भारत में बहुधंधी परियोजनाओं (Multipurpose Projects) के विरुद्ध आंदोलन की प्रासंगिकता का आलोचनात्मक परीक्षण करें।

भारत में बहुधंधी परियोजनाओं (Multipurpose Projects) के विरुद्ध आंदोलन की प्रासंगिकता का आलोचनात्मक परीक्षण करें।

 (41वीं BPSC/1997 )
उत्तर – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में ढांचागत संरचना की कमी थी। अतः इन कमियों को दूर करने के लिए बहुउद्देशीय परियोजनाओं को विकास और समृद्धि के रास्ते पर ले जाने वाले वाहन के रूप में देखा गया। जवाहरलाल नेहरू इन्हें ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ कहा करते थे। लेकिन इन योजनाओं के अस्तित्व में आने के साथ-साथ इनका व्यापक विरोध भी प्रारंभ हो गया। ऐसा इन योजनाओं के नकारात्मक पक्षों के कारण हुआ। इन योजनाओं के विरोध में बोलने वालों का तर्क है कि इन योजनाओं के कारण स्थानीय समुदायों को वृहद स्तर पर विस्थापित होना पड़ता है। इन्हें उनकी जमीन, आजीविका के साधनों से हाथ धोना पड़ता है। अधिकतर लोग देशहित के लिए ऐसा करने को तैयार हैं; लेकिन इसके बावजूद इन परियोजनाओं से मिलने वाले फायदों में इनका हिस्सा न के बराबर है। इन योजनाओं का फायदा बड़े किसानों, उद्योगपतियों एवं नगरीय केन्द्रों को मिल रहा है। स्थानीय समुदाय जो विस्थापित हुए हैं, कई बार उन्हें उचित मुआवजा तथा इन परियोजनाओं में नौकरी जैसी चीजें भी हासिल नहीं हो पाती है। ऐसी चीजें ही गुजरात के नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के विरोध में ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ का कारण है; जिसे मेधा पाटेकर ने आगे बढ़ाया है। उत्तराखंड का ‘टिहरी बांध आंदोलन’ भी ऐसे आंदोलनों में एक है। इन परियोजनाओं के विरोधियों का यह भी कहना है कि नदियों पर बांध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होता है, जिसके कारण तलछट का बहाव कम हो जाता है और अत्यधिक तलछट जलाशय की तली पर जमा होता रहता है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है और नदी के जलीय जीव आवासों में भोजन की कमी हो जाती है। बांध नदियों को टुकड़ों में बांट देते हैं जिससे विशेषकर अंडे देने की ऋतु में जलीय जीवों का नदियों में स्थानांतरण अवरूद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान में बनाए जाने वाले जलाशयों से वहां मौजूद वनस्पति और मिट्टियां जल में डूब जाती हैं जो कालांतर में अपघटित हो जाती है।
इन परियोजनओं के विरुद्ध दिए गए तर्क सही हैं। परन्तु इन परियोजनाओं से मिलने वाले फायदों को यदि हम देखें तो इनसे देश के विकास को बल मिलता है। इन परियोजनाओं के कारण ही भारत अपनी विद्युत आवश्यकता का लगभग 22% विद्युत जल से प्राप्त कर पाता है। साथ ही कृषि के लिए नहर, बाढ़ से मुक्ति एवं इन बांधों से यातायात की सुविधा आदि अनेक फायदे हैं। लेकिन आंदोलन करने वालों की मांगों को ध्यान में रखना होगा ताकि पर्यावरण से जुड़े मुद्दे प्रभावित न हो। साथ ही इससे प्रभावित होने वाले समुदायों के वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था तथा उपयुक्त पुनर्वास आदि की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
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