भारतीय संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य तनाव के क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिए। वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन कीजिए।

भारतीय संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य तनाव के क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिए। वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन कीजिए।

अथवा

केन्द्र-राज्य संबंधों की विवेचना कीजिए तथा उन बिन्दुओं की चर्चा करें जिनसे बिहार राज्य एवं केन्द्र सरकार के संबंध प्रभावित हुए।
 उत्तर – संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र एवं राज्यों के बीच टकराहट एक अवश्यंभावी घटना में से एक है। इसके निवारण हेतु भारतीय संविधान के भाग 11 के अनुच्छेद 245-307 में विस्तृत वर्णन किया गया है जिससे संघात्मक व्यवस्था सुचारु रूप से चले। इसके अलावा 7वीं अनुसूची में भी केन्द्र राज्य संबंधों का भी उल्लेख मिलता है। बावजूद इसके केन्द्र एवं राज्यों के बीच यदा-कदा टकराव देखे जाते हैं। –
1. विधायी संबंध ( अनुच्छेद-245-255 ) –  विधायी संबंधों में तनाव केन्द्रीय एवं समवर्ती सूचियों को लेकर राज्यों की विधि तथा केन्द्र की नीति को लेकर परस्पर विरोधी होने की दशा से है। जबकि सूचियों के बंटवारा हेतु तीन सूची निर्धारित किए गए हैं:
क. संघ सूची ( 99 विषय ) – इस पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र को है।
ख. राज्य सूची ( 61 विषय )- इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है।
किंतु राष्ट्रीय हित में राज्य सभा अनुच्छेद 249 के तहत राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।
ग. समवर्ती सूची ( 52 विषय )-  इस पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र एवं राज्य दोनों को है, किंतु अनुच्छेद 254 के तहत केन्द्र को यह शक्ति है कि वह राज्य विधि को निरस्त कर दे या उसके स्थान पर दूसरी विधि प्रतिस्थापित कर दे। इस प्रकार स्पष्ट है कि शक्तियों के विभाजन के बावजूद केन्द्र अपनी नीति के अनुसार यदा-कदा राज्य की शक्तियों में हस्तक्षेप करता रहता है। जब संघ सूची और राज्य सूची के बीच अतिव्याप्ति हो तो संघ सूची को वरीयता दी जाएगी और समवर्ती सूची और राज्य सूची में संघर्ष होने पर समवर्ती सूची को वरीयता दी जाएगी। –
2. प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद-256-263) – इसके तहत केन्द्र को राज्य पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया है, जिनसे भी टकराहट की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। इसके तहत केन्द्र राज्य को निम्नलिखित विषयों पर निर्देश दे सकता है –
> संसद द्वारा बनाई गई विधियों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए ।
> अनुच्छेद 257 के तहत यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में अड़चन न डाले।
> अनुच्छेद 350क के तहत प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए।
 इसके अलावा भी केन्द्र अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के द्वारा राज्य पर नियंत्रण स्थापित करता है।
> अनुच्छेद 352 के तहत आपात की घोषणा के दौरान संघ की शक्ति में (अनुच्छेद 353) राज्य को यह निर्देश देता है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग किस तरह किया जाएगा।
इससे स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद 256-263 में कुछ को छोड़कर सभी के द्वारा केन्द्र का उद्देश्य राज्यों को नियंत्रित करना है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी केन्द्र अधिक शक्तिशाली है।
3. वित्तीय संबंध ( अनुच्छेद 264-300)- भारत को वित्तीय संबंध में सहकारी संघवाद का सिद्धांत दृष्टिगोचर होता है। इसके तहत माना जाता है कि संघ एवं राज्य दोनों के पास वैध खर्च हेतु पर्याप्त कोष हो। साथ ही व्यय में वृद्धि के साथ ही आवक में भी वृद्धि हो । अनुच्छेद 275 संसद को अधिकार देता है कि वह राज्यों को उसकी आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर अनुदान दे ।
समय-समय पर केन्द्र एवं राज्यों के मध्य इस मुद्दे पर तनाव होते रहे हैं। बिहार भी इससे अछूता नहीं है। तनाव के मुद्दे भी प्रशासनिक, वित्तीय एवं विधायी हैं। कराधान के मुद्दे पर VAT को लेकर हालिया तनाव जगजाहिर है। इसके अलावा विशेष राज्य के दर्जे एवं 14वें वित्त आयोग के रिपोर्ट को लेकर भी तनाव है। बिहार राज्य विशेष दर्जे को लेकर लगातार वकालत कर रहा है, परन्तु केन्द्र के दिए गए पैमाने को लेकर आज भी गतिरोध बना हुआ है। राज्यपाल केन्द्र का एजेंट माना जाता है। फरवरी, 2005 के बिहार विधान सभा चुनाव के बाद तत्कालीन राज्यपाल बुटा सिंह द्वारा राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना विवाद के बिन्दु रहे हैं। फिर 2017 में गोवा और मणिपुर के राज्यपालों की भूमिका केन्द्र सरकार के एजेन्ट की तरह दिखाई देता है। इसी तरह सिविल सर्वेंट के मामले में IAS Association की लॉबी भी प्रशासनिक गतिरोध के द्योतक हैं।
इस प्रकार, यद्यपि केन्द्र एवं राज्य के मध्य संबंधों को लेकर संविधान में विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके बावजूद केन्द्र-राज्यों के संबंध बनते बिगड़ते रहे हैं। बिहार भी इस गतिरोध से अछूता नहीं रहा है। राज्य कई बार केन्द्र पर भेदभाव का आरोप लगाता रहा है ।
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