पर्यावरण प्रदूषण और देश के आर्थिक विकास के बीच क्या संबंध है ? ये दर्शाइये कि पर्यावरण संरक्षण नियमों का ‘तथाकथित’ विकास के लिए त्याग अत्यंत कष्टदायी होगा।
पर्यावरण प्रदूषण और देश के आर्थिक विकास के बीच क्या संबंध है ? ये दर्शाइये कि पर्यावरण संरक्षण नियमों का ‘तथाकथित’ विकास के लिए त्याग अत्यंत कष्टदायी होगा।
( 47वीं BPSC/2007 )
उत्तर – वर्तमान दौर के आर्थिक विकास की अवधारणा पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाने वाली है। यद्यपि उच्च-प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर इस स्थिति से बचा जा रहा है/ बचा जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण एवं देश के आर्थिक विकास के बीच संबंध को निम्नलिखित पंक्तियों के माध्म से से समझा जा सकता है –
> विकास के लिए पर्यावरण प्रदूषण
> आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण प्रदूषण
उपर्युक्त बातें आर्थिक विकास के संबंध में नकारात्मक सोच को दर्शा सकती हैं, परंतु वास्तविकता यही है। आज जो भी देश आर्थिक दृष्टिकोण से उन्नत हो रहा है, वहां पर्यावरण प्रदूषण का स्तर उतना ही बढ़ता जा रहा है। जो देश आर्थिक विकास की दृष्टिकोण से उन्नत हैं, वास्तव में उन्होंने उतना ही ज्यादा पर्यावरण को प्रदूषित किया है। आर्थिक विकास के लिए हमें क्या करना चाहिए? इसके लिए उद्योगों का विकास करना, अपनी कृषि को उन्नत अवस्था में लाना, अपने आधारभूत ढांचे का विकास करना आदि प्रमुख हैं। उद्योग लगाने के लिए जमीन चाहिए जो जंगलों को साफ कर प्राप्त की जाएगी। उद्योगों की ऊर्जा आवश्यकता के लिए बिजली उत्पन्न करना होगा जो या तो कोयले से प्राप्त करेंगे या जल-विद्युत उत्पादन करेंगे अथवा नाभिकीय ऊर्जा के रूप में अन्य विकल्प अपनाएंगे। लेकिन ये सभी साधन पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले हैं। यद्यपि नाभिकीय ऊर्जा पर्यावरण हितैषी दिखती हो परंतु विभिन्न कारणों से नाभिकीय संयंत्रों में विस्फोट अथवा खराबी आने पर ये सबसे ज्यादा पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं। हाल ही में जापान के फुकुशिमा नाभिकीय संयंत्र में हुई दुर्घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है। उसी प्रकार कृषि विकास के लिए अपनाए जाने वाले उर्वरक एवं कीटनाशक, जल एवं भूमि प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं। उद्योगों के विकास से परिवहन साधनों का विकास होगा। इन कारखानों एवं गाड़ियों से निकलने वाली हानिकारक गैसें वायु प्रदूषण के मूल कारक हैं। इससे वैश्विक तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है। अतः आर्थिक विकास जैसे-जैसे होगा, पर्यावरण प्रदूषण का स्तर उतना ही ज्यादा होगा। यद्यपि पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक संगठन लगे हुए हैं जो आर्थिक विकास के लिए होने वाले पर्यावरण प्रदूषण का विरोध करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय भी इस मामले में सक्रिय है।
पर्यावरण प्रदूषण एवं आर्थिक विकास के बीच एक और संबंध है- आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण प्रदूषण। आज हम जैसे-जैसे उन्नत होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे पर्यावरण की अनदेखी कर रहे हैं। आर्थिक संपन्नता के कारण शहरों की आबादी तेजी से बढ़ी है जिसके कारण अधिकाधिक आधारभूत ढांचे का निर्माण, अधिक से अधिक परिवइन साधनों की आवश्यकता हो रही है। कई नई कालोनियां बसाई गई हैं जिसके कारण जंगलों का सफाया किया गया है। आर्थिक विकास के साथ-साथ उद्योगों के लिए एवं घरेलू उपयोगों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ी है। ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए नदियों पर बांध बनाए जा रहे हैं। नाभिकीय ऊर्जा के लिए बड़े-बड़े नाभिकीय संयंत्र लगाए जा रहे हैं जो भविष्य में पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
आर्थिक-विकास के लिए आज पर्यावरण संरक्षण के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है, जो चिंता की बात है। सबसे बड़ी बात पर्यावरण संरक्षण नियमों का उल्लंघन विभिन्न निजी संस्थानों के साथ ही सरकारी स्तर पर भी हो रहा है। यदि हम तथाकथित विकास के लिए पर्यावरण के प्रति सचेत न हुए तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसे निम्न बिंदुओं से समझा सकता है
1. अत्यधिक औद्योगिक विकास के कारण वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बन डाईऑक्साइड (CO2,), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2,S), सल्फर डाईआक्साइड (SO2)आदि गैसों का स्तर बढ़ रहा है जो पृथ्वी के तापमान वृद्धि, ध्रुवीय – प्रदेशों के बर्फ के तेजी से पिघलने तथा स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं आदि के लिए जिम्मेदार हैं ।
2. उद्योगों की स्थापना तथा बढ़ते शहरीकरण के लिए वनों का विनाश किया जा रहा है। वनों के विनाश के कारण भूस्खलन, अनियमित बाढ़, मृदा कटाव, वर्षा की कमी, वन्य प्राणियों एवं औषधीय गुणों वाले पौधों की कमी आदि समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
3. अत्यधिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि, जल एवं वायु प्रदूषित हो रहा है।
4. बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के काण व्यापक पर्यावरणीय क्षति एवं लोगों के विस्थापन की समस्या उत्पन्न हुई है।
5. विकास की वर्तमान प्रक्रिया के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषण फैल रहे हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
अत: हम कह सकते हैं कि विकास की प्रक्रिया नियमित एवं संयमित होनी चाहिए, नहीं तो मानव का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
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