भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बाद भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु जल प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की सोदाहरण विविचना कीजिए।
भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बाद भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु जल प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की सोदाहरण विविचना कीजिए।
अथवा
भारत के सुदृढ़ नदियों के जाल की उपलब्धता के सन्दर्भ में संक्षिप्त जानकारी दें।
अथवा
तत्पश्चात् जलापूर्ति एवं विशेष रूप से पेयजल की समस्या से जूझने की व्याख्या करें ।
अथवा
इस समस्या के समाधान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है, इसे स्पष्ट करें।
उत्तर – भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के कारण भी पिछले कुछ दशकों से देश में जल संकट भारत के लिए बड़ी समस्या है। इन दिनों भारत के अनेक राज्यों, जैसे- दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र इत्यादि में व्यापक पेयजल एवं सूखे जैसी आपदा देखी जा रही है। इसके कारण वहां के किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वहीं चेन्नई में पेयजल के अभाव में जनता त्राहिमाम कर रही है। सोचने वाली बात तो यह है कि भारत में वर्षा तो पर्याप्त होती ही है इसके साथ भारत में नदियों का एक बहुत बड़ा जाल भी विद्यमान है। क्योंकि मोटे तौर पर देखा जाए तो दक्षिण भारत में जहां नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, गोदावरी आदि जैसी विशाल नदियों का जाल है तो वहीं उत्तर भारत में गंगा-यमुना, चम्बल, घाघरा, सोन, सिन्धु, झेलम, चेनाब आदि नदियां तो पूर्व में ब्रह्मपुत्र जैसे विशालकाय एवं लम्बी नदी मौजूद है। फिर यहां पेयजल एवं सूखे जैसी जल संकट का आ जाना अपने आप में एक चिन्ता का विषय है। यही कारण है कि इन दिनों जल संरक्षण शोधकर्ताओं के लिए एक मुख्य विषय बन गया है।
• भारत में जल संकट की स्थिति
आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला देश भारत जल संकट से जूझ रहा है। यहां जल संकट का रूप विकराल हो चुका है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में जहां पानी की कमी बढ़ी है, तो वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी
गहराये हैं। भूगर्भीय जल का अत्याधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहां मीठे जल की प्रतिशतता में कमी हुई है, तो वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी जल संकट की समस्या विकराल हुई है।
• जल संकट के कुछ महत्वपूर्ण कारण
> भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन,
> भूगर्भीय जल पर हमारी बढ़ती निर्भरता,
> पारम्परिक जल स्रोतों एवं तकनीकों की उपेक्षा,
> जल संरक्षण और प्रबंधन की उन्नत एवं उपयोगी तकनीकों का अभाव,
> जल शिक्षा का अभाव,
> भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना इत्यादि।
• जल संकट के समाधान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका
जल जीवन का आधार है और हमें अगर जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण एवं जल संचय के उपाय करने होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है एवं मांग को लेकर मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में जल संकट का सही समाधान खोजना हर मनुष्य का दायित्व है। यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है। ऐसे में तकनीकों का उपयोग अपरिहार्य हो जाता है। जिसके सन्दर्भ में निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
> सिंचाई कार्यों के लिए स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसे पानी की कम खपत वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
> जल संकट से निपटने के लिए हमें वर्षाजल भण्डारण पर विशेष ध्यान देना होगा। वाष्पन या प्रवाह द्वारा जल खत्म होने से पूर्व सतह या उपसतह पर इसका संग्रह करने की तकनीक (वर्षा जल भण्डारण) को बढ़ावा देना होगा।
> हमें ऐसी विधियां एवं तकनीक विकसित करनी होगी, जिनसे लवणीय एवं खारे पानी को मीठा बनाकर उपयोग में लाया जा सके। इस कार्य हेतु रिवर्स ऑस्मोसिस की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होगी।
> नलकूपों द्वारा रिचार्जिंग तकनीक का उपयोग।
> सरफेस रन ऑफ हार्वेस्टिंग- शहरी क्षेत्रों में पानी बहकर बेकार हो जाता है | इस बहते जल को एकत्र कर कई माध्यम से धरती के जलवाही स्तर को रिचार्ज किया जाता है।
> रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के उपयोग के द्वारा वर्षा का पानी जहां गिरता है, वहीं उसे एकत्र कर लिया जाता है। इस रूफ-टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग में घर की छत ही कैचमेण्ट क्षेत्र का काम करती है।
वास्तव में जल आज की जरुरत ही नहीं हमारे जीवन के लिए अपरिहार्य है, अत: जल संकट से निपटने हेतु जल प्रबंधन आवश्यक है। हम वर्षा जल का पूर्ण संचय करें। यह ध्यान रखना होगा कि बारिश की एक बूंद भी व्यर्थ न जाए। इसके लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग एक अच्छा माध्यम हो सकता है। आवश्यकता है, इसे और विकसित एवं प्रोत्साहित करने की। इसके प्रति जनजागृति एवं जागरुकता को भी बढ़ाना आवश्यक है।
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