विद्युत् खपत की बढ़ती मांग एवं घटतें पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों के कारण देश वर्तमान में विद्युत् ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। इस विकट ऊर्जा खपत मांग को नियंत्रित करने के लिए वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त माध्यमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

विद्युत् खपत की बढ़ती मांग एवं घटतें पारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों के कारण देश वर्तमान में विद्युत् ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। इस विकट ऊर्जा खपत मांग को नियंत्रित करने के लिए वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त माध्यमों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

अथवा

संक्षेप में विद्युत शक्ति के महत्व को स्पष्ट करें।
अथवा
बढ़ती जनसंख्या एवं आर्थिक विकास हेतु विद्युत खपत की मांग को स्पष्ट करें।
अथवा
पारम्परिक ऊर्जा स्रोत (कोयला पेट्रोलियम आदि) की कम होती मात्रा का उल्लेख करें।
अथवा
ऊर्जा आपूर्ति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की व्याख्या कीजिए
उत्तर– किसी भी राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में ऊर्जा एक महत्वपूर्ण एवं अपरिहार्य घटक होता है । सम्भवतः इसी कारण ऊर्जा को प्रतिव्यक्ति खपत को किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सूचक माना जाता है। विश्व के समान भारत में समाज की बढ़ती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रमुख माध्यम जीवाश्म ईंधन है। जिसमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस को सम्मिलित किया जाता है। जबकि गैर परम्परागत अथवा नवीनीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों से तात्पर्य ऐसी ऊर्जा से है जिसका पूर्ण प्रयोग के लिए नवीकरण किया जा सकता है। वर्तमान समय में जीवाश्म ईंधन के भण्डार में होती कमी एवं इसके दुष्प्रभावों के कारण नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास की प्रवृत्ति का तेजी से विकास हुआ है। इस ऊर्जा स्रोतों में मुख्य रूप से सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, वायोमास, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।
•  नवीकरणीय ऊर्जा हेतु भारत के कदम
भारत सरकार सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा जैसे गैर-परम्परागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा रहा है। भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा आवश्यकता का 40% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना है। ग्रीन पीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैकल्पिक ऊर्जा प्रणालियों में निजी और सरकारी स्तर पर 2050 ई.
 तक 61000 करोड़ रुपए सालाना निवेश करने की जरूरत बताई गई थी। भारत ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 1.75 लाख मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य है। जिसमें से 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा से तथा 60 हजार मेगावाट पवन ऊर्जा से, 10 मेगावाट जैव ऊर्जा से, और 5 मेगावाट लघु पनविबली ऊर्ज से बनाना शामिल है।
उपर्युक्त माध्यमों का उपयोग कर ऊर्जा की कमी से जूझ रहे देश की समस्या का समाधान किया जा सकता है तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे साधनों का उपयोग कर बड़े स्तर पर बिजली खपतों को कम भी किया जा सकता है।
•  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग
विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों द्वारा अनेक अनुसंधान किये जा रह है जिनका उपयोग कर ऊर्जा जरूरतों को कम किया जा सकता।
एल.ई.डी. (लाइट एमिटिंग डायोड) : एल.ई.डी. प्रौद्योगिकी अर्थात् लाइट एमिटिंग डायोड प्रौद्योगिकी ठोस अवस्था (Solid State) प्रौद्योगिकी पर आधारित है। जिसमें सेमीकण्डक्टर (अर्द्धचालक) पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसमें विद्युत की धारा प्रवाहित करने पर इनके परमाणुओं की बाहरी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रान उत्तेजित हो जाते हैं तथा ये पदार्थ चालक की भांति व्यवहार करना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे कम ऊर्जा खपत में ही हमें प्रकाश ऊर्जा के रूप में ज्यादा ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
उपर्युक्त प्रोद्योगिकी को बढ़ावा देने हेतु सरकार ने भी बड़े स्तर पर अटल ज्योति योजना (अजय) को आरम्भ किया है। इसके अन्तर्गत ग्रामीण, अर्द्धशहरी और शहरी क्षेत्रों में सौर एलईडी लाइट्स स्थापित किये जा रहे हैं।
 एलईडी टेलीविजन का उपयोग : यह प्रौद्योगिकी सामान्य टेलीविजनों की तुलना में काफी कम ऊर्जा की खपत करती है, जिससे अन्य जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
कार्बनिक एलईडी का उपयोग : कार्बनिक एलईडी अर्थात आर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड का उपयोग कर भी भविष्य में आने वाले ऊर्जा समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
उपर्युक्त प्रौद्योगिकियों के अतिरिक्त कई ऐसी प्रौद्योगिकी मौजूद हैं जिनका उपयोग कर ऊर्जा को बचाया जा सकता है, एवं अन्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
वास्तव में, हम अपनी कुल ऊर्जा जरूरतों का लगभग 70% आयात करते हैं। हमारे देश द्वारा 65 वर्षों के दौरान स्थापित क्षमता में 110 गुना से भी अधिक वृद्धि होने के बावजूद भारत अभी अपनी चरम बिलजी मांग के साथ-साथ अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की स्थिति नहीं है। अतः हमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर विद्युत खपत की मांग में कमी करने के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरी करने पर बल देना होगा।
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