रति रुचि उत्पन्न करना ।
(8) छात्रों की चितवृत्तियों का परिमार्जन कर उनमें उच्च आदर्शों का निर्माण करना ।
(9) सामाजिक आदर्शानुकूल आचरण करने की प्रवृत्ति का विकास करना ।
(10) कविता शिक्षण से रागात्मक वृत्तियों का संशोधन और संस्कार करना है।
(11) छात्रों में राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का विकास करना तथा सद्वृत्तियों (वीरता, देश भक्ति, श्रद्धा, संवेदनशील, साहसिकता, आस्था, प्रेम) का विकास करना ।
(12) छात्रों को पूर्ण मनोयोग से सुनने और सुनकर अर्थग्रहण एवं भावानुभूति करने योग्य बनाना ।
(4) वाचन सामग्री – यद्यपि वाचन सामग्री के कोई प्रकार नहीं होते, तथा सम्पूर्ण सामग्री को निम्न प्रकार से दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है—
(1) मुद्रित सामग्री – इसका अभिप्राय प्रकाशित पुस्तकों, पत्रपत्रिकाओं आदि से है। मुद्रित में छपी हुई सामग्री का वाचन करना आता है।
(2) हस्तलिखित सामग्री – जब मुद्रण का आविष्कार नहीं हुआ था तब लोग हाथ से लिखा करते थे और जब कागज का आविष्कार नहीं था, तब लोग पेड़ के बड़े पत्तों पर लिखा करते थे, जैसे ताड़वृक्ष के पत्तों पर । जिसे वर्तमान समय में भी अनेक हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रूप में संग्रहालयों में देखा जा सकता है।
वाचन सामग्री की विशेषताएँ—
(1) रोचकता– वाचन सामग्री में रोचकता होनी चाहिए। सामग्री ऐसी हो कि वह बालक को अपनी ओर आकर्षित कर सकें।
(2) विषय क्षेत्र व्यापक– साहित्य में सभी प्रकार की रचनाएँ होनी चाहिए– कहानी, कविता, नाटक, निबन्ध आदि। साथ ही अन्य विषयों, जैसे— राजनीतिक एवं सामाजिक का भी समावेश होना चाहिए।
(3) सरलता से कठिनता की ओर– विषय सामग्री का प्रारम्भ सरल वस्तु से कठिन विषयवस्तु की ओर होना चाहिए। भाषा, वाक्य, शब्दावली सरल होनी चाहिए ।
(4) भाषा शैली– भाषा शैली कक्षा के स्तर, बालकों की स्थिति वातावरण के अनुकूल होनी चाहिए ।
(5) आकर्षक सामग्री– प्राथमिक कक्षाओं में चित्रों, मोटे-मोटे अक्षरों वाली सामग्री होनी चाहिए । पुस्तक देखकर बालक उनकी ओर आकर्षित हों, ऐसी छपाई होनी चाहिए।
(6) ज्ञानवर्धक– सभी तत्त्वों के समावेश के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी होनी चाहिए। इसमें ज्ञान-विज्ञान, विविध जानकारियों का समावेश होना चाहिए।
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